5वें राष्ट्रीय जल पुरस्कार, 2023 के लिए करें आवेदन

नई दिल्ली : इन पुरस्कारों के लिए सभी आवेदन लिंक https://awards.gov.in/Home/Awardpedia. पर औनलाइन राष्ट्रीय पुरस्कार पोर्टल के माध्यम से प्राप्त किए जाएंगे. आम लोग ज्यादा जानकारी के लिए इस पोर्टल या इस विभाग की वैबसाइट www.jalshakti-dowr.gov.in पर जा सकते हैं. आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 15 दिसंबर, 2023 है.

पुरस्कारों के लिए पात्रता

कोई भी राज्य, जिला, ग्राम पंचायत, शहरी स्थानीय निकाय, स्कूल/कालेज, संस्थान (स्कूल/कालेज के अलावा), उद्योग, नागरिक समाज, जल उपयोगकर्ता संघ या जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतरीन और अनुकरणीय काम करने वाले व्यक्ति आवेदन करने के पात्र हैं.

ट्राफी और प्रशस्तिपत्र

‘सर्वश्रेष्ठ राज्य’ और ‘सर्वश्रेष्ठ जिला’ को विजेताओं को ट्राफी और प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया जाएगा. शेष श्रेणियों में – ‘सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत’, ‘सर्वश्रेष्ठ शहरी स्थानीय निकाय’, ‘सर्वश्रेष्ठ स्कूल/कालेज’, ‘सर्वश्रेष्ठ संस्थान (स्कूल/कालेज के अलावा)’, ‘सर्वश्रेष्ठ उद्योग’, ‘सर्वश्रेष्ठ नागरिक समाज’, ‘सर्वश्रेष्ठ जल उपयोगकर्ता संघ’, ‘सर्वश्रेष्ठ उद्योग’, ‘उत्कृष्टता के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’ विजेताओं को नकद पुरस्कार के साथसाथ ट्राफी और प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया जाएगा. पहले, दूसरे और तीसरे विजेताओं के लिए नकद पुरस्कार क्रमशः 2 लाख रुपए, 1.5 लाख रुपए और 1 लाख रुपए हैं.

चयन प्रक्रिया

राष्ट्रीय जल पुरस्कारों के लिए प्राप्त सभी आवेदनों की जांच जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की एक स्क्रीनिंग समिति द्वारा की जाएगी. चुने गए आवेदनों को एक सेवानिवृत्त सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता वाली जूरी समिति के समक्ष रखा जाएगा. इस के बाद जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के संगठनों अर्थात केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) और केंद्रीय भूमि जल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) द्वारा शार्टलिस्ट किए गए आवेदनों का पता लगाया जाएगा.

जूरी समिति रिपोर्ट के आधार पर आवेदनों का मूल्यांकन करेगी और विजेताओं की सिफारिश करेगी. समिति की सिफारिशों को अनुमोदन के लिए केंद्रीय मंत्री (जल शक्ति) को प्रस्तुत किया जाएगा. विजेताओं के नामों की घोषणा एक उपयुक्त दिनांक में की जाएगी और पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया जाएगा.

पुरस्कारों का विवरण

इस के तहत सर्वश्रेष्ठ राज्य राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को प्रशस्तिपत्र के साथ ट्राफी और 3 पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे, जबकि सर्वश्रेष्ठ जिले के रूप में जिला प्रशासन, जिला कलक्टर या जिलाधिकारी को प्रशस्तिपत्र के साथ ट्राफी 5 पुरस्कार (पांच में से प्रत्येक से एक पुरस्कार) क्षेत्र अर्थात, उत्तरी, दक्षिणी, पश्चिमी, पूर्वी और उत्तरपूर्वी) क्षेत्रों में प्रदान किए जाएंगे.

सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत के रूप में ग्राम पंचायत को प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा, जिस के तहत 3 पुरस्कार दिए जाएंगे. इस में प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किए जाएंगे. सर्वश्रेष्ठ 3 पुरस्कार शहरी स्थानीय निकाय को प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा, जिस के तहत प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किया जाएगा.

सर्वश्रेष्ठ स्कूल या कालेज स्कूल को 3 प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा, जिस के तहत प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किया जाएगा. इस के साथ ही 6 सर्वश्रेष्ठ संस्थान स्कूल /कालेज के अलावा जिस में संस्थाएं/ आरडब्ल्यूए/धार्मिक संगठन शामिल हैं. इस के तहत प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किए जाएंगे. इस में कैंपस उपयोग के लिए 2 पुरस्कार (पहला पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए) कैंपस के अलावा अन्य के लिए 1 पुरस्कार (पुरस्कार 2 लाख रुपए) दिए जायेंगे.

सर्वश्रेष्ठ उद्योग को भी प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी के साथ 3 पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे, जिस के तहत प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किए जाएंगे.

सर्वश्रेष्ठ नागरिक समाज पंजीकृत गैरसरकारी संगठन/सिविल सोसायटी यानी एनजीओ को भी प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा, जिस के तहत 3 पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे. इस के तहत पहला पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किए जाएंगे.

इसी के साथ सर्वश्रेष्ठ जल उपयोगकर्ता संघ को भी प्रशस्तिपत्र के साथ नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा. इस के तहत 3 पुरस्कार प्रदान किया जाएगा, जिस में प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किया जाएगा.

उत्कृष्टता के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों को भी प्रदान किया जाएगा, जिस के तहत 3 लोगों को नकद पुरस्कार और ट्राफी प्रदान किया जाएगा. इस में प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपए, दूसरा पुरस्कार 1.5 लाख रुपए और तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपए प्रदान किया जाएगा.

