Fruit Trees: तमाम पौधों की तादाद में इजाफा करने के काम को प्रवर्धन या प्रसारण कहा जाता है. फलदार पेड़ों का प्रवर्धन बीज व वानस्पतिक दोनों ही तरीकों से किया जा सकता है. लेकिन फलों की बहुत सी जातियां ऐसी होती हैं, जिन में बीज नहीं पाए जाते, जैसे केला और अनन्नास, इन में हमेशा वानस्पतिक तरीके से बढ़ोतरी की जाती है. यहां हम दोनों ही तरीकों के बारे में बताएंगे.

बीज द्वारा प्रवर्धन : बीजों की मदद से तैयार किए गए पौधे बीजू पौधे कहलाते हैं. चुने गए फलों से बीजों को सावधानीपूर्वक निकाल कर उन्हें छाया में सुखा कर इकट्ठा कर लेना चाहिए. उन को अधिक मसलना नुकसानदायक होता है. इन बीजों को नर्सरी में उगाया जाता है और जब पौधे 15 सेंटीमीटर के हो जाएं तो उन्हें ज्यादा फासले के साथ क्यारियों में लगा देना चाहिए.

बीजों से पौधे तैयार करने के फायदे

* बीज द्वारा पौधे तैयार करना बहुत आसान है.

* इस में खर्च भी कम होता है.

* इस को प्रजनन कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

* नई प्रजातियां बनाने में मूलवृंत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

* इन में कीड़े व बीमारियां भी कम लगती हैं.

* इस तरह तैयार पौधे बहुत लंबी उम्र वाले होते हैं.

* पपीता व फालसा के पौधे केवल बीज द्वारा तैयार होते हैं.

नुकसान

* बीजू पौधे ज्यादा समय बाद फल देना शुरू करते हैं.

* ये अपने पैतृक पेड़ जैसे गुणों वाले नहीं होते हैं.

* इन की बढ़वार ज्यादा होने के कारण फल तोड़ने में परेशानी होती है.

* ऐसे फल जिन में बीज नहीं पाए जाते जैसे केला, अंगूर व अनन्नास वगैरह को बीज द्वारा उगाया नहीं जा सकता.

वानस्पतिक प्रवर्धन

इस तरीके में बीजों से नहीं बल्कि पौधों के दूसरे हिस्सों जैसे जड़ व पत्तियों के द्वारा नए पौधे तैयार किए जाते हैं. ये बीजू पौधों से अच्छे होते हैं, क्योंकि इस में पौधे पैतृक पेड़ के ही समान गुणों वाले होते हैं. ये थोड़े समय में ही फल देना शुरू कर देते हैं. बहुत से फल जैसे केला, अनन्नास, अंगूर बीज रहित होने की वजह से इस विधि द्वारा प्रवर्धित किए जाते हैं. इन पेड़ों का आकार भी छोटा होता है.

वानस्पतिक प्रवर्धन के अलगअलग तरीके

कलम लगाना : यह पौधों के प्रवर्धन की एक ऐसी विधि है, जिस में पौधों के हिस्सों जैसे जड़, तना या पत्ती को पौधों से अलग कर के सही जगह पर लगा दिया जाता है, ताकि वह नए पौधे को जन्म दे सके.

जड़ कलम : कुछ फलों के पौधों को जड़ कलम द्वारा पैदा किया जा सकता है, जैसे नाशपाती सेब, लीची, आलू बुखारा व अमरूद आदि.

कलम तैयार करने के लिए जड़ की मोटाई कम से कम आधा सेंटीमीटर और लंबाई 5 से 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए. इन्हें जाड़ों में तैयार कर के रेत में दबा कर रखा जा सकता है. बसंत की शुरुआत में इन को तैयार की गई मिट्टी में लंबवत या समानांतर लगा दिया जाता है.

