बेल वाली सब्जी : अगर हमें बेल वाली सब्जियों से अधिक मुनाफा लेना है, तो ध्यान रखें कि अगेती खेती करें. अगेती खेती करने के लिए जाड़े के समय में इन बेल वाली सब्जियों की पौध तैयार करें. पौलीहाउस तकनीक से पौध की नर्सरी तैयार करें. पौध तैयार होने पर उन्हें समय पर खेतों में रोपें. पौध रोपते समय ध्यान रखें कि पौधों की जड़ें कटे या टूटें नहीं.
हालांकि बेल वाली सब्जियां बीज द्वारा सीधे खेत में भी बोई जाती हैं, लेकिन अगर हम इन सब्जियों की पौध तैयार कर के रोपते हैं, तो हमें कई फायदे होते हैं. इन से अच्छा मुनाफा तो होता ही है, साथ ही फसल का रोगों से भी बचाव होता है और कीटपतंगों का खतरा भी कम होता है, क्योंकि कीटबीमारियां अपने समय पर ज्यादा पनपती हैं.
कैसे करें पौध तैयार
दिसंबर से जनवरी महीने के बीच पौध तैयार करें. इस के लिए उत्तम किस्म के बीजों का चुनाव करें. बीज किसी प्रमाणिक केंद्र से ही लें तथा बीजों को प्लास्टिक की छोटीछोटी थैलियों में बोएं.
इन प्लास्टिक की थैलियों में मिट्टी, खाद व बालू का सामान अनुपात में मिश्रण बना लें. साथ ही थैलियों में पानी की निकासी के लिए 3-4 छेद कर दें. थैलियों में मिट्टी भरने के बाद उन में हलकी सिंचाई कर दें.
बोआई से पहले करें बीज का अंकुरण
बीजों को थैलियों में बोने से पहले उन का अंकुरण भी कर लें, क्योंकि ठंड के मौसम में बीज का जमाव होने में ज्यादा समय लगता है. बीजों को थैली में बोने से पहले उन्हें केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लें.
अंकुरण कराने के लिए पहले बीजों को साफ करें. उन से खराब बीज निकाल दें. इस के लिए बीजों को पानी में डुबो दें. जो थोथे या खराब बीज होंगे, वे पानी की सतह पर आ जाएंगे. उन्हें फेंक दें. फिर बचे हुए अच्छे बीजों को मोटे सूती कपड़े में लपेट कर बांध दें व उन्हें भूसे में या ऐसी ही किसी गरम तासीर वाली जगह में रखें.
ककड़ी, खीरा व सीताफल के बीजों को 3-4 घंटे तक, लौकीतुरई के बीजों को 6-8 घंटे तक, टिंडे के बीजों को 10-12 घंटे तक व करेले के बीजों को 48 घंटे तक भिगोए रखें. इस दौरान ये बीज अंकुरित हो जाते हैं.
इन अंकुरित बीजों को पहले से मिट्टी भरी हुई प्लास्टिक की थैलियों में बो देते हैं. हर थैली में 3-4 बीजों की बोआई करते हैं. पौधे बड़े होने पर हर थैली में 1 या 2 पौधे छोड़ कर फालतू पौधे निकाल देते हैं.
पौधों को निम्न ताप से बचाने के लिए 1-1.5 मीटर की ऊंचाई पर बांस या लकड़ी गाड़ कर पालीथिन की चादर से ढक देना चाहिए यानी एक छोटा पौलीहाउस बना देना चाहिए, जिस में तापमान सामान्य से 8-10 डिगरी सेंटीग्रेड अधिक बना रहे और पौधों का विकास सही हो सके. इस तरह से आप की नर्सरी तैयार हो जाती है.
करीब 5000 पौधे तैयार करने के लिए 9×3.5 मीटर आकार के पालीहाउस की जरूरत होती है, जिस का पूरा क्षेत्रफल 31.5 वर्गमीटर होता है. इस के लिए 400 गेज मोटी पालीथिन लें. पालीहाउस की ऊंचाई लगभग 2 मीटर रखें.
इन बेल वाली सब्जियों के पौधों का जमाव 3 से 6 दिनों के अंदर हो जाता है.
नर्सरी में बीजों के जमाव के बाद थैलियों की मौसम के अनुसार समयसमय पर सिंचाई करते रहते हैं. सिंचाई जहां तक हो सके फुहारे से करें. कोई खरपतवार उग रहा हो, तो हाथ से निकाल दें.
खाद व उर्वरक की मात्रा
खेत की आखिरी जुताई के समय 200-500 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद डालें. आमतौर पर अच्छी पैदावार लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 250 किलोग्राम यूरिया, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 125 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश की जरूरत होती है. इस में सिंगल सुपर फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालें.
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20-25 दिनों बाद डाल कर मिट््टी चढ़ा देते हैं. यूरिया की बाकी मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में डालें. लेकिन जब पौधों को गड्ढे में रोपते हैं, उस समय भी 30-40 ग्राम यूरिया, 80-100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40-50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश डाल कर रोपाई करें.

पौधों की रोपाई का तरीका
इन सब्जियों की बोआई के लिए नाली या थाला तकनीक का इस्तेमाल करें. इस तरीके से खेती करने से खाद, पानी और निराईगुड़ाई पर कम खर्च आता है और पैदावार भी अच्छी मिलती है. नालियों के बीच की जगह सिंचाई नहीं की जाती, जिस से बेलों पर लगने वाले सब्जी व फल गीली मिट्टी के नजदीक नहीं आते और खराब होने से बचे रहते हैं.
फरवरी महीने में जब पाला पड़ने का डर न हो, तब पालीथिन की थैलियों से पौधा मिट्टी सहित निकाल कर तैयार थालों में शाम के समय रोपाई कर देते हैं. जड़ें न टूटें इस बात का ध्यान रखें. 1 थाले में 1 ही पौधा रोपें.
रोपाई करने के बाद पौधों की हलकी सिंचाई कर दें. कुछ समय बाद अगर खेत में खरपतवार दिखाई दे तो हाथ से निराई कर के उसे साफ कर देना चाहिए और समयसमय पर निराईगुड़ाई करते रहें व पौधों पर हलकी मिट्टी चढ़ाते रहें, जिस से पौधों की जमीन में अच्छी पकड़ रहे व पौधों को मजबूती मिल सके.
पौधों को दें सहारा
पौधे जब बड़े होने लगें तब उन्हें सहारा देने के लिए लोहे के एंगल या बांस से मचान बनाते हैं. बांस के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को मचान पर चढ़ाया जाता है. सहारा देने के लिए 2 खंभों या एंगल के बीच की दूरी सुविधानुसार रखें, ताकि बेलें ज्यादा न झुकें. फसल के अनुसार इस की ऊंचाई अलगअलग रखें.
कीट व रोगों से बचाव
इन सब्जियों में खासकर रेड पंपकिन बीटल (लाल कीड़ा), चेंपा, फलमक्खी, पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णिल आसिता) वगैरह बीमारियां ज्यादा लगती हैं. रेड पंपकिन बीटल फसल को शुरू की अवस्था में नुकसान पहुंचाता है.
इस के लिए सुबह के समय मैलाथियान नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर पौधों व पौधों के आसपास की मिट्टी पर छिड़कें. चैंपा व फलमक्खी से बचाव के लिए एंडोसल्फान दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर पौधों पर छिड़कें.
इस तरीके से की गई खेती से किसान आम समय से लगभग डेढ़ महीने पहले अगेती फसल ले सकते हैं, जिस से ज्यादा पैदावार व ज्यादा आमदनी होती है.





