Namo Drone Didi : नमो ड्रोन दीदी योजना पर राष्ट्रीय कार्यशाला

Namo Drone Didi : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (मशीनरी एवं प्रौद्योगिकी विभाग) ने नई दिल्ली में पिछले दिनों औनलाइन केंद्रीकृत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्लेटफौर्म संस्करण 2.0 और नमो ड्रोन दीदी योजना के कार्यान्वयन पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया.

इस कार्यक्रम में डा. देवेश चतुर्वेदी, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, डा. प्रमोद कुमार मेहरदा, अपर सचिव और एस रुक्मणी, संयुक्त सचिव की उपस्थित थे. इस कार्यशाला में केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य कृषि व ग्रामीण विकास विभागों और प्रमुख उर्वरक कंपनियों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया. मंत्रालय के सचिव ने कार्यशाला का उद्घाटन किया और कृषि में ड्रोन का उपयोग कर के मिट्टी और पौधों के पोषक तत्वों के विभिन्न रूपों के इस्तेमाल के लिए फसल विशिष्ट मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का लौंच किया. ये एसओपी वैज्ञानिक मार्गदर्शन और पूरे देश में ड्रोन संचालन को एकरूपता प्रदान करेंगे.

इस कार्यक्रम में डा. देवेश चतुर्वेदी सचिव, कृषि और कल्याण मंत्रालय ने कृषि योजनाओं में दक्षता एवं उत्तरदायित्व बढ़ाने में डिजिटल प्लेटफार्मों के महत्व पर बल दिया. उन्होंने बताया कि डीबीटी पोर्टल और नमो ड्रोन दीदी योजना के अंतर्गत ड्रोन पोर्टल के नए संस्करण का उद्देश्य एक मजबूत डिजिटल प्रणाली तैयार करना है जो पारदर्शिता लाता है और उचित व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देता है, जिस से हर एक किसान को सब्सिडी के साथ मशीनें प्राप्त करने का एक मौका मिलता है. उन्होंने कृषि मशीनरी के महत्व को भी उजागर किया और देश के छोटे व सीमांत किसानों की समस्याओं का समाधान करने के लिए वितरण प्रणालियों में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल दिया.

नमो ड्रोन दीदी योजना कृषि क्षेत्र की एक प्रमुख पहल है जिस का उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को कृषि उद्देश्यों के लिए ड्रोन का संचालन करने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना और उन्हें इस से सुसज्जित करना है, जैसे कि खाद और कीटनाशकों का छिड़काव करना आदि. नव विकसित ड्रोन पोर्टल, ड्रोन संचालन की मैपिंग व ट्रैकिंग, पायलट प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रबंधन और व्यापक डैशबोर्ड के साथ सभी हितधारकों तक पहुंच की सुविधा प्रदान करेगा और उसे सभी राज्यों को उन की समीक्षा करने के लिए भेजा गया है.

इस कार्यशाला में केंद्रीकृत डीबीटी प्लेटफौर्म संस्करण 2.0 का लाइव प्रदर्शन और नए विकसित नमो ड्रोन दीदी पोर्टल को शामिल किया गया, जिस से राज्य नोडल अधिकारियों व हितधारकों को इस की सुविधाओं, कार्य प्रोटोकौल को समझने में मदद मिल सके. इस उन्नत पोर्टल में बहुत सुधार किया गया है जिस का उद्देश्य कृषि मशीनीकरण उपमिशन (एसएमएएम) के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है.

इस में कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियों जैसे सब्सिडी में देरी, पारदर्शिता की कमी और मैनुअल अड़चनों आदि का नई उन्नत डीबीटी पोर्टल में समाधान किया गया है. खुली चर्चाओं ने राज्यों को फीडबैक प्रदान करने और कार्यान्वयन रणनीतियों को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया है. विभिन्न राज्यों के राज्य नोडल अधिकारियों ने अपने उपयोगी फीडबैक, जमीनी अनुभव और अच्छी प्रथाओं को साझा किया है जो पोर्टल में सुधार व कृषि मशीनरी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन का रोडमैप तैयार करने में मददगार साबित होंगे.

Ashwagandha : अश्वगंधा की खेती पर प्रशिक्षण

Ashwagandha : देवारण्य योजना के अंतर्गत आज मध्य प्रदेश राज्य औषधि पादप बोर्ड, भोपाल के निर्देशानुसार कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल व जिला आयुष अधिकारी डा. केएस गनावे के मार्गदर्शन में विकास खंड चांचौड़ा और आरोन के किसानों व स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को “एक जिला एक औषधीय पौधा” योजना के अंतर्गत अश्वगंधा की खेती संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किया गया.

इस प्रशिक्षण में मास्टर ट्रेनर द्वारा अश्वगंधा की कृषि के लिए खेत तैयार करना, पौध तैयार करना, बिजाई, जैविक खाद प्रयोग, कीटनाशक प्रयोग, निराईगुड़ाई, सिंचाई फसल कटाई, उपज भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन, फसल चक्र, रासायनिक संगठन उच्च गुणवत्ता और उपयोग आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी प्रदान की.

अश्वगंधा के औषधीय गुणों की जानकारी

आयुर्वेदिक यूनानी औषधीयों में अश्वगंधा के उपयोग और विभिन्न प्रकार के रोगों में अश्वगंधा के प्रयोग व आयुर्वेदिक योगों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है. साथ ही, औषधीय पौधे अश्वगंधा की आर्थिक संभावनाओं के बारे में भी बताया गया है.

आयुष अधिकारी डा. केएस गनावे ने बताया कि देवारण्य योजना के अंतर्गत जिले में अश्वगंधा को “एक जिला एक औषधि पौधा” के रूप में चयनित किया गया है, जिस के तहत जिलेभर में अश्वगंधा की खेती को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देना और स्थानीय समितियों को मजबूत बनाना है. विशेषज्ञों द्वारा यह भी बताया गया कि अश्वगंधा को मिरेकल प्लांट और इंडियन जिनसेंग भी कहते है. जिस की मांग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेजी से बढ़ रही है.

विकास खंड चांचौड़ा में डा. पर्वत सिंह धाकड़, डा. जयराम यादव, डा. आकांक्षा गुप्ता,  अजब सिंह लोधा द्वारा और विकास खंड आरोन में डा. विजय कुमार वर्मा, डा. अंकेश अग्रवाल, डा. हुकुम सिंह धाकड़, शैलेंद्र श्रीवास्तव द्वारा प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण में उपस्थित सभी सदस्यों को प्रशिक्षण किट एवं प्रमाण पत्र वितरित किए गए.

Raised Bed Planter :उन्नत तकनीक से मक्के की बोवनी

Raised Bed Planter : जबलपुर के किसानों के लिए एक खुशखबरी है. रेज्ड बेड प्लांटर मशीन द्वारा मक्के की बोवनी में अत्यधिक बारिश के बावजूद भी किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई है. आज यह उन्नत तकनीक मक्का, दलहन और तिलहन फसलों के लिए वरदान साबित हो रही है. इस मशीन के द्वारा मिट्टी की मेड़ बनाई जाती है और उस पर बोवनी की जाती है. इस में एक विशेष व्यवस्था होती है जिस से अत्यधिक बारिश होने पर नालियों से बारिश का पानी बाहर निकल जाता है और फसल को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है.

इस के विपरीत, यदि कम बारिश भी होती है तो बारिश का पानी सीधे पौधों की जड़ों में पहुंच जाता है, जिस से पौधे को सीधे पानी मिलता है. कृषि अभियांत्रिकी अधिकारी एनएल मेहरा ने बताया कि यह पद्धति मक्का, दलहन, और तिलहन फसलों के लिए बहुत ही फायदेमंद है. इस से फसलों की उत्पादकता बढ़ती है और किसानों की आय में बढ़ोतरी होती है.

पनागर विकासखंड के नरेंद्रपुर के निवासी प्रगतिशील किसान बीडी अरजरिया ने अपने खेतों में इस पद्धति को अपनाया है और उन्हें बहुत ही अच्छे परिणाम मिले हैं. आसपास के किसानों ने उन की सफलता को देख कर इस पद्धति को अपनाने की प्रेरणा ली है. रेज्ड बेड प्लांटर मशीन द्वारा मक्के की बोवनी एक उन्नत तकनीक है जो किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद है. इस से फसलों की उत्पादकता बढ़ती है, आय में बढ़ोतरी होती है और किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा करने में भी मदद मिलती है. जबलपुर के किसानों के लिए अपनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और अपनी आय में इजाफा करने का यह एक अच्छा मौका है.

Mobile veterinary Unit :चलित पशु चिकित्सा इकाई वाहन से पशु के उपचार

Mobile veterinary Unit : शहरों से ले कर दूरदराज में बसे गांवो के निवासियों को अपने पशुओं का इलाज कराने में राज्य सरकार द्वारा संचालित “चलित पशु चिकित्सा इकाई” से बड़ी सुविधा मिल रही है. एक फोन कौल पर चलित पशु चिकित्सा इकाई का वाहन, पशु के उपचार के लिए मौके पर पहुंच जाता है. ग्वालियर चंबल संभाग में वर्ष 2024-25 में चलित पशु चिकित्सा इकाइयों के माध्यम से ग्वालियर जिले के 9,607 पशुओं सहित दोनो संभागों में कुल 83 हजार 29 पशुओं का उपचार किया गया है.

ग्वालियर व चंबल संभाग में वर्तमान में 56 चलित पशु चिकित्सा इकाई चलाई जा रही हैं. इन में से ग्वालियर जिले में 6, दतिया में 4, शिवपुरी में 9, गुना में 8, अशोकनगर में 5, भिंड में 8, मुरैना में 9 व श्योपुर जिले में 7 इकाई चल रही है.

पिछले वित्तीय वर्ष (2024-25) के दौरान ग्वालियर संभाग के अंतर्गत चलित पशु चिकित्सा इकाइयों के माध्यम से ग्वालियर जिले में 9,607, दतिया में 6,256, शिवपुरी में 16,756, गुना में 10,178 व अशोकनगर जिले में 9,573 पशुओं का उपचार किया गया.

इसी तरह चंबल संभाग के अंतर्गत भिंड जिले में 9,568, मुरैना में 13,758 व श्योपुर जिले में 7, 333 पशुओं का उपचार चलित पशु चिकित्सा इकाइयों के माध्यम से बीते वित्तीय वर्ष के दौरान किया गया.

इस चलित पशु चिकित्सा इकाई के माध्यम से कुत्ता व बिल्ली का इलाज कराने के लिए 300 रूपए व अन्य पशुओं के इलाज के लिए 150 रूपए प्रति पशु शुल्क निर्धारित है. कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नं.1962 पर कौल कर इस सुविधा का लाभ उठा सकता है.

Arhar : अरहर की पूसा-16 किस्म को बढ़ावा

Arhar: मौजूदा खरीफ मौसम में ग्वालियर जिला सहित ग्वालियर व चंबल संभाग के अंतर्गत दलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा. दलहन के तहत खास तौर पर अरहर की पूसा अरहर- 16 किस्म का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने का कार्यक्रम तैयार किया गया है. दोनों संभागों में कुल मिलाकर 4,310 हेक्टेयर रकबे में अरहर की पूसा-16 किस्म उगाने का कार्यक्रम बनाया गया है. इस के लिए जिलेवार बीज की व्यवस्था भी कर ली गई है.

जानकारी के मुताबिक ग्वालियर संभाग के ग्वालियर जिले के अंतर्गत 500 हेक्टेयर रकबे में पूसा अरहर-16 प्रस्तावित की गई है. इसी तरह शिवपुरी जिले मे 650 हेक्टेयर, गुना में 500 हेक्टेयर, दतिया जिले में 500 हेक्टेयर व अशोकनगर जिले में 510 हेक्टेयर रकबे में अरहर की पूसा-16 किस्म की बोवनी का लक्ष्य रखा गया है.

चंबल संभाग के अंतर्गत मुरैना जिले में 600 हेक्टेयर, भिंड में 550 हेक्टेयर एवं श्योपुर जिले में 500 हेक्टेयर के क्षेत्र में अरहर की पूसा-16 किस्म उगाने का कार्यक्रम बनाया गया है. दोनों संभागों के सभी जिलों में इस के बीज की पूर्ति बीज उत्पादक समितियों के माध्यम से की जाएगी.

हमारा लक्ष्य सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए अन्न उपलब्ध करवाना है

Shivraj Singh Chauhan : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर के भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम सभागार में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की 96वीं वार्षिक आम बैठक की अध्यक्षता की.

इस बैठक में 18 से ज्यादा केंद्रीय एवं राज्य मंत्री शामिल रहे. इस बैठक में आईसीएआर के महानिदेशक डा. एमएल जाट ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वार्षिक प्रतिवेदन 2024-2025 का संकल्प पढ़ा. इस बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सालाना रिपोर्ट 2024-25 जारी की गई. साथ ही, कृषि एवं प्रौद्योगिकी संबंधित चार पुस्तकों का विमोचन भी किया गया.

इस के बाद सभी मंत्रियों ने बैठक को संबोधित किया, जिस में उन्होंने भारत के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी और कृषि क्षेत्र में तेजी से हो रही प्रगति को ले कर खुशी जाहिर की. इस बैठक में सभी मंत्रियों ने भविष्य में खेती और किसान समृद्धि की दिशा में एक जुट हो कर सार्थक प्रयास करने की प्रतिबद्धता भी जताई. इस बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फसल औषधि केंद्र के विचार को आगे बढ़ाने की भी बात की. साथ ही, विभिन्न राज्यों के मंत्रियों से महत्त्वपूर्ण योजनाओं को जारी रखने और महत्त्वहीन योजनाओं को खत्म करने और नई योजनाओं के शुरू होने को ले कर सुझाव भी आमंत्रित किए. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि योजनाओं का वास्तविक लाभ किसानों को मिल रहा है या नहीं, इस की पहचान करना बेहद जरूरी है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि राज्य का विषय है, राज्य सरकारों के सहयोग के बिना कृषि की उन्नति के प्रयास अधूरे हैं. केंद्र और राज्यों को मिल कर कृषि क्षेत्र के लिए कार्य करना होगा. उन्होंने कहा एक समय था जब हमें निम्न गुणवत्ता वाला गेहूं अमेरिका से आयात कर के खाना पड़ता था. भारत के बारे में यह छवि थी कि हम कभी खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सकते. लेकिन आज यह छवि और मिथक पूरी तरह से मिट गई है. खाद्यान्न के मामले में भारत रिकौर्ड कायम कर रहा है. अन्न के भंडार भर रहे हैं. खाद्यान्न उत्पादन में रिकौर्ड स्तर पर वृद्धि दर्ज की गई है. आज हम कृषि उत्पाद निर्यात कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हमारी उपलब्धियां अभिनंदनीय हैं, जिस के लिए सभी वैज्ञानिकों और आईसीएआर की टीम को बधाई देता हूं. लेकिन उपलब्धियों के साथसाथ कुछ चुनौतियां भी हैं, जिस दिशा में हमें काम करना होगा. उन्होंने कहा कि विकसित कृषि संकल्प अभियान में जो सुझाव व बातें उभर कर आई हैं, उसी के आधार पर आगे का रास्ता तय होगा. राज्य के हिसाब से भावी अनुसंधान के रास्ते तय करने होंगे. मांग आधारित अनुसंधान की जरूरत है. सिर्फ कागजी औपचारिकता के लिए अनुसंधान नहीं, बल्कि किसानों की उपयोगिता को देखते हुए अनुसंधान किए जाने चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि सोयाबीन, दलहन, तिलहन में अभी और अधिक शोध व काम की जरूरत है. गेहूं, चावल, मक्के के साथसाथ दलहन, तिलहन व अन्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि को ले कर तेजी से प्रयास करने होंगे. जिस के लिए राज्यवार व फसलवार कार्य योजना बनाई जाएगी. उन्होंने कहा कि कल मैं ने मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती का निरीक्षण किया. जहां खराब बीज की गंभीर समस्या देखने को मिली. खराब बीज के