इस उद्देश्य से दिए जाते हैं पुरस्कार

राष्ट्रीय जल पुरस्कार (एनडब्ल्यूए) की शुरुआत सरकार के दृष्टिकोण ‘जल समृद्ध भारत’ को पूरा करने में देशभर में राज्यों, जिलों, व्यक्तियों, संगठनों आदि द्वारा किए गए अनुकरणीय कार्य और प्रयासों को पहचानने और प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया. इस का उद्देश्य जनता को पानी के महत्व के बारे में संवेदनशील बनाना और उन्हें सर्वोत्तम जल उपयोग प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करना है.

विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार विजेताओं को एक प्रशस्तिपत्र, ट्राफी और नकद पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. राष्ट्रीय जल पुरस्कारों का उद्देश्य हितधारकों को देश में जल संसाधन प्रबंधन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है, क्योंकि सतही जल और भूजल जल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन उद्देश्यों को अपनाने के लिए वर्ष 2018 में पहला राष्ट्रीय जल पुरस्कार शुरू किया गया और वितरण समारोह 25 फरवरी, 2019 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया था और 14 श्रेणियों के अंतर्गत 82 विजेताओं को सम्मानित किया गया था.

बाजरे की खरीद 2,500 रुपए प्रति क्विंटल

हिसार : 10 अक्तूबर. हरियाणा को कृषि प्रधान न कह कर किसान प्रधान राज्य कहना उचित होगा. क्योंकि किसानों के बल पर ही हरियाणा प्रदेश प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है. अब किसानों को कृषि में आधुनिकता, गुणवत्ता व फसल विविधीकरण को ध्यान में रख कर फसल की पैदावार बढ़ाने पर जोर देना होगा. इस के लिए सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष को ध्यान में रखते हुए मोटे अनाजों में बाजरा उगाने वाले किसानों को बढ़ावा देने के लिए बाजरे की खरीद 2,500 रुपए प्रति क्विंटल करने का निर्णय लिया है.

ये विचार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहे. वे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय हरियाणा कृषि विकास मेला- 2023 के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि किसानों को संबोधित करते हुए कहे.

इस अवसर पर अतिथि के रूप में हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल मौजूद रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने की.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मेले में किसानों की भारी संख्या देख कर खुशी जताते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस मेले में आने का अवसर मिला. हरियाणा का किसान खेती ही नहीं, अपितु खेल और व्यापार में भी देश में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है. इतना ही नहीं, हाल ही में संपन्न हुए एशियन खेलों में 30 फीसदी मेडल हरियाणा के खिलाड़ियों ने देश की झोली में डाले हैं.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आगे यह भी कहा कि हरियाणा का किसान प्रगतिशील है, जो चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत किस्मों व अन्य प्रौद्योगिकियों को अपनाने में आगे रहते हैं.

उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा की. विश्वविद्यालय फसलों की नई किस्में ईजाद कर किसानों की आय बढ़ाने में उम्दा योगदान दे रहा है.

उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे समयसमय पर मिट्टी व पानी की जांच करवाएं व उसी आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें और फसलों का चयन करें. साथ ही यह भी कहा कि प्रदेश का कोई किसान यदि आय बढ़ाने का कोई भी सुझाव लाता है, तो हरियाणा सरकार हमेशा उस के नवाचारों का स्वागत करती है.

उन्होंने आगे कहा कि छोटे किसानों को नएनए तरीके अपना कर खेती करने की जरूरत है. जैसे ड्रेगन फ्रूट की खेती कर किसान लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. हरियाणा में 20 सब्जियों की खेती को लाभदायक बनाने के लिए भावांतर भरपाई योजना चलाई जा रही है. वर्तमान समय में जल स्तर नीचे जा रहा है, जिस के लिए यदि किसान धान के अलावा अन्य फसल उगाता है, तो उस को 7,000 रुपए प्रति एकड़ अनुदान दिया जा रहा है.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मेले में सम्मानित किए गए प्रगतिशील किसानों से आह्वान किया कि यदि एक प्रगतिशील किसान आगे 10 किसानों को आधुनिक खेती की तकनीक से जोड़ कर खेती को मुनाफे का व्यवसाय बनाएगा, तो इस से प्रदेश के किसानों में तेजी से खुशहाली आएगी. किसानों की आय बढ़ाने के लिए हरियाणा में 600 से अधिक एफपीओ बनाएं.

वहीं कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि मेले की बढ़ रही लोकप्रियता को देखते हुए अब भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए इस मेले का विस्तार किया जाएगा.

उन्होंने सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को विस्तार से बताते हुए कहा कि सरकार हमेशा से ही किसानों की हितैषी रही है.

उन्होंने कहा कि खारे पानी और सेम की समस्या के समाधान के लिए 70 हजार एकड़ जमीन को सुधारने का काम किया जाएगा. किसानों को एकत्रित कर के एफपीओ बना कर खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. अभी तक 600 से ज्यादा एफपीओ बनाए गए हैं, जो किसानों की आय बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होंगे.

उन्होंने बताया कि छोटे किसानों के लिए सरकार ने पशुधन क्रेडिट कार्ड योजना व पशुओं का बीमा जैसी योजनाएं चलाई हैं. साथ ही, सरकार पशुओं के इलाज के लिए काल सेंटर भी खोलने जा रही है, जहां पशुपालक एक टोल फ्री नंबर पर बीमार पशु की सूचना दर्ज करवा सकेंगे, जिस के बाद पशु चिकित्सा वैन उन के घर आएगी और चिकित्सकों की टीम निःशुल्क इलाज करेगी.

