Apricot : खुबानी ज्यादातर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व जम्मू कश्मीर सूबों में उगाई जाती है. खुबानी (Apricot) की गिरी व बाहर का गूदा दोनों को खाया जाता है. इस के बीजों से तेल भी निकाला जाता है. इस के फल के गूदे से चटनी व जूस वगैरह भी बनाए जाते हैं.
आहार मूल्य : खुबानी में नमी 19.25 ग्राम, प्रोटीन 1.70 ग्राम, वसा 0.70 ग्राम, खनिज पदार्थ 2.80 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 72.81 ग्राम, विटामिन ए 98.00 आईयू तथा विटामिन सी 217 मिलीग्राम होता है.
भूमि तथा जलवायु : खुबानी की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जाती है, पर अच्छी पैदावार के लिए जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी मुफीद होती है.
खुबानी की बागबानी के लिए ठंडे इलाके जहां गरमी शुरू होने से पहले पाले का भय न हो, अच्छे रहते हैं. इस के लिए 16.6 डिगरी सेंटीग्रेड से 32.2 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान ठीक रहता है. खुबानी को हिमालय के उत्तरीपश्चिमी भागों में 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.
पौध तैयार करने की विधि : खुबानी के लिए जीभी कलम, छल्ला चश्मा व ढाल चश्मा लगाया जाता है. कलम लगाने के लिए फरवरी व चश्मा चढ़ाने के लिए मईजून के महीने सही रहते हैं. बलुई मिट्टी के लिए खुबानी तथा भारी मिट्टी के लिए मारो बालान आलूबुखारा का मूलवृंत इस्तेमाल करना चाहिए.
पौध लगाना: खुबानी की रोपाई करने के लिए जनवरीफरवरी का समय सही रहता है. पौध लगाने के लिए 30×30×30 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदे जाते हैं. गड्ढों में पौध रोपण से पहले 15 किलोग्राम गोबर की खाद, ढाई किलोग्राम लकड़ी की राख व ढाई किलोग्राम हड्डी का चूरा मिट्टी के साथ मिला कर भरा जाता है. गड्ढों से गड्ढों की दूरी 5 मीटर रखी जाती है.
सिंचाई : खुबानी के खेत में फूल आते समय व फल बढ़ते समय अच्छी नमी होनी चाहिए. इस के लिए सिंचाई का खयाल रखना चाहिए. पौध रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. यदि बारिश न हो, तो 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
खुबानी के पेड़ों में गरमियों में 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करने से फल व फूल भरपूर मात्रा में निकलते हैं, लिहाजा समय पर सिंचाई करने के लिए हमेशा सजग रहना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण तथा थाले बनाना : खुबानी के खेत से खरपतवार निकालते रहना चाहिए. इस के लिए सिंचाई के बाद निराईगुड़ाई करनी चाहिए व पेड़ों के थाले बना देने चाहिए. थाले पेड़ के तने से लगभग
30 से 45 सेंटीमीटर दूरी छोड़ कर गोल आकार के बनाए जाते हैं. इन्हीं थालों में खाद व पानी देना चाहिए.

खाद व उर्वरक : खुबानी के पेड़ों से अच्छी पैदावार लेने के लिए 10 किलोग्राम गोबर की खाद, 90 ग्राम नाइट्रोजन, 30 ग्राम फास्फोरस तथा 90 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ के हिसाब से से डालनी चाहिए. दिसंबरजनवरी में गोबर की खाद, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा फूल आने पर देनी चाहिए. 1 महीने बाद नाइट्रोजन की बाकी मात्रा डालनी चाहिए.
खुबानी के पेड़ों में हर साल गोबर की खाद व उर्वरक डालने चाहिए. 6 सालों तक इन की मात्रा थोड़ीथोड़ी हर साल बढ़ानी चाहिए. इस के बाद खाद व उर्वरक की मात्रा स्थिर कर देनी चाहिए.
सहफसली खेती : खुबानी के पेड़ों के बीच की खाली जगह का इस्तेमाल करने व अतिरिक्त आमदनी हासिल करने के लिए कुछ अन्य फसलें लगाई जाती हैं.
बारिश के मौसम में बैगन, टमाटर, मिर्च, मटर, शिमला मिर्च, बीन वगैरह लगाई जाती हैं और रबी के मौसम में गोभी, शकरकंद, शलजम, प्याज वगैरह उगाई जाती हैं.
इन के अलावा दलहनी फसलें, हरी खाद व चारे वाली फसलें भी सहफसली खेती के तौर पर उगाई जाती हैं.
काटछांट : खुबानी की बेकार, बीमार व कीट युक्त शाखाओं को काट कर निकाल देना चाहिए. इस के अलावा अविकसित व खराब फलों को भी निकाल देना ठीक रहता है.
फूल व फल आने का समय : खुबानी के पेड़ों पर फरवरी व मार्च में फूल आने लगते हैं. इस के बाद फल आते हैं, जो मईजून में पक कर तैयार हो जाते हैं.
तोड़ाई और पैदावार : खुबानी के फलों की तोड़ाई सावधानी से करनी चाहिए. फल जब अपना रंग बदलने लगें, तब उन की तोड़ाई करनी चाहिए. खुबानी के 1 पेड़ से 1 साल में करीब 30 से 40 किलोग्राम फल प्राप्त होते हैं.
भंडारण और बिक्री : खुबानी के फलों की तोड़ाई के बाद उन्हें बांस की टोकरी या लकड़ी की पेटियों में रखते हैं. इन्हें 30×30×30 सेंटीमीटर आकार की लकड़ी की पेटियों में सावधानीपूर्वक रख कर बाहर भेजा जाता है. फल एक दूसरे से न टकराएं, इस के लिए उन के बीच में कागज या लकड़ी का बुरादा डालते हैं. ऐसा करने से फल खराब होने से बच जाते हैं.
उन्नत किस्में मध्य ऊंचाई पर लगाई जाने वाली किस्में : इन में अर्ली सिप्ले, टर्की, न्यूकेस्टल, मोरपार्क व रोयल वगैरह किस्में खास हैं.
अधिक ऊंचाई पर लगाई जाने वाली किस्में : इन में अर्ली सिप्ले, चारमग्ज, न्यूलार्ज अर्ली, रोयल, सकरपारा, सफेदा व सैंट अंब्रोज वगैरह किस्में खास हैं.
सूखे क्षेत्रों में लगाई जाने वाली किस्में : इन में चारमग्ज, सकरपारा व सफेदा वगैरह किस्में खास हैं.
भारत में खुबानी के बगीचों को किसानों द्वारा सीधे ठेकेदारों को सौंप दिया जाता है. कुछ किसान अपने फल फुटकर दुकानदारों को भी बेचते हैं, मगर इस से किसानों को कम लाभ होता है.





