Cumin : कृषि उत्पादन में टिकाऊपन लाने, मिट्टी की जैविक गुणवत्ता बनाए रखने, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने, वातावरण को प्रदूषण से रोकने और मानव स्वास्थ्य की रखा करने और उत्पादन लागत को कम करने के लिए जैविक खेती बेहद जरूरी है.

किसानों को शुद्ध जैविक बीजों का उत्पादन करने के लिए कुछ खास बातों और सावधानियों को ध्यान में रखना होता है, जैसे उन्नत किस्में, खेत की तैयारी, बीज दर व बोआई, संतुलित खादें, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण, फसल निरीक्षण, फसल की कटाई, गहाई, भंडारण व फसलों में बीज के मापदंड.

जीरे (Cumin) का शुद्ध जैविक बीज तैयार करने के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें, जिस में पिछले साल जीरे की फसल नहीं बोई गई हो और पिछले 5-6 सालों से किसी भी तरह की अकार्बनिक खाद, रसायन वगैरह नहीं डाला गया हो. खेत की 3-4 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और पाटा लगा कर खेत को समतल करें.

जीरे (Cumin) के जैविक बीज उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 8-10 टन सड़ी हुई देशी या कंपोस्ट खाद बोआई से कम से कम 3-4 हफ्ते पहले डाल कर खेत तैयार करें. इस के अलावा 250 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर बोआई से पहले खेत में जरूर डालें. 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ अच्छी तरह मिला कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें.

बीज की आनुवंशिक व भौतिक शुद्धता बनाए रखने के लिए फसल में दूरी का खास ध्यान रखना चाहिए. जीरे (Cumin) में आधार बीज के लिए 800 मीटर व प्रमाणित बीज के लिए 400 मीटर दूरी रखें.

जीरे (Cumin) का 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ठीक होता है, बीजों को ट्राइकोडर्मा (10 ग्राम प्रति किलोग्राम) से उपचारित करें. जीरे के बीजों को आक, धतूरा, खींप, तुंबा व नीम के समान अनुपात में 10 फीसदी अर्क में 48 घंटे भिगोने के बाद ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर के बोआई करने से उखठा रोग का प्रकोप कम होता है.

फालतू पौधे निकालने, निराईगुड़ाई व दूसरे काम करने व दवाओं के छिड़काव में सुविधा के लिहाज से छिटकवां विधि के मुकाबले कतारों में बोआई करना बेहतर रहता है. कतारों में बोआई के लिए क्यारियों में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लोहे या लकड़ी के हुक से लाइनें बना कर बीजों को इन्हीं लाइनों में बोएं.

बोआई के समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज मिट्टी से एकसार ढक जाए और मिट्टी की परत 1 सेंटीमीटर से ज्यादा मोटी न हो. सीडड्रिल से भी 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोआई की जा सकती है. पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेंटीमीटर रखें. 15 से 30 नवंबर के बीच बोआई निबटा दें.

पहली हलकी सिंचाई बोआई के तुरंत बाद की जाती है. इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों में पानी का बहाव तेज न हो. ज्यादा तेज बहाव से बीज क्यारियों के किनारों पर जमा हो सकते हैं, जिस से उन का वितरण व अंकुरण बिगड़ सकता है. दूसरी सिंचाई बोआई के 1 हफ्ते बाद जब बीज फूलने लगें तब करें.

अगर दूसरी सिंचाई के बाद अंकुरण पूरा नहीं हुआ हो या जमीन पर पपड़ी जम गई हो तो एक हलकी सिंचाई और करना लाभदायक रहता है. इस के बाद मिट्टी की बनावट और मौसम के मुताबिक 15 से 25 दिनों के अंतराल पर 5 सिंचाइयां काफी होती हैं.

दाने बनते समय आखिरी सिंचाई गहरी करनी चाहिए, मगर पक रही फसल में सिंचाई न करें. फुहारा विधि से कुल 5 सिंचाइयां करें यानी पहली सिंचाई बोआई के समय करें फिर 10, 30, 55 और 80 दिनों पर सिंचाई करें.

जीरे (Cumin) की फसल में खरपतवार नियंत्रण और जमीन में सही वायु संचार बनाए रखने के लिए 2 बार निराईगुड़ाई करना जरूरी है. पहली निराईगुड़ाई बोआई के 20-25 दिनों बाद व दूसरी 35-40 दिनों बाद करनी चाहिए. पहली निराईगुड़ाई के समय जीरे के फालतू पौधों को भी उखाड़ कर हटा दें, जिस से पौधे से पौधे की दूरी 5-7 सेंटीमीटर रहे. आनुवांशिक शुद्धता बनाए रखने के लिए बेकार पौधों, खरपतवारों व रोगजनित पौधों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए.

जीरे (Cumin) के स्वस्थ पौधों का बीज के लिए चयन करें और जीरे की उकठा, झुलसा, छाछया या चूर्णी फफूंद बीमारियों और मोयला कीट का समय रहते जैविक विधि से उपचार करें. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 12 पीले चिपचिपे पाश लगाएं.

मोयला की रोकथाम के लिए पहला छिड़काव 2 फीसदी लहसुन का, दूसरा छिड़काव गौमूत्र (30 मिलीलीटर प्रति लीटर) का व तीसरा छिड़काव एजाडीरेक्टीन (0.03 फीसदी) का करें या गौमूत्र (10 फीसदी) व एनएसकेई (2.5 फीसदी)  व लहसुन अर्क (2 फीसदी) की बराबर मात्रा का 3 बार छिड़काव करें.

जीरे (Cumin) की फसल तकरीबन 120-125 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. फसल को दरांती से काट कर अच्छी तरह सुखा लें. फसल के ढेर को पक्के फर्श पर धीरेधीरे पीट कर दानों को निकालें. दानों से धूल व कचरा वगैरह ओसाई कर के दूर करें. बीजों को अच्छी तरह सुखा कर बोरियों में भरें. उन्नत कृषि विधियां अपनाने से प्रति हेक्टेयर 5 से 7 क्विंटल जीरे का बीज प्राप्त किया जा सकता है.

बीज की गुणवत्ता के मापदंडों के मुताबिक यह जरूरी है कि कटाई के बाद भी सभी कामों में पूरी सावधानी बरतें. भंडारण करते समय दानों में नमी की मात्रा 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. जैविक बीज व उत्पादों को पैक करने के लिए पर्यावरण के मुताबिक बैगों का ही इस्तेमाल करें. बैग पर उत्पादित फार्म व जैविक प्रजनक का साफ लेबल लगा होना चाहिए.

जैविक प्रमाणीकरण के लिए निरीक्षक द्वारा जैविक फार्म का निरीक्षण किया जाता है, जिस में मानकों को सुनिश्चित किया जाता है और निरीक्षण रिपोर्ट प्रमाणीकरण कार्यालय भेजी जाती है. निरीक्षण रिपोर्ट में जैविक उत्पादक के हस्ताक्षर भी लिए जाते हैं. रिपोर्ट को जैविक प्रमाणीकरण समिति से राष्ट्रीय जैविक प्रमाणीकरण मानकों के हिसाब से परखा जाता है और सही पाए जाने पर जैविक प्रमाणीकरण की सिफारिश की जाती है.

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