तना कलम : जो पौधे तने व शाखाओं से कलम तैयार कर के लगाए जाते हैं, उन्हें तना कलम के नाम से पुकारते हैं. लकड़ी की स्थिति के अनुसार इन को 3 भागों में बांटते हैं.

कड़ी लकड़ी से बनी कलमें : ये 1 साल से ज्यादा उम्र की शाखाएं व तने होते हैं. इन का रंग भूरा होता है. इन को 15-25 सेंटीमीटर लंबाई में बना कर जमीन में लंबवत लगाया जाता है. इन का इस्तेमाल पतझड़ी फल पेड़ों में किया जाता है.

मध्यम कड़ी लकड़ी से बनी कलमें: ये कम पकी लकड़ी जिस की उम्र करीब 1 मौसम पुरानी हो, से तैयार की जाती हैं. इस तरह से अनार, अंजीर, नाशपाती व नीबू की कलमों को तैयार किया जाता है.

मुलायम या कोमल लकड़ी से बनी कलमें : ये कलमें पेड़ों के मुलायम भाग से तैयार की जाती हैं. इन में कार्बोहाइड्रेट बहुत कम होता है. इन कलमों का रंग हरा और पत्तियां बहुत ज्यादा होती हैं. इन कलमों की लंबाई 10-15 सेंटीमीटर रखी जाती है. इन कलमों में अमरूद, क्राइजेंथीमय और कोलियस के नाम उल्लेखनीय हैं.

Fruit Trees

कलमें लगाने का समय

कलमें तब लगाई जाती हैं, जब पौधों में बढ़ोतरी करने का समय शुरू होता है. पर्णपाती फल पेड़ों की कलमें पौधों की सोई अवस्था में ही बना ली जाती हैं. उन्हें ठंडी और नम मिट्टी या बुरादे में दबा कर रख दिया जाता है और बसंत के मौसम के शुरू होने पर बगीचों में लगा दिया जाता है.

कलमों को बनाते समय ऊपर वाला सिरा तिरछा व नीचे का सिरा सीधा काटना चाहिए. कलमों को नर्सरी में 45 डिगरी का कोण बनाते हुए तिरछा लगाना चाहिए. कलमों का 2/3 भाग जमीन के अंदर व मुंह दक्षिण की तरफ होना चाहिए. कलमों को आईबीए या सेरेडिक्स के घोल में डुबो कर लगाना चाहिए.

जड़ निकलने की क्रिया पर प्रभाव डालने वाली बातें :

* आर्द्रता

* तापमान

* रोशनी

* रासायनिक पदार्थ

* निचले कटाव की स्थिति

विभाजन द्वारा पौधे उत्पन्न करना : भूमिगत तनों जैसे बल्ब, शिफा, वृंत, आकंद, कंदिका वगैरह को समूचा लें या हिस्सों में काटें. हर हिस्से में कम से कम 1 आंख होनी चाहिए. इसे लगाने से नए पौधे तैयार किए जा सकते हैं.

लेयरिंग या दाबा लगाना : जब किसी शाखा या तने को उस के अपने  ही स्थान पर जड़ें पैदा करने के लिए दबा दिया जाता है, तो इस काम को लेयरिंग कहते हैं.

इस विधि में करीब 1 साल की टहनी या तने को झुका कर उस के नीचे के भाग को जमीन में नीचे दबा दिया जाता है. शाखा के दबे हुए भाग से कुछ दिनों में जड़ें निकल आती हैं.

बाद में पौधे काट कर अलग कर दिए जाते हैं.

लेयरिंग की 2 मुख्य विधियां ग्राउंड लेयरिंग व गूटी हैं :

ग्राउंड लेयरिंग : इस में साधारण लेयरिंग, सांप की तरह लेयरिंग, बलयाकार लेयरिंग, जिव्हा लेयरिंग, स्टूल या माउंट लेयरिंग, टिप लेयरिंग, ट्रेंच लेयरिंग व मचार लेयरिंग शामिल हैं.

गूटी : इस विधि में पौधे की ऊपरी शाखाओं से जड़ें निकाली जाती हैं. बहुत से पेड़ ऐसे होते हैं, जिन की शाखाओं को झुका कर मिट्टी से छुलाया नहीं जा सकता. ऐसे पेड़ों में इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है. इस में जुलाई व अगस्त में चुनी हुई शाखाओं पर 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर लंबाई में छाल वलयाकार में निकाल दी जाती है.

ऊपर से 20-30 सेंटीमीटर छोड़ते हुए और उस भाग पर सेरेडिक्स पेस्ट लगा कर उस स्थान पर गीली (पानी में भीगी हुई) मांस ग्रास पौलीथीन से बांध दी जाती है, जिस से उस भाग में जड़ें निकल आती हैं और 1 महीने बाद उस जगह के नीचे से काट कर अलग कर दिया जाता है, जैसे अमरूद में.

रोपण : रोपण पौधे के 2 भागों (मूलवृंत व शाखा) को जोड़ने की एक कला है, जिन्हें जोड़ कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है.

रोपण के मुख्य उद्देश्य

* रोपण द्वारा तैयार पौधे बीजू पौधों से 2-3 साल पहले फल दे देते हैं.

* अच्छी जाति के पेड़ तैयार किए जा सकते हैं.

* कम ऊंचाई के पेड़ तैयार हो जाते हैं, जिन से फल तोड़ने में आसानी रहती है.

* अपनी इच्छानुसार पेड़ तैयार किए जा सकते हैं.

कली लगाना (कलिकायन): कली लगाना प्रवर्धन की सब से नई विधि है. इस में पैतृक पेड़ से शाखा चुन कर उस से कली निकाल कर मूलवृंत में उस के लिए जगह तैयार कर के लगा दिया जाता है. जब कली मिल जाती है तो उस से नई शाखा निकल कर पौधे का रूप ले लेती है. इस तरह से 2 परतें आपस में मिल कर नए पेड़ को जन्म देती हैं.

कली लगाने के नियम

* कलिकायन तब करना चाहिए जब मुख्य तना विकसित अवस्था में हो, जिस से उस की छाल लकड़ी से ढीली की जा सके.

* कलिका कम से कम 1 मौसम पुरानी शाखा से लेनी चाहिए.

* कलिका पूरी तरह से निरोग होनी चाहिए.

* कलिकायन जमीन से 22.5 सेंटीमीटर ऊंचाई पर करना चाहिए.

* मुख्य तना और शाखा जिस से कलिका लेनी हो लगभग एक ही रंग के होने चाहिए.

* कलिकायन के लिए चाकू अच्छी किस्म का, साफ व तेज होना चाहिए.

शिखर रोपण : पुराने व जिन से आमदनी न होती हो ऐसे बेकार फलों के पेड़ों  को नई उम्दा जाति में बदलने के लिए शिखर रोपण किया जाता है.

जब किसी पौधे के ऊपरी हिस्से को कलिकायन या रोपण द्वारा पूरी तरह से उम्दा किस्म की नई प्रजाति में बदल दिया जाता है, तो उसे शिखर रोपण कहते हैं. ऐसा हम आम, नीबू, सेब, नाशपाती व अखरोट वगैरह में करते हैं.

कलिकायन व रोपण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री व औजार

*             काटने की कैंची

*             बडिंग चाकू

*             पौलीथीन की पट्टी

*             हाथ में पहनने वाले दस्ताने

*             मास ग्राम

*             मुख्य तना (मूलवृंत) व शाखा

रोपण या कलिकायन को सफल या असफल बनाने वाली वजहें

*             मुख्य तने और शाखा की उम्र

*             मुख्य तने और शाखा का व्यास

*             चीरे की लंबाई

*             काम करने का समय और रस का असर

*             मुख्य तने व शाखा का मिलान मुमकिन न होना

*             बांधने का काम

*             काम करने की ऊंचाई

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