Tulsi : तुलसी की भारत में बड़े पैमाने पर खेती होती है. उत्तर प्रदेश में बरेली, बदायूं, मुरादाबाद और सीतापुर जिलों में इस की खेती की जाती है. इस का प्रयोग परफ्यूम व कौस्मेटिक इंडस्ट्रीज में अधिक होता है. इस में मुख्य घटक मिथाइल चेविकोल होता है जिसे बाद में एनेथोल में बदल दिया जाता है. सौंफ व सोया के तेल से एनेथोल निकालने पर एनेथोल की कीमत ज्यादा हो जाती है. तुलसी (Tulsi) एक अल्पअवधि की फसल है, जो आमतौर पर 3-4 महीने में तैयार हो जाती है. इसे औषधीय फसल के रूप में उगाया जाता है और इस के कई उपयोग हैं. तुलसी की खेती भारत में बड़े स्तर पर की जाती है, खासकर औषधीय और सुगंधित तेल के लिए तुलसी (Tulsi) का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों और अनेक उत्पादों में किया जाता है.
मृदा व जलवायु : इस की खेती कम उपजाऊ जमीन जिस में पानी की निकासी का अच्छा प्रबंध हो, में अच्छी होती है. बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए सही रहती है. इस के लिए उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त होती है.
खेत की तैयारी : जमीन की तैयारी ठीक तरह से कर लेनी चाहिए. खेत जून के दूसरे सप्ताह तक तैयार हो जाना चाहिए.
बोआई/रोपाई : इस की खेती बीज द्वारा होती है लेकिन खेत में बीज की बोआई सीधे नहीं करनी चाहिए. पहले इस की नर्सरी तैयार करनी चाहिए बाद में उस की रोपाई करनी चाहिए.
पौध तैयार करना : खेत की 15-20 सैंटीमीटर गहरी खुदाई कर के खरपतवार आदि निकाल कर तैयार कर लेना चाहिए. फिर 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद अच्छी तरह मिला देनी चाहिए. 1 मीटर x 1 मीटर आकार की जमीन सतह से उभरी हुई क्यारियां बना कर 20 किलोग्राम फास्फोरस और इतना ही पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए. 750 ग्राम से ले कर 1 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर खेत के लिए काफी होता है. बीज की बोआई 1:10 के अनुपात में रेत या बालू मिला कर 8-10 सैंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए. बीज की गहराई अधिक नहीं होनी चाहिए. जमाव के 15-20 दिन बाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन डालना उपयोगी होता है. 5-6 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.
रोपाई : सूखे मौसम में रोपाई हमेशा दोपहर के बाद करनी चाहिए. रोपाई के बाद खेत की सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए. बादल या हलकी बारिश वाले दिन इस की रोपाई के लिए बहुत सही होते हैं. इस की रोपाई लाइन से लाइन 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे 30 सैंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए.
सिंचाई : अगर वर्षा के दिनों में वर्षा होती रही तो सितंबर तक इस के लिए सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है, उस के बाद सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है.
खरपतवार नियंत्रण : इस की पहली निराईगुड़ाई रोपाई के एक महीने बाद करनी चाहिए. दूसरी निराईगुड़ाई पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद करनी चाहिए. बड़े क्षेत्र में गुड़ाई ट्रैक्टर से की जा सकती है.
उर्वरक : इस के लिए 15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद जमीन में डालना चाहिए. इस के अलावा 75-80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-40 किलोग्राम फास्फोरस व पोटाश की जरूरत होती है. रोपाई से पहले एक तिहाई नाइट्रोजन और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालकर जमीन में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा 2 बार में खड़ी फसल में डालना चाहिए.
कटाई : जब पौधे में पूरी तरह से फूल आ जाएं और नीचे के पत्ते पीले पड़ने लगे तो इस की कटाई कर लेनी चाहिए. रोपाई के 10-12 सप्ताह के बाद यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है.
आसवन : तुलसी (Tulsi) का तेल पौधे के भाप आसवन से प्राप्त होता है. इस का आसवन, जल और वाष्प आसवन दोनों विधि से किया जा सकता है. लेकिन वाष्प आसवन सब से ज्यादा उपयुक्त होता है. तुलसी को कटाई के बाद 4-5 घंटे खेत में छोड़ देना चाहिए. इस से आसवन में सुविधा होती है.
पैदावार : इस के फसल की औसत पैदावार 20-25 टन प्रति हेक्टेयर और तेल की पैदावार 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होता है.