Pesticides : आज के दौर में अनाज से ले कर फलसब्जी यहां तक कि फूल भी बिना रासायनिक उर्वरक (Pesticides) का इस्तेमाल किए पैदा नहीं हो रहे हैं. कम समय में अधिक उपज लेना, साल में ज्यादा फसल लेना, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन की वजह से किसानों को अधिकतर खेती में रासायनिक उर्वरक (Pesticides) इस्तेमाल करने पड़ते हैं. इन सब से किसान को पैदावार तो मिल जाती है, लेकिन इस अधिक पैदावार के साथसाथ जहरीली होती फसल से अनेक बीमारियां भी मिलती हैं, जिन से घिर कर लोग डाक्टरों के यहां चक्कर लगाते हैं.

समयसमय पर सरकारी कानून बनते हैं, सूचनाएं, अधिसूचनाएं आती हैं कि खेती में इस्तेमाल हो रहे जहरीले रसायनों पर रोक लगाई जाए. नियम बनते हैं, सरकारी खेल चलता है, सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को लागू करने के लिए समितियों का गठन होता है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. नियमों को दरकिनार कर पूरे देश की मंडियां और बाजार जहरीले रसायनों से पलीबढ़ी सब्जियों व फलों से भरे पड़े हैं.

जहरीले रसायन क्यों?

अब से लगभग 30-35 साल पहले भारत में हरित क्रांति का दौर आया था. उस दौर में विदेशों से अनेक तरह के बीज भारत में आए, ताकि हम अधिक पैदावार ले सकें. लेकिन बीजों के साथसाथ अनेक तरह के खरपतवारों के बीज भी आ गए. गाजरघास भी उन्हीं बीजों का परिणाम है, जिस ने आज खेतों में नाजायज कब्जा जमा रखा है. जाहिर सी बात है कि जब बीजों के साथ खरपतवार भी आएंगे, तो उन्हें खत्म करने के लिए उन के पीछेपीछे जहरीले रसायन व कीटनाशक (Pesticides) भी आएंगे. देखते ही देखते पूरे देश में फसलों पर जहरीले रसायनों ने कब्जा कर लिया.

आज लोगों की भलाई के लिए नित नई खोजें होती हैं, लेकिन आज के कारोबारी कहीं न कहीं किसी न किसी तरह से अपना हित साधने में लगे हैं, चाहे इस से समाज का कितना ही नुकसान क्यों न हो.

माना कि जहरीले रसायनों (Pesticides) के इस्तेमाल से फसल से खरपतवार खत्म होते हैं, कीटों का नाश होता है, लेकिन जब जहरीले रसायनों का उपयोग अंधाधुंध शुरू हो जाता है, तो फायदे की जगह नुकसान भी होता है. आज रातोंरात फलसब्जियों को बढ़ानेपकाने के लिए इंजैक्शन द्वारा उन में जहरीले रसायन डाले जा रहे हैं.

फलों व सब्जियों में चमक लाने के लिए उन पर मोम, तेल, ग्रीस वगैरह लगाए जाते हैं. अदरक से मिट्टी हटाने के लिए उसे तेजाब में धोया जाता है. ये ऐसे शौर्टकट हैं, जिन से एकआध खास वर्ग को तो बहुत फायदा होता है, लेकिन तमाम लोगों को मिलती हैं बीमारियां, अस्पताल के चक्कर व आर्थिक नुकसान.

फलों को पकाने में प्रयोग

फलों की आज बाजार में बहुत खपत है. उसी खपत को पूरा करने के लिए कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए फलों को कच्चा ही तोड़ लिया जाता है और उन्हें जल्दी पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड (जिसे आम बोलचाल की भाषा में लोग कार्बेड कह देते हैं) का इस्तेमाल किया जाता है. इस से जो जहरीली गैस निकलती है, उस से फल बहुत जल्दी पक जाते हैं. यह ऐसी प्रक्रिया है, जिस से फल पक तो जल्दी जाते हैं, लेकिन इन फलों में न तो कुदरती स्वाद ही होता है न ही ये सेहत के लिए बेहतर होते हैं.

खेतों में रासायनिक खाद

फसल बोने के साथ ही किसान की मजबूरी हो जाती है कि वह रासायनिक खाद इस्तेमाल करे और जब तक फसल पक कर तैयार होती है, तब तक 2-3 बार उस फसल में रसायन का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में किसान करता है. अगर किसान ऐसा न करे तो उस की फसल ही चौपट हो जाएगी. या तो खरपतवार फसल को बढ़ने ही नहीं देंगे या कीट फसल को नष्ट करेंगे. इसलिए आज जरूरी हो गया है कि हम रासायनिक खेती को छोड़ कर जैविक खेती करें, जिस से हमें हानिरहित भरपूर फसल मिले.

Pesticides

खराब पानी का असर

देहाती क्षेत्रों के अलावा अगर हम शहरों की बात करते हैं, तो देश की राजधानी दिल्ली भी इस जहर से अछूती नहीं है. दिल्ली शहर में दर्जनों गंदे नाले यमुना नदी में मिलते हैं और यमुना नदी के किनारे होने वाली फसलों में इसी गंदे पानी का इस्तेमाल होता है. आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि यह पानी किस हद तक जहरीला होता है. नालों के पानी में मलमूत्र, फैक्टरी से निकले रसायन, तेजाब वगैरह जहरीली चीजें मिली होती हैं.

पिछले साल दिल्ली की यमुना नदी में पानी की हर 3 महीने में जांच की गई. इस जांच के नतीजे चौंकाने वाले थे. निजामुद्दीन पुल के पास 100 मिलीलीटर पानी में 9.3 करोड़ मलीय कौलिफोर्म पाए गए. ओखला बैराज के पास प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 5.2 करोड़ मलीय कौलिफोर्म पाए गए, यही नहीं, इसी यमुना नदी के पानी में कई जगहों पर तो आक्सीजन की मात्रा शून्य पाई गई. अब आप खुद अंदाजा लगाएं कि बिना आक्सीजन कोई जीवित कैसे रह सकता है. हां, जलखुंभी इस पानी में खूब पनपती है.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर को लें. वहां चमड़े का कारोबार होता है. वहां पर भी फैक्टरियों से निकले जहरीले पानी का खेती में इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे उदाहरण देश के हर कोने में मिल जाएंगे, तो क्यों हम आज लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं? क्यों लोगों के जीवन में जहर घोल रहे हैं?

आज हम केवल इस तरह के खानपान के चलते ही उलटी, डायरिया, पेट दर्द, पेशाब की बीमारियां, आंतों में इन्फैक्शन, त्वचा रोग, अपच, किडनी वगैरह के रोगों से घिरे हुए हैं. ऐसा न हो, इस के लिए सभी को सुधरना होगा. केवल अपना फायदा न देख कर समाज को भी देखना होगा. हमें खेती में सुधार लाना होगा.

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट

साल 2002 से भारत में बीटी और जीएम बीजों (जैव संशोधित बीज) की शुरुआत हुई. इस को ले कर भारत में बवाल भी हुआ. मोनसेंटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने इन बीजों को कृषि बाजार में यह कह कर उतारा था कि बीटी कपास और बीटी बैगन पर कीड़ा नहीं लगेगा, जिस से पैदावार तो बढ़ेगी, ही कीटनाशक का खर्च भी बचेगा. यह सब कह कर बीटी बीजों की कीमत सामान्य बीजों की तुलना में कई गुना रखी गई और बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटो ने खूब कमाई की. लेकिन 3 साल बाद पता चला कि ऐसा कुछ नहीं है, उन बीजों द्वारा बोई गई फसल पर भी कीटों का प्रकोप हुआ. तब तक तो कंपनी अपना खेल खेल चुकी थी.

इसी तरह से अनेक कंपनियां हर बार नईनई वैराइटी के बीज विकसित करती हैं, जिन से होने वाली फसल पैदावार से आगे बोने के लिए भी बीज नहीं मिल पाते. मतलब साफ है कि किसान हर बार इन कंपनियों के बीज खरीदे. किसान का पीछा कंपनियां यहां भी नहीं छोड़तीं. जब कभी फसल में कीट का प्रकोप होगा तो उन्हीं कंपनियों द्वारा बनाए गए कीटनाशक ही उन बीजों द्वारा बोई गई फसल पर कारगर होते हैं. इस से साफ पता चलता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने फंदे में किसान को किस कदर जकड़ रखा है. इसलिए अभी भी वक्त है, हमें इन से बचना होगा और जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा.

जैविक खेती कीजिए

वर्मी कंपोस्ट खाद के इस्तेमाल से खेत, फसल और इनसान सेहतमंद रहते हैं. वर्मी कंपोस्ट खाद फसल व सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है. फसल कटने के बाद उस खेत की उपजाऊ शक्ति कमजोर हो जाती है. ऐसे में किसानों को अपने खेत में उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए वर्मी कंपोस्ट यानी प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. यह फायदे का सौदा है.

वर्मी कंपोस्ट का फसल में इस्तेमाल करने से खेत में नमी बरकरार रहती है. इस से फलफूल व सब्जियों वगैरह की जिंदगी बढ़ जाती है. फसल की रंगत ही बदल जाती है और फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है.

यह रासायनिक खादों से सस्ती खाद है और फसल को अनेक बीमारियों के प्रकोप से बचाती है. इस के इस्तेमाल से पैदा हुई पौष्टिक व साफ सब्जियां हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखती हैं.

वर्मी कंपोस्ट इस्तेमाल करने का तरीका

वर्मी कंपोस्ट एक ऐसी कुदरती खाद है, जिसे किसान किसी भी फसल में किसी भी समय इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस से खास फायदा उस वक्त होता है, जब यह मिट्टी में मिल जाए. वर्मी कंपोस्ट खाद की आधी मात्रा जमीन की तैयारी करते समय जरूर डालें. फिर एक बार ट्रांसप्लांटिंग के समय डालें या फिर जब 2 पत्ते की स्टेज हो तब डालें. इस के बाद जब फसल पर फूल आने लगें, तब भी प्राकृतिक खाद डालें.

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