अकसर देखने में आता है कि बरसात में जगहजगह कुकुरमुत्ते (मशरूम) उग आते हैं. मशरूम को टरमिटोमायसेज माइक्रोकार्पस नाम से वैज्ञानिक रूप से जाना जाता है, जो मुख्य रूप से दीमक की बांबी पर रुकता है और अपने लिए भोजन दीमक से प्राप्त करता है.

यह मशरूम लिओ फिल्थी फैमिली का खाद्य मशरूम है, जो अधिकतर जंगली भोजन के रूप में प्रयोग करता है. इस का कई प्रकार की औषधियों में भी प्रयोग किया जाता है. आदिवासी इस की सब्जी बनाते हैं.

इन में से कुछ मशरूम जहरीले होते हैं, तो अनेकों मशरूम खाने के लिए पौष्टिक और प्रोटीन से भरपूर होते हैं, जिस में 17 अमीनो एसिड पाए जाते हैं. यह प्रमुख रूप से भारत सहित पूरे एशिया व अफ्रीका में पाया जाता है.

Mushroomकृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों डाक्टर गोपाल सिंह, विभागाध्यक्ष, डाक्टर कमल खिलाड़ी प्राध्यापक, डा. प्रशांत मिश्रा और प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष डा. आरएस सेंगर ने फील्ड पर जा कर इस का निरीक्षण किया

और विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं को इस प्रकार के मशरूम जो प्राकृतिक रूप से कम उपलब्ध होता है, को लोगों ने देखा.

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने बताया कि प्रकृति में कई तरह के गुणकारी पौधे उगाने की क्षमता है और जब बरसात का सीजन आता है, तो प्रकृति खिल उठती है और इस समय लगभग सभी प्रकार के पौधों का विकास अच्छी तरह से होता है. इसी का प्रमाण है कि इस तरह के मशरूम भी परिसर में उगे हैं.

वैज्ञानिकों ने इस मशरूम को अपनी प्रयोगशाला में संरक्षित किया है. अब इस की गुणवत्ता की जांच और मिट्टी की जांच कर के इस बात का पता चला जाएगा कि किस में कौनकौन से गुण हैं, जिस के कारण यह इन जगहों पर उगे हैं. इस की गुणवत्ता इतनी पौष्टिक है, यह एक शोध का विषय है, जिस पर वैज्ञानिक अब  काम करेंगे.

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