यह समय गेहूं की बोआई के लिए माकूल है. इन दिनों किसान अपने खेतों की तैयारी में जुटे हैं. पूरे राजस्थान में गेहूं की खेती की जाती है. यदि उन्नत विधि से खेती की जाए तो औसतन पैदावार 30 से 60 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है.

जलवायु : बोआई के समय उपयुक्त औसत तापमान 23 डिगरी से 25 डिगरी सैंटीगे्रड सही माना जाता है. अच्छे फुटाव के लिए तापमान 16-20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान मुफीद रहता है.

मिट्टी : वैसे तो इस की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी सब से ज्यादा अच्छी मानी जाती है. जमीन का पीएच मान 6-8.5 के बीच अच्छा माना जाता है.

उन्नत किस्में : अच्छी किस्मों के बीज बोने से सामान्य से ज्यादा उत्पादन होता है. साथ ही, ये किस्में रोग व कीटों के प्रति सहनशील होती हैं.

बोआई के आधार पर गेहूं की किस्मों को 3 भागों में बांटा गया है :

अगेती बोआई : सी-306, डब्ल्यूएच-416, डब्ल्यूएच-1025.

समय पर बोआई : राज-1482, राज-3077, राज-4120, राज-4238, राज-4037, राज-4083, राज-4079, पीबीडब्ल्यू-343, पीबीडब्ल्यू-373, एचडी-2329, एचडी-2204, डब्ल्यूएच-147 वगैरह.

पछेती बोआई : राज-3765, राज-3077, राज-3771, राज-4079, राज-4083, डब्ल्यूएच-291, डब्ल्यूएच-1021, एचडी-2270, एचडी-2285 वगैरह.

खेती की तैयारी

फसल के बाद खेत में देशी हल से 3-4 बार जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा करने के बाद अगर खेत में दीमक और दूसरे कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो आप अपने खेतों में मिट्टी उपचार जरूर करें. इस के लिए अंतिम जुताई के समय खेत में क्विनालफास 1.5 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए.

बोआई का समय : वैसे तो गेहूं की बोआई 5 नवंबर से 15 नवंबर तक की जा सकती है, लेकिन बढि़या समय नवंबर माह का पहला सप्ताह से तीसरा सप्ताह तक माना जाता है.

गेहूं की बोआई कतारों में 20-22.5 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 7-10 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

सिंचित इलाके में बीज की गहराई 4-5 सैंटीमीटर तक रखी जा सकती है.

बीज दर : सिंचित इलाकों में गेहूं की फसल की बोआई के लिए 100-120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

बीजोपचार : बीजों का बीजोपचार बहुत ही जरूरी है. यह आप की फसल को शुरुआती अवस्था से ले कर अंत तक कई रोगों से बचाता है.

गेहूं में बीजोपचार के लिए फफूंदनाशी कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी से 2-3 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 5-7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपयोग करें.

इस के बाद बीज को क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

खाद व उर्वरक प्रबंधन

बोआई से 1 महीने पहले 7-10 टन सड़ी गोबर की खाद खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए. सिंचित इलाकों में बोआई के समय 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं.

30-30 किग्रा नाइट्रोजन पहली व दूसरी सिंचाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में डालें.

जिंक की कमी वाले खेतों में जिंक सल्फेट 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से साल में एक बार डालनी चाहिए.

खाद और उर्वरकों की मात्रा मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड की संस्तुति के अनुरूप ही इस्तेमाल करें.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद करें यानी शीर्ष जड़ जमते समय करें. दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद जब फुटाव व कल्ले निकलें तब करें. तीसरी सिंचाई 60-65 दिन बाद गांठ बनते समय करें. चौथी सिंचाई 80-85 दिन बाद बाली निकलते समय करनी चाहिए. 5वीं सिंचाई 100-105 दिन बाद दूधिया अवस्था होने पर करें. छठी सिंचाई 115 दिन बाद करने पर अच्छी उपज हासिल होती है.

Wheatखरपतवार नियंत्रण : गेहूं की फसल के लिए पहले 35 दिन खरपतवारों के लिहाज से काफी क्रांतिक होते हैं यानी इस समय तक खेत को खरपतवारविहीन रखना बहुत जरूरी है. इन को हैंड हो, खुरपी वगैरह से निराईगुड़ाई कर के निकाला जा सकता है.

अगर मजदूर नहीं मिल रहे हों तो फसल बोआई के 25 से 35 दिन के बीच खरपतवारों के प्रकार जैसे चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 0.5 से 0.75 किग्रा मैटासल्फ्यूरान मिथाइल 6 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से करें.

संकरी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे जंगली जई, गेहूं का मामा वगैरह के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 25 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर और दोनों प्रकार के खरपतवार होने पर आप इन दोनों दवाओं को एकसाथ मिला कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

उपज : अगर उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाई जाएं तो गेहूं की औसत उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है.

ज्यादा जानकारी के लिए किसी नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क करें.

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