New Rice Varieties : हाल ही में आई बाढ़ के बाद BAU के खेतों में आयोजित फील्ड निरीक्षण के दौरान कुलपति डा. डीआर सिंह ने धान की नई किस्मों (New Rice Varieties) सबौर श्री सब-1, सबौर कतरनी धान-1 और सबौर विभूति धान के प्रदर्शन का जायजा लिया. उन के साथ निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, निदेशक (बीज और फार्म) डा. फैजा अहमद और धान अनुसंधान दल के अन्य वैज्ञानिक उपस्थित थे.
सबौर श्री सब-1 (BRR0266/IET32122)
मार्कर असिस्टेड ब्रीडिंग के माध्यम से विकसित इस किस्म ने 14 दिनों तक जलमग्न रहने के बावजूद 30–35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज दी, जबकि सामान्य परिस्थितियों में यह 50–55 क्विंटल तक उपज देती है. 140–145 दिनों में परिपक्व होने वाली यह किस्म बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श है.
सबौर कतरनी धान-1 (BRR0215)
पारंपरिक कतरनी धान किस्म अकसर बारिश और गिरने से नष्ट हो जाती है. यह उन्नत किस्म केवल 110–115 सैंटीमीटर ऊंची है, जिस से इस के गिरने की संभावना कम होती है. साथ ही, यह भागलपुर की GI टैग वाली कतरनी किस्म की सुगंध और गुणवत्ता को भी बरकरार रखती है. इस की उपज 42–45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 135–140 दिनों में तैयार हो जाती है.
सबौर विभूति धान
इस बार की बाढ़ में 7–8 दिन जलमग्न रहने के बावजूद इस किस्म को केवल 5–10 फीसदी क्षति हुई. इस में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB) के खिलाफ 3 प्रतिरोधी जीन मौजूद हैं, साथ ही यह ब्लास्ट रोग को भी सहन करती है. महसूरी-प्रकार की यह अर्धबौनी किस्म 135–140 दिनों में परिपक्व होती है और औसतन 55–60 क्विंटल की उपज देती है. अनुकूल परिस्थितियों में यह 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज दे सकती है.
कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा, “हालिया बाढ़ और रोगों की बढ़ती घटनाएं दर्शाती हैं कि ऐसी किस्में समय की मांग हैं. BAU की ये धान किस्में किसानों को जलवायु संकट और रोगों के दबाव से सुरक्षा प्रदान करते हुए उन की आमदनी सुनिश्चित करती हैं.”
डॉ. एके सिंह, निदेशक अनुसंधान ने कहा, “सबौर श्री सब-1, कतरनी धान-1 और विभूति धान वैज्ञानिक अनुसंधान और फील्ड परीक्षण का परिणाम हैं. हाल की आपदाओं में इन की सफलता यह प्रमाणित करती है कि ये किस्में बिहार के किसानों के लिए वरदान हैं.”
बिहार के लिए महत्त्व
बिहार में 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती होती है, लेकिन हर साल बाढ़, जलमग्नता और BLB जैसी बीमारियां किसानों की उपज और आय पर असर डालती हैं. BAU सबौर द्वारा विकसित ये उन्नत किस्में न केवल इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं, बल्कि जलवायु के प्रति संवेदनशील कृषि के लिए भी आशा की नई किरण हैं.
इन उपलब्धियों के साथ, BAU सबौर एक बार फिर किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप, नवाचारी और टिकाऊ कृषि समाधान प्रदान करने वाले अग्रणी राष्ट्रीय संस्थान के रूप में अपनी भूमिका को सिद्ध करता है.