Old Wheat Varieties : गेहूं, एक ऐसा अनाज है जो दुनिया की एकतिहाई से ज्यादा आबादी का पेट भरता है. जलवायु परिवर्तन और बढ़ती खाद्यान्न मांग की दोहरी चुनौतियों का सामना करते हुए देश ने अपनी विशाल देशी गेहूं किस्मों में छिपे गुणों को उजागर करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी प्रयास शुरू किया है. इस विशाल मिशन का समन्वय डा. जीपी. सिंह (निदेशक, आईसीएआर-एनबीपीजीआर), सहसमन्वय डा. संदीप कुमार, प्रधान वैज्ञानिक (आईसीएआर-एनबीपीजीआर) और डा. संजय कालिया (वैज्ञानिक एफडीबीटी) द्वारा किया जा रहा है.
दशकों से भारत में गेहूं अनुसंधान और उत्पादकता में वृद्धि मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से प्राप्त किस्मों द्वारा संचालित होती रही हैं. हरित क्रांति के दौरान इन किस्मों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश को अभाव से आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया, लेकिन जैसेजैसे जलवायु परिवर्तन, नई बीमारियां और बदलती उपभोक्ता मांगें उत्पादन पर दबाव डाल रही हैं, यह साफ हो गया है कि अब केवल बाहरी स्रोतों पर निर्भरता पर्याप्त नहीं है. भविष्य देश की अपनी आनुवंशिक संपदा में निहित है, राष्ट्रीय जीन बैंक में दशकों से संरक्षित भूप्रजातियों में. विविध कृषि जलवायु क्षेत्रों में सदियों से खेती से विकसित ये पारंपरिक किस्में अपार क्षमता रखती हैं, जिनका अब तक पूरा उपयोग नहीं किया गया है.
वर्तमान मिशन इसी खजाने का दोहन करने के लिए बनाया गया है. भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सहयोग से 7,000 से अधिक गेहूं की प्रजातियां एकत्रित की गई हैं और भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में 20 स्थानों पर विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों और गुणवत्ता लक्षणों के विरुद्ध उन का परीक्षण किया जा रहा है. इन में देशी संग्रह और कृषक समुदायों द्वारा पीढ़ियों से संरक्षित प्रजातियां, दोनों शामिल हैं.
इन में से कुछ पारंपरिक गेहूं अपनेआप में उच्चतम उपज नहीं दे सकते हैं, लेकिन इन में मूल्यवान प्राकृतिक शक्तियाँ होती हैं, जैसे सूखे के प्रति लचीलापन, गरमी के प्रति सहनशीलता और विनाशकारी रतुआ रोगों के प्रति प्रतिरोध. आधुनिक प्रजनन कार्यक्रमों में उपयोग किए जाने पर, इन छिपी हुई शक्तियों को उन्नत किस्मों की उत्पादकता के साथ जोड़ा जा सकता है, जिस से नई किस्में विकसित हो सकती हैं, जो आज की बढ़ती कठोर परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करती हैं.
क्षेत्र परीक्षणों ने पहले ही आशाजनक परिणाम दिखाए हैं. कई पुरानी किस्में (Old Wheat Varieties) रस्ट और स्पौट ब्लौच जैसे फफूंद संक्रमणों को झेलने की उल्लेखनीय क्षमता प्रदर्शित करती हैं, जिस से किसानों की महंगे कीटनाशकों और कवकनाशकों पर निर्भरता कम हो जाती है. कुछ किस्में गरमियों में असामान्य रूप से गरमी पड़ने या बारिश अनियमित होने पर भी विश्वसनीय फसल देती रहती हैं. इस तरह का लचीलापन खेती की लागत कम होने, फसल खराब होने के जोखिम कम होने और किसान परिवारों के लिए अधिक स्थिर आय में तबदील हो जाता है.
लेकिन लचीलापन कहानी का केवल एक हिस्सा है. आज के गेहूं सुधार प्रयास बाजार की ओर भी देख रहे हैं, जहां उपभोक्ता प्राथमिकताएं स्वास्थ्यवर्धक और अधिक पौष्टिक भोजन की ओर बढ़ रही हैं. इन में से कई भूप्रजातियों में व्यावसायिक किस्मों की तुलना में स्वाभाविक रूप से आयरन, जिंक और प्रोटीन का स्तर अधिक होता है. यह उन्हें पोषक तत्त्वों से भरपूर आटा, मल्टीग्रेन ब्रैड और मूल्यवर्धित उत्पाद विकसित करने के लिए आदर्श बनाता है, जो शहरी और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग को पूरा करते हैं. किसान अनुकूल लचीलेपन को उपभोक्ता केंद्रित पोषण के साथ जोड़ कर, ये नई किस्में खाद्य श्रृंखला में लाभ का वादा करती हैं.
अब तक, आशाजनक गेहूं प्रजातियों की पहचान मुख्य रूप से विविध वातावरणों में किए गए क्षेत्र स्तरीय मूल्यांकन पर निर्भर थी. रोग प्रतिरोधक क्षमता, सूखा सहनशीलता और उपज स्थिरता जैसे लक्षणों की दृश्य जांच के माध्यम से मुख्यतः श्रेष्ठ प्रजातियों की पहचान की गई. हालांकि इस दृष्टिकोण ने बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की, लेकिन यह जर्मप्लाज्म के भीतर छिपी आनुवंशिक विविधता को पकड़ नहीं पाया.
अब, यह प्रयास आणविक युग में एक कदम आगे बढ़ रहा है. एसएनपी सरणियों का उपयोग कर के विस्तृत अध्ययन के लिए 6,700 से अधिक गेहूं जीनोटाइप पहले ही चिह्नित किए जा चुके हैं और भारत की गेहूं विविधता का एक आणविक रोडमैप प्रदान करने के लिए 200 भारतीय गेहूं प्रजातियों का पुनः अनुक्रमण करने की योजना है. इन उन्नत अध्ययनों का उद्देश्य सटीक आनुवंशिक विविधताओं को उजागर करना है, जो भारत के पारंपरिक गेहूं में छिपी अनूठी खूबियों की एक स्पष्ट तसवीर प्रस्तुत करते हैं. महत्त्वपूर्ण रूप से, यह ज्ञान नई, बेहतर किस्मों के विकास के लिए आधार सामग्री प्रदान करेगा जो लचीलापन, उत्पादकता और पोषण गुणवत्ता को जोड़ती हैं.
परियोजना के प्रयास पहले से ही प्रजनन पाइपलाइनों में शामिल हो रहे हैं. आशाजनक प्रजातियां राष्ट्रीय आनुवंशिक स्टौक नर्सरी को प्रदान की गई हैं, जहां वे भारत की कठोर परिस्थितियों के अनुकूल भविष्य की गेहूं किस्मों की रीढ़ बनेंगी.
इस प्रकार, भूप्रजातियों में संरक्षित पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक जीनोमिक्स के साथ जोड़ कर, हम भविष्य के लिए जलवायु प्रतिरोधी, बाजार के लिए तैयार और पोषक तत्त्वों से भरपूर गेहूं का निर्माण कर रहे हैं. भारत के लाखों किसानों के लिए, इन सफलताओं का अर्थ न केवल अधिक उपज, बल्कि ऐसा गेहूं भी हो सकता है जो अत्यधिक मौसम का सामना कर सके, खेती की लागत कम करे और स्वास्थ्यवर्धक भोजन चाहने वाले उपभोक्ताओं को पसंद आए. भविष्य की गेहूं की चुनौतियों और भविष्य की उपभोक्ता मांगों का समाधान इस क्षेत्र में छिपा है.