Bajra
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विश्वविद्यालय के लिए किसानों का हित सर्वोपरि : कुलपति प्रो. बीआर कंबोज

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय किसानों की प्रगति के लिए निरंतर प्रयत्नशील है. इस विश्वविद्यालय ने विभिन्न फसलों, फलों, सब्जियों, तिलहनों, चारा आदि की 284 उन्नत किस्में विकसित कर के किसानों को सौगात दी है, ताकि वे अधिक उत्पादन ले कर ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकें.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने हाल ही में बाजरा, ज्वार, गेहूं व सरसों की नईनई किस्में विकसित की हैं व मोटा अनाज वाली फसलों पर भी शोध कार्य चल रहा है. यहां तैयार की गई बाजरे की बायोफोर्टीफाइड किस्म एचएचबी 299 लौह तत्व व जिंक से भरपूर है, जो आम लोगों को विभिन्न बीमारियों व कुपोषण से नजात दिलाएगी. इस के अलावा मोटे अनाजों से विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की तकनीक विकसित करने का काम हो रहा है. उच्च गुणवत्ता वाली गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 व सरसों की आरएच 725 किस्में किसानों को खास पसंद आ रही है.

उन्होंने हरियाणा प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय में चल रहे कार्यों के बारे में विस्तार से बताया. विश्वविद्यालय ने एग्रीबिजनैस इक्यूबेशन सेंटर के माध्यम से अब तक 100 से अधिक स्टार्टअप्स तैयार किए हैं.

उन्होंने आगे कहा कि युवा किसानों को स्वरोजगार शुरू करने में मदद करने के लिए उन को तकनीकी जानकारी व उद्यमशीलता की ट्रेनिंग दी जा रही है. विश्वविद्यालय ने इस वर्ष 18,500 क्विंटल उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों का बीज उपलब्ध करवाया है. विश्वविद्यालय की ओर से कुल 60 पेटेंट आवेदन किए हैं, जिन में से 20 को स्वीकृति भी मिल चुकी है.

कुलपति डा. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वो इसी तरह किसानों की सेवा करते रहें और किसान के खेत में जा कर अपने शोध कार्य की जांच करें, ताकि किसान विश्वविद्यालय के नए अनुसंधानों से सीधे तौर पर जुड़ सकें.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा एवं कुलपति, महाराणा प्रताप बागबानी विश्वविद्यालय, करनाल आईएएस में प्रधान सचिव विजयेंद्र कुमार ने विभाग द्वारा किसानों के हितों में चलाई जा रही योजनाओं की विस्तारपूर्वक जानकारी दी और कहा कि मेले में विशेष तौर पर किसानों को ड्रोन, प्राकृतिक खेती व मिलेट फसलों के उत्पादन से जुड़ी तकनीक के बारे में जागरूक किया. साथ ही, तीन दिवसीय मेले की विस्तृत रिपोर्ट पेश की.

Bajra
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इन प्रगतिशील किसानों को किया गया सम्मानित

इस अवसर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा कृषि के क्षेत्र में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले प्रदेश के 20 प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया गया. इन किसानों में यमुनानगर जिले से गुलाब सिंह व सुखविंदर सिंह, सोनीपत जिले से जसबीर, कुरुक्षेत्र जिले से अनिल, परविंदर व सुरेश, मेवात जिले से समसु, अंबाला जिले से मेवा सिंह, कैथल जिले से निर्मल व मनीष कुमार, झज्जर जिले से रमेश व विनय कुमार, रोहतक जिले से नरेंद्र, पंचकुला जिले से ओमप्रकाश, पलवल जिले से लेखी व बलराम, रेवाड़ी जिले से अमर, फरीदाबाद से रामकरण व सुशील चंद और भिवानी जिले से अमित कुमार शामिल हैं.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों व प्रदेश के कृषि एवं संबंधित विभागों द्वारा लगाई गई स्टालों का मुख्य अतिथि सहित अन्य अधिकारियों ने अवलोकन किया.

अंत में लक्की ड्रा द्वारा किसानों को कुल 16 लाख रुपए के इनाम दिए गए, जिन में सब से बड़ा बंपर इनाम ट्रैक्टर जींद स्थित गांव मोहलखेड़ा निवासी भरत सिंह को प्रदान किया गया. पहला इनाम छोटा ट्रैक्टर फतेहाबाद स्थित गांव किरढान निवासी अजीत सिंह, दूसरा इनाम लैंड लेवलर फतेहाबाद स्थित गांव टिब्बी निवासी सुरजीत, तीसरा इनाम सुपर सीडर भठिंडा के गांव गंगा अबलू की निवासी गुरपिंदर सिंह व चौथा इनाम पावर वीडर जींद के गांव दादौड़ी निवासी अंकित को दिए गए.

इस दौरान कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य व गीत गा कर किसानों का मनोरंजन किया.

इस अवसर पर भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला, बरवाला विधायक जोगीराम सिहाग, हांसी के विधायक विनोद भ्याणा, रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा व मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन आदित्य देवी लाल, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के महानिदेशक डा. नरहरि बांगड़ सहित अन्य गणमान्य मौजूद थे.

खेती को व्यापार से जोड़ें किसान और रोजगार पैदा करें

हिसार : 11 अक्तूबर.
किसान देख कर तकनीक को जल्दी सीखता है, दुनिया के अंदर क्या चल रहा है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार आ रही नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए भविष्य में इस किसान मेले का और भी विस्तार किया जाएगा, जिस में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के साथ कृषि से जुड़े हर विभाग व निजी संस्थान एक पटल पर आ कर किसानों की आय बढ़ाने का काम करेंगे.

ये विचार हरियाणा के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल ने कहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने की. मेले के दूसरे दिन ‘श्री अन्न एक सुपर फूड’ विषय पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विभिन्न सत्रों में उपस्थित किसानों को मोटे अनाज से बने व्यंजनों को थाली में शामिल करने के लिए प्रेरित किया.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि मुझे खुशी है कि इस मेले के दौरान 47 सम्मानित किसानों को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति भवन में भोज के लिए न्योता दिया है. इस से साबित होता है कि यह सरकार किसानों की हितैषी है.

कृषि मंत्री जेपी दलाल ने मेले में उपस्थित किसानों की संख्या देख कर कहा कि यह किसान मेला बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसे हम भविष्य में और विस्तार देंगे, ताकि अधिक से अधिक किसानों को लाभ हो सके.

Farmersउन्होंने यह भी कहा कि किसानों की खेती को व्यापार से जोड़ना होगा, ताकि वे आत्मनिर्भर बनें और रोजगार पैदा करें.

वहीं हरियाणा ने झींगा उत्पादन में देश में अलग पहचान बनाई है. विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए उत्पादों पर किसानों को बहुत विश्वास है, जिस का उदाहरण इस मेले के दौरान लाभान्वित हुए किसान हैं. सरकार खेती को लाभान्वित बनाने के लिए किसानों के समूह बना कर उन्हें एफपीओ के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हुए नवीनतम तकनीक से जोड़ने का प्रयास कर रही है. इस कदम पर सरकार ने देश में 10 हजार एफपीओ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

उन्होंने आगे कहा कि सरकार की तरफ से बाजरा, ज्वार व अन्य मिलेट्स पर भी अधिक ध्यान दिया जा रहा है, ताकि इन से बने पौष्टिक आहार के सेवन से किसानों व आमजन को स्वास्थ्य लाभ मिल सके. वर्तमान समय में तकनीकी के इस्तेमाल को देखते हुए कृषि विभाग ऐसा प्लेटफार्म देने का प्रयास करेगा, जिस से किसान सीधे तौर पर वैज्ञानिकों से जुड़ कर खेती में आने वाली समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकेगा.

किसानों के सवाल विश्वविद्यालय को करते हैं नए अनुसंधानों के लिए प्रेरित

Farmersकुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि जब से हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय बना है, तब से किसान मेले का आयोजन करवा रहा है. विश्वविद्यालय 6 लाख किसानों से मोबाइल एप के माध्यम से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. इसी कड़ी में मौसम विज्ञान विभाग इन किसानों तक मौसम की पूर्वानुमान जानकारी लगातार पहुंचा रहा है, जिस से किसानों को सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, कीटनाशकों का छिड़काव व अन्य कृषि क्रियाएं समय पर करने से संबंधित निर्णय लेने में मदद मिल रही है.

इस विश्वविद्यालय की खास बात है कि जो काम होता है, वो सीधा किसानों तक पहुंचाया जाता है. उन्होंने किसानों की प्रश्नोत्तरी को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि किसानों के द्वारा पूछे गए नए सवाल हमारे लिए शोध के विषय हैं और उन की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नए शोध किए जा रहे हैं.

उन्होंने मेले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यहां हरियाणा सहित दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों से किसान पहुंचते हैं और मेले का लाभ उठाते हैं. सभी के साथ मिल कर विश्वविद्यालय का लक्ष्य किसानों के जीवन में सुधार लाना है.

मोटे अनाजों को बढ़ावा

उन्होंने मोटे अनाज का स्वास्थ्य में लाभ बताते हुए कहा कि मोटे अनाज के शोध कार्यों में विश्वविद्यालय अग्रसर है और सरकार ने बाजरे के आटे को भी जीएसटी से मुक्त किया हुआ है.

कुलपति डा. बीआर कंबोज ने बताया कि वर्ष 2023 को मोटे अनाजों के वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है. विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई बायोफोर्टीफाइड किस्मों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में विश्वविद्यालय ने बाजरे की ऐसी किस्में विकसित की हैं, जो कि लौह तत्व व जिंक से भरपूर है व आमजन को विभिन्न बीमारियों व कुपोषण से नजात दिलाएगी. इस के अलावा मोटे अनाजों से विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की तकनीक विकसित करने का काम हो रहा है.

नवाचार अपनाएं किसान

उन्होंने किसानों को नवाचार अपनाते हुए एकीकृत कृषि प्रणाली, जिस में कृषि के साथसाथ अन्य उद्यम जैसे मशरूम, मधुमक्खी, मशरूम, बागबानी, सब्जी उत्पादन, नकदी फसल, चारा फसल, पशुपालन, मुरगीपालन व मत्स्यपालन को शामिल कर के कृषि में जोखिम को कम करने व लाभदायक व्यवसाय बनाने की सलाह दी.

पशुपालन विभाग के चेयरमैन धर्मबीर मिर्जापुर ने भी सरकार द्वारा किसानों के हित में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी किसानों को दी.

मेले में दूसरे दिन ‘मिलेट एक सुपर फूड और प्राकृतिक खेती’ विषय पर विभिन्न सत्र आयोजित किए गए, जिस में डा. हरिओम, डा. देवव्रत, डा. वीना सांगवान, डा. पम्मी और डा. उमेंद्र दत्त ने अपनेअपने विषयों पर जानकारी दी.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों व कृषि विभागों द्वारा लगाई गई स्टालों का मुख्य अतिथि सहित अन्य अधिकारियों ने अवलोकन भी किया.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के महानिदेशक डा. नरहरि बांगड़ ने धन्यवाद पारित किया. इस दौरान शमशेर सिंह खरकड़ा, विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल, मेला अधिकारी मीतू धनखड़ व अन्य अधिकारी मंच पर उपस्थित रहे.

कछुओं के 955 बच्चों को बचाया

भोपाल : राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई) ने एक ही दिन में नागपुर, भोपाल और चेन्नई में गंगा में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों के कछुओं के 955 जीवित बच्चों के साथ 6 लोगों को पकड़ा.

गंगा में रहने वाले कछुओं, जिन में से कुछ को आईयूसीएन की रैड लिस्ट और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I एवं II के तहत खतरे में/करीब संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, की अवैध तस्करी और व्यापार में शामिल एक सिंडिकेट के बारे में डीआरआई (राजस्व आसूचना निदेशालय) के अधिकारियों द्वारा खुफिया जानकारी जुटाई गई थी. अवैध व्यापार और घटता प्राकृतिक निवास स्थान इन प्रजातियों के लिए बड़ा खतरा है.

डीआरआई के अधिकारियों ने देश में विभिन्न स्थानों पर अपराधियों को एकसाथ पकड़ने और कछुओं को बचाने के लिए एक जटिल और अखिल भारतीय योजना तैयार की है.

Turtlesअधिकारियों के पूरे देश में चले सम्मिलित प्रयासों के परिणामस्वरूप 30 सितंबर को नागपुर, भोपाल और चेन्नई में कुल 6 व्यक्तियों को पकड़ा गया और कछुओं की विभिन्न प्रजातियों के 955 जीवित बच्चों को बरामद किया गया. बचाए गए गंगा के कछुओं की प्रजातियां इंडियन टेंट टर्टल, इंडियन फ्लैपशेल टर्टल, क्राउन रिवर टर्टल, ब्लैक स्पौटेड/पौंड टर्टल और ब्राउन रूफ्ड टर्टल हैं.

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत प्रारंभिक जब्ती के बाद, अपराधियों और गंगा के कछुओं को आगे की जांच के लिए संबंधित वन विभागों को सौंप दिया गया.
यह आपरेशन पिछले महीनों से जारी ऐसे ही अन्य कार्रवाईयों की श्रंखला का हिस्सा है, क्योंकि डीआरआई पर्यावरण को संरक्षित रखने और अवैध वन्यजीव तस्करी से निबटने के अपने संकल्प को जारी रखे हुए है.

बता दें कि आईयूसीएल की रैड लिस्ट और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I और II के तहत खतरे में/संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में निर्दिष्ट किया गया है. साथ ही, अवैध व्यापार, मांस के लिए अत्यधिक शिकार और घटते प्राकृतिक निवास स्थान इन प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बड़े खतरे हैं.

दतिया में पशु चिकित्सा एवं मात्स्यिकी कालेजों का उद्घाटन

दतिया/झांसी/नई दिल्ली : 5 अक्तूबर, 2023. रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के अंतर्गत पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान व मात्स्यिकी महाविद्यालयों का उद्घाटन दतिया के गांव नौनेर में पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया.

इस अवसर पर मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, सांसद संध्या राय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, कुलाधिपति डा. पंजाब सिंह और कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह मुख्य रूप से उपस्थित थे.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आईसीएआर के वैज्ञानिकों का कृषि क्षेत्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अब एक ही कार्यकाल में शिलान्यास के साथ शुभारंभ भी संपन्न हो रहा है, यह बहुत कम ही हो पाता है. यह सब डबल इंजन की सरकार से संभव हो पाया है.

veterinary and fisheries college
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कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि बुंदेलखंड खेती के लिए प्रसिद्ध रहा है, क्षेत्र में पलायन के बजाय कृषि वैज्ञानिकों के कार्यों की बदौलत खेती अब तेजी से फलफूल रही है.

उन्होंने उम्मीद जताई कि यहां जैविक व प्राकृतिक खेती को भी निश्चय ही बढ़ावा मिलेगा. हमारे कृषि वैज्ञानिक हर चुनौती का समाधान देने के लिए तत्पर है.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जानकारी देते हुए आगे बताया कि आज हमारा देश दूसरों की मदद करने वाला देश बन गया है. कृषि विभाग, पशुपालन एवं मत्स्यपालन विभागों में नवाचारों से देश को काफी लाभ प्राप्त हो रहा है.

पहले कहावत थी कि खेती उस की, जिस के पास पानी है, लेकिन आज यह कहावत बदल गई है, अब खेती उस की, जिसके पास ज्ञान है. उन्होंने आशा प्रकट की कि ये कालेज पूरे देश के लिए कार्य करते हुए सभी के लिए काफी लाभप्रद सिद्ध होगा. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि बुंदेलखंड के लिए यह केंद्र सरकार से मिली बहुत बड़ी सौगात है. उन्होंने इस के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित सभी का आभार प्रकट किया.

प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि क्षेत्र के लिए यह अमूल्य धरोहर है. निश्चित ही दोनों कालेज छोटेमझौले किसानों के सशक्तिकरण में मील का पत्थर साबित होंगे.

उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से अनुरोध किया कि यहां के किसानों के लिए ड्रोन सुविधा प्रदान की जाए, जिस से किसानों को खेतीबारी के साथसाथ अन्य लाभ भी होगा.

सांसद संध्या राय, कुलाधिपति डा. पंजाब सिंह, आईसीएआर डीजी डा. हिमांशु पाठक ने भी विचार रखे.

कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया. इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के निदेशक प्रसार शिक्षा डा. एसएस सिंह, निदेशक शोध डा. एसके चतुर्वेदी, निदेशक शिक्षा डा. अनिल कुमार, अधिष्ठाता कृषि डा. आरके सिंह, अधिष्ठाता मात्स्यिकी डा. वीके वेहरा, कुलसचिव डा. मुकेश श्रीवास्तव, पुस्तकालयाध्यक्ष डा. एसएस कुशवाह, अधिष्ठाता, उद्यानिकी वानिकी डा. एमजे डोबरियाल सहित तमाम अधिकारी मौजूद थे.

चूहाछछूंदर की रोकथाम, करें ये काम

उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले के जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक ने बताया है कि संचारी रोग नियंत्रण अभियान के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में कृषि विभाग की तरफ से चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि चूहे न सिर्फ हमारे घरों में रखे सामान, अनाज इत्यादि नष्ट करते हैं, वरन प्लेग जैसे रोग के वाहक का काम करते हैं. स्तनपाइयों में रोडेंट और्डर सर्वाधिक विविधता का है, जिस में 2200 से अधिक प्रजातियां हैं. ये सामाजिक जीव हैं, जिन की संतानोत्पत्ति की क्षमता अत्यधिक होती है. एक जोड़ी चूहे की सालभर में 1,000 से अधिक संख्या उत्पन्न होती है. चूहे का नियंत्रण सामूहिक रूप से 30 से 40 व्यक्तियों या किसान समूहों द्वारा साप्ताहिक रूप से कार्यक्रम चला कर ही संभव है.

ऐसे करें रोकथाम

चूहों की रोकथाम के लिए सब से पहले खेतों का मुआयना कर जिंदा बिलों की पहचान आवश्यक है, जिन्हें चिन्हित कर एवं बंद करते हुए झंडा लगा दें. दूसरे दिन निरीक्षण में जो बिल बंद हो, वहां से झंडा हटा दें और जहां बिल खुले पाए गए, वहां झंडा लगा रहने दें. खुले बिल में बिना जहर का चारा (एक भाग सरसों का तेल एवं 48 भाग चना/बेसन रखें. अगले दिन पुनः बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा रखें. उस के अगले दिन जिंक फास्फाइड 80 फीसदी की एक ग्राम मात्रा, एक ग्राम सरसों का तेल व 48 ग्राम भुना चना आदि से बने चारे को बिल में रखें. अगले दिन बिलों का निरीक्षण करें और मरे चूहों को एकत्र कर जमीन में दबा दें और अगले दिन बिलों को बंद कर दें. उस के अगले दिन यदि बिल खुले पाए जाएं तो कार्यक्रम पुनः प्रारंभ कर दें.

घरों में इस तरह से करें चूहा रोकथाम

घरों में चूहा रोकथाम के लिए जिंक फास्फाइड के अलावा ब्रोमोडाईलोन 0.0055 फीसदी की टिकिया का प्रयोग किया जा सकता है, जिसे चूहा 3 से 4 बार खाने के बाद मरता है. चूहों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए अन्न भंडारण धातु की बखारियों, पक्के कंक्रीट पात्रों का प्रयोग करें, जिस से उन को भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो. चूहों की बिल झाड़ियां, मेड़ों, कूड़ों आदि स्थाई रूप से होती हैं, जिन की नियमित साफसफाई करने से इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है.

चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं यथा बिल्ली, उल्लू, बाज, चमगादड़, नेवला आदि का संरक्षण किसान अपने खेतों में करने के साथसाथ खेतों में बर्ड प्रचर लगाएं, जिस पर पक्षी बैठ कर चूहों का शिकार कर सकें.

चूहों से फैलती हैं ये बीमारियां

चूहों के मलमूत्र, बाल, लार आदि में रोगों के कीटाणु होते हैं, जिन से प्लेग, लेपिडोस्पोरोसिस आदि बीमारियां फैलती हैं. स्क्रब टाइफाइस बीमारी एक विशेष प्रकार की माईट/चीगर्स द्वारा फैलती है, जो मुख्य रूप से झाड़झंखाड़ में बहुतायत पाए जाते हैं एवं चूहों के शरीर पर चिपक कर घरों में आ जाते हैं, जिन से जीवाणुजनित टायफस बुखार होता है.

उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार चूहा नियंत्रण जनस्वास्थ्य, फसल सुरक्षा आदि में अत्यावश्यक होता है. जेई रोग एवं अन्य संक्रामक रोगों के विषाणुओं के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष प्रकार के पौधों को लगा कर नियंत्रण किया जा सकता है. जैसे गेंदा, गुलदाउदी, साइट्रोनिला, रोजमैरी, तुलसी लैवेंडर, जिरैनियम, मिंट/पिपरमेंट आदि. ये पौधे तीव्र गंध वाले एसेंशियल औयल अवमुक्त करते हैं, जिन से मच्छर दूर भाग जाते हैं. इसलिए इस प्रकार के फूलपौधों को आसपास लगाने से वातावरण तो सुगंधित होता ही है, साथ ही साथ खतरनाक मच्छरों से भी नजात मिलता है. इन में से कुछ पौधों की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किए जाते हैं, जो मच्छरों की घाण क्षमता को ही समाप्त कर देते हैं. इस प्रकार इन पौधों के रोपण द्वारा मच्छरों को भी दूर कर जेई जैसे खतरनाक रोग के प्रकोप से बचाव किया जा सकता है

मुरैना जिले में खुलेगा हौर्टिकल्चर कालेज

नई दिल्ली/भोपाल/मुरैना : 5 अक्तूबर, 2023. केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग ने रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के तहत मुरैना जिले में हौर्टिकल्चर कालेज स्थापित करने का निर्णय लिया है. इस के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की पहल पर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है, वहीं मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा तहसील पोरसा, जिला मुरैना में लगभग 300 एकड़ भूमि का आवंटन भी कर दिया गया है. इस कालेज की स्थापना पर तकरीबन 160 करोड़ रुपए की लागत आएगी, जिस का वहन केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा.

इस अंचल में यह कालेज अपनी तरह का पहला कालेज होगा एवं इस में स्नातक स्तर की पढ़ाई होगी, जिस में फल विज्ञान, सब्जी विज्ञान, फूलों की खेती और भूनिर्माण, पौध संरक्षण, सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, बुनियादी विज्ञान आदि जैसे विभिन्न विभाग होंगे.

इस कालेज के माध्यम से हौर्टिकल्चर संबंधी अनुसंधान कार्यों को भी गति मिलेगी. साथ ही, नए रोजगार भी सृजित होंगे और क्षेत्र के किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी यह कालेज सहायक होगा. चंबलग्वालियर क्षेत्र में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के प्रयासों से इस तरह एक के बाद एक अनेक सौगातें मिली हैं.

मुरैना मध्य भारत के पठार व कृषि पारिस्थितिक उपक्षेत्र, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईईसीएआर) के बुंदेलखंड ऊपरी क्षेत्र के अंतर्गत आता है. मुरैना जिले की अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि प्रधान है. जिले में कृषि, बागबानी एवं डेरी मुख्य व्यवसाय है. यहां बागबानी फसलों के अंतर्गत अमरूद, नींबू, आम जैसे फल और आलू, टमाटर, बैंगन, मिर्च, खीरा आदि सब्जियां उगाई जाती हैं.

मुरैना जिले में धनिया, अदरक, हलदी, मिर्च, लहसुन जैसे विभिन्न मसालों के साथसाथ गेंदा, गुलाब एवं गिलार्डिया जैसे फूलों की भी खेती की जाती है.

मुरैना जिला विभिन्न फलों, सब्जियों एवं फूलों के बड़े उत्पादक के रूप में उभर रहा है. यद्यपि क्षेत्र में हाल के दशक में बागबानी फसलों की खेती अत्यधिक लाभकारी उद्यम के रूप में उभरी है, फिर भी यह जिले में सकल फसल क्षेत्र का तकरीबन 2.5 फीसदी ही है, इसलिए प्रस्तावित कालेज न केवल मुरैना जिले, बल्कि चंबलग्वालियर क्षेत्र की समग्र प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए मील का पत्थर साबित होगा

जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम पर कार्यशाला

गया : कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर, गया के नवनिर्मित प्रशिक्षण भवन में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत मगध प्रमंडल में कृषि विविधीकरण की संभावना विषय पर कार्यशाला व सहसंगोष्ठी कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि व सहउद्घाटनकर्ता कुमार सर्वजीत, कृषि मंत्री, बिहार सरकार द्वारा एवं कुलपति, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की उपस्थिति में किया गया.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कृषि मंत्री, बिहार ने अपने संबोधन में गया जिला में फसल विविधीकरण की संभावना को देखते हुए मोटे अनाज चीना, मड़ुआ, रागी, कोदो आदि की खेती परंपरागत खेती से हट कर करने का आह्वान किया.

इस कड़ी में उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र पर मोटे अनाज के बीज उत्पादन करने की सलाह दी, जिस से किसानों को आसानी से मोटे अनाज के बीज उपलब्ध हो सकें. इस दिशा में जिले में भी काम करना प्रारंभ कर दिया है. उन के प्रयास से गया जिले में तिल की खेती की शुरुआत हो चुकी है, जिस का अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है.

बिहार के गरीब किसानों को आसानी से सभी सुविधा मिल सके, इस के लिए छोटे कृषि यंत्रों को भी योजना में शामिल किया गया है.

Jalvayu

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डा. डीआर सिंह ने बताया कि गया जिले में मोटे अनाज और शुष्क क्षेत्रों के लिए उद्यानिक फसलों की काफी संभावना है. इस के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र पर उन्नत प्रभेद के कटहल, जामुन, आंवला, बेर एवं बेल की मातृ पौधशाला लगाने का निर्देश दिया, जिस से इन फसलों को गया प्रमंडल में बढ़ावा दिया जा सके.

इस अवसर पर तकरीबन 500 से अधिक किसानों ने भाग लिया. मौके पर डा. आरके सोहाने, निदेशक प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, संयुक्त निदेशक कृषि मगध प्रमंडल सुधीर कुमार, डा. अभय कुमार, प्रधान वैज्ञानिक आईसीएआर, पटना; डा. अमरेंद्र कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, अटारी जोन-4, पटना एवं डा. आरके जाट, वरीय सस्यविद, बीसा, पूसा (समस्तीपुर) ने मगध प्रमंडल में कृषि विविधीकरण की संभावना पर अपनेअपने अनुभव एवं विचार किसानों के बीच व्यक्त किए.

इस अवसर पर केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान ई. मनोज कुमार राय ने सभी अतिथियों, पदाधिकारियों, किसानों का धन्यवाद ज्ञापन किया.

बीएयू में 26वीं शोध अनुसंधान परिषद का आरंभ

भागलपुर : इस दोदिवसीय बैठक में एफएओ और यूएनओ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं मे देश का मान बढ़ा चुके जानेमाने वैज्ञानिक डा. राम चेत चौधरी और डा. मान सिंह, पूर्व परियोजना निदेशक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र, आईएआरआई, नई दिल्ली विशेषज्ञ के तौर पर शिरकत कर रहे हैं. विभिन्न जिलों से आए प्रगतिशील किसान प्रीति कुमारी (कटिहार), ओंकार प्रसाद महतो (लखीसराय) और अविनाश कुमार (औरंगाबाद) भी उद्घाटन सत्र का हिस्सा रहे. डा. अनिल कुमार सिंह, निदेशक अनुसंधान, बीएयू, सबौर ने अतिथियों का स्वागत किया और विश्वविद्यालय में चल रही अनुसंधान गतिविधियों को प्रस्तुत किया.

उन्होंने बताया कि बीएयू द्वारा अभी तक विभिन्न फसलों के 35 उन्नतशील प्रभेदों का विकास किया जा चुका है. वहीं विश्वविध्यालय द्वारा कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में 67 तकनीकों को भी विकसित एवं विमोकित कर किसानों को समर्पित किया गया है.

विशेषज्ञ वैज्ञानिक डा. मान सिंह ने बीएयू के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बढ़ रहे कद के लिए कुलपति डा. डीआर सिंह की दूरदर्शिता एवं किसानों के लिए उन की सोच की सराहना की, जिस से बिहार में प्रयोगशाला से खेत तक (लैब टु लैंड) का सपना साकार होता नजर आ रहा है.

विशेषज्ञ वैज्ञानिक डा. आरसी चौधरी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन का बीएयू से जुड़ाव बहुत पुराना है, जब उन्होंने एआरआई पटना को बतौर क्षेत्रीय प्रबंधक साल 1979 में जौइन किया था. उन्होंने विश्वविध्यालय के मीडिया सेंटर द्वारा किए जा रहे उत्कृष्ट कार्यों की सराहना की.

बैठक में आईआरसी, इस्लामपुर के वैज्ञानिक डा. शिवनाथ दास द्वारा औषधीय पौधों से संबंधित 3 प्रकाशनों का भी विमोचन किया गया.

research council

बीएयू के कुलपति डा. डीआर सिंह ने अध्यक्षीय संबोधन में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कामों की सराहना करते हुए कहा कि देश में पहली बार किसी विश्वविद्यालय से जुड़े किसानों को इतनी बड़ी संख्या में एकसाथ राष्ट्रीय पादप जीनोम सेवियर पुरस्कार मिले हैं.

उन्होंने आगे बताया कि बीएयू को 3 पेटेंट्स मिल चुके हैं और हाल ही में विकसित 4 फसल प्रभेदों और अन्य कृषि तकनीकों को भी विकसित किया गया है, जो राज्य के किसानों को समर्पित किए जा चुके हैं. इस के अलावा कतरनी धान और जरदालू आम के पैकेजिंग को भी मूर्त रूप दिया गया है, जो इन बहुमूल्य कृषि उत्पादों की बढ़ोतरी में सहायक सिद्ध होंगे.

उन्होंने वैज्ञानिकों को प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव और उन की गुणवत्ता में गिरावट, कुपोषण, व्यावसायीकरण और विविधीकरण, अधिक पोषक मूल्य वाले भोजन में परिवर्तन जैसे 7 प्रमुख क्षेत्रों पर काम करने की जरूरत पर बल दिया. तत्पश्चात अलगअलग कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार क्षेत्रीय अनुसंधान एवं सलाहकार समिति की बैठक की कार्रवाही का प्रस्तुतीकरण डा. एसएन राय, प्राचार्य, बिहार कृषि महाविध्यालय जोन-3ए) डा. रणधीर कुमार, क्षेत्रीय प्रबंधक, एआरआई, पटना (जोन-3बी), और डा. अरुणिमा कुमारी, प्राचार्या, एमबीएसी, अगवानपुर सहरसा (जोन-2) द्वारा किया गया. इन में जोन- 3बी के लिए दोदिवसीय शोध परिषद मे बीएयू में चल रहे विभिन्न शोध परियोजनाओं के प्रगति प्रतिवेदन पर चर्चा होने के साथ ही धान और गेहूं के 1-1 प्रभेद और 3 उन्नत कृषि तकनीकों के संस्तुतीकरण किए जाने की संभावना है.

सभा के उद्घाटन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन उपनिदेशक शोध डा. शेलबाला डे द्वारा प्रस्तुत किया गया.

कृषि विज्ञान केंद्र, भदोही में “बटन मशरूम उत्पादन” प्रशिक्षण संपन्न

भदोही : 3 अक्तूबर, 2023 को निदेशक, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के निर्देशन में कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां, भदोही के परिसर में आयोजित पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि जिला उद्यान अधिकारी, भदोही ममता सिंह यादव ने प्रशिक्षणार्थी को संबोधित करते हुए कहा कि प्रशिक्षणार्थी सैद्धांतिक व प्रयोगात्मक तकनीक का उपयोग कर अपनी आय को बढ़ाएं और जिले को मशरूम उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएं. उन्होंने उद्यान विभाग से चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं का लाभ व उद्यान विभाग द्वारा मशरूम की खेती में हर संभव मदद करने को कहा.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष ने मुख्य अतिथि और प्रशिक्षणार्थियों का स्वागत करते हुए अपने संबोधन में खेती में अपनी आय बढ़ाने के अन्य विकल्प और विभिन्न तकनीकों को शामिल करने की सलाह दी.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि और अध्यक्ष द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त 23 प्रशिक्षणार्थियों/ किसानों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. मनोज कुमार पांडेय ने मशरूम को एक स्वरोजगार का साधन बताते हुए इस के पौष्टिक लाभ भी बताएं.

इस अवसर पर कार्यक्रम में केंद्र के सर्वेश बरनवाल, अमित सिंह व प्रशिक्षणार्थी निकेता द्विवेदी, चंद्रा देवी, प्रमोद त्रिपाठी, अजित यादव, श्याम नारायण प्रजापति, जिलाजीत यादव, शेषनारायण सिंह आदि उपस्थित थे. डा. प्रभाष चंद्र सिंह ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और प्रशिक्षणार्थियों को धन्यवाद ज्ञापित किया.