Inspiring Personalities : संध्या सिंह (Sandhya Singh) उत्तरप्रदेश के गांव सरौनी, जिला जौनपुर की रहने वाली हैं, जिन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट तक शिक्षा हासिल की है और पशुपालन के क्षेत्र में बड़ा कारनामा हासिल किया है. खुद पशुपालन कर लाखों की कमाई कर रही है, इस के अलावा अपने एफपीओ कृषक प्रोडयूसर कंपनी के जरिए अनेक लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रही हैं.

संध्या सिंह (Sandhya Singh) पशुपालन करने के साथसाथ खाद प्रसंस्करण पर निशुल्क ट्रेनिंग देने का भी काम कर रही हैं जहां से सैंकड़ों महिलाओं ने सीखकर आज खुद का काम कर रोजगार प्राप्त कर रही हैं.

फूड प्रोसैससिंग के जरिए वह दूसरी महिलाओं को बड़े पैमाने पर अचार, मुरब्बा, पेठा, जैम, जैली आदि बनाना भी सिखाती हैं. जिस की मदद से कई महिलाएं अच्छी कमाई कर रही हैं.

उन्होंने बताया कि उन के पास इस समय लगभग 200 से अधिक देशी, साहिवाल और गिर नस्ल की गायें है. साथ ही, जमुनापारी, सिरोही और बरबरी नस्ल की लगभग 25 बकरियां हैं. जिस से वह सैंकड़ों लिटर दूध उत्पादन ले कर अच्छी कमाई कर रही है. इस के अलावा वह मुरगीपालन भी करती हैं. जिस में वह कैरी और सोनाली नस्ल की मुरगियोंका पालन करती  हैं.

Sandhya Singh

संध्या सिंह (Sandhya Singh) ने बताया कि पशुपालन में वह पशुओं का रहनसहन और उन के टीकाकरण का खास ध्यान रखती हैं. सभी पशुओं के खानपान पर लगभग 9 हजार प्रतिदिन का खर्च आता है. इस के साथ ही, अलगअलग प्रकार से पशुओं के रहने की व्यवस्था भी अलगअलग तरह से की जाती है. जिस में नवजात पशुओं को अलग, सांडो को अलग, सालभर चारे का प्रबंधन, गरमी सर्दी और बरसात के अनुसार उन के रहने की व्यवस्था का भी खास ध्यान रखा जाता है.

इस के साथ ही, समयसमय पर पशुओं को टीकाकरण में खुरपका मुंहपका, तिल्ली ज्वर, लंगड़ा बुखार और गला घोटूं का टीका लगवाया जाता है. जिस से पशु स्वस्थ रहे और गुणवत्ता युक्त दूध उत्पादन लिया जा सके.

पशुओं द्वारा खाना छोड़ देने पर 100 किलोग्राम मिश्रित दाने के साथ 250 ग्राम सोडियम बाकार्बोनेट दिया जाता है. पशु में कृमि की समस्या होने पर खासतौर पर कृमि नाशक एल्बेंडाजोल और आइवरमेक्टिन का उपयोग किया जाता है. इस के साथ ही, पशुओं की आने वाली नस्ल बेहतर हो इस के लिए स्वस्थ और शुद्ध नस्ल के सांड द्वारा प्राकृतिक गर्भधान एवं कृत्रिम गर्भधान कराया जाता है.

संध्या सिंह (Sandhya Singh) ने बताया कि वह पशुपालन का सब से बड़ा फायदा यह भी है कि हम उस साल वर्मी कंपोस्ट, चारा उत्पादन, गोबर से हवन के उपले का उत्पादन कर लगभग 80 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं और खुद भी 60 से 70 हजार हर महीने की अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं.

इस काम के लिए संध्या सिंह (Sandhya Singh) को समयसमय पर कृषि विज्ञान केंद्र जौनपुर के कृषि वैज्ञानिकों और पशु वैज्ञानिकों का भी सहयोग मिलता रहा है.

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