खरीफ में धान के बाद मक्का पूर्वांचल की मुख्य फसल है. इस की खेती दाने, भुट्टे और हरे चारे के लिए की जाती है. इस के दाने से लावा, सत्तू, आटा बना कर रोटी, भात, दर्रा, चिउड़ी, घुघनी आदि गंवई इलाकों में आसानी से बनाया जाता है.

यह ऐसी फसल है, जिस के भुट्टे दुग्धावस्था से प्रयोग में आने लगते हैं. गांवदेहात के इलाकों में इस के विभिन्न उत्पाद बनते हैं, परंतु शहरों में घर और  होटलों में कौर्न फ्लैक्स के रूप में ज्यादा प्रयोग होता है.

मिट्टी और खेत की तैयारी : मक्का के लिए बलुई दोमट भूमि अच्छी होती है. मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें और उस के बाद 2-3 बार हैरो से जुताई करें.

उन्नत किस्में : संकर किस्मों में पूसा संकर मक्का-5, मालवीय संकर मक्का-2, प्रकाश जल्दी पकने वाली प्रजातियां (तकरीबन 80-90 दिन) हैं. गंगा-11, सरताज 100 से 110 दिन में पकने वाली प्रजातियां हैं. संकुल प्रजातियों में जल्दी पकने वाली (तकरीबन 75-85 दिन) गौरव, कंचन, सूर्या, नवजोत और 100-110 दिन में पकने वाली प्रजाति प्रभात है.

बीज की दर : प्रति बीघा 5 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.

बोआई का समय : देर से पकने वाली प्रजातियों की बोआई मध्य जून तक पलेवा करने के बाद कर दें और जल्दी पकने वाली प्रजातियों की बोआई जून माह के आखिर तक कर दें, जिस से वर्षा से पहले पौधे खेत में भलीभांति लग जाएं.

बोआई की विधि : हल के पीछे कूंड़ों में या सीड ड्रिल से बोआई करें. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. साथ ही, गहराई भी 3-5 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : मिट्टी जांच के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करें. बोआई से पहले 26 किलोग्राम यूरिया, 32.5 किलोग्राम डीएपी एवं 25 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश और 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग प्रति बीघा की दर से कूंड़ों में डालनी चाहिए.

25-30 दिन की पौध होने पर निराई के बाद 12.50 किलोग्राम यूरिया की टौप ड्रैसिंग करें और मंजरी बनते समय 12.50 किलोग्राम यूरिया दोबारा डालें.

सिंचाई : प्रारंभिक और सिल्किंग (मोचा) से दाना बनते समय खेत में नमी का होना आवश्यक है. बरसात न होने पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

अंतर्वर्ती खेती : असानी से मक्का के साथ उड़द, मूंग और लोबिया की अंतर्वर्ती खेती की जा सकती है.

फसल की देखरेख : कौआ, सियार आदि अन्य जानवरों से फसल की रखवाली आवश्यक है.

कटाईमड़ाई : भुट्टों की पत्तियां जब 75 फीसदी पीली पड़ने लगें, तो कटाई कर लेनी चाहिए. भुट्टों की तुड़ाई कर के उस की पत्तियों को छील कर धूप में सुखा कर हाथ या मशीन द्वारा दाना निकाल देना चाहिए.

उपज : अच्छी तरह खेती करने पर प्रति बीघा (2500 वर्गमीटर/20 कट्ठा/एक हेक्टेयर का चौथाई भाग) में जल्दी पकने वाली प्रजातियों की 7-10 क्विंटल और देर से पकने वाली प्रजातियों की 10-12 क्विंटल उपज ली जा सकती है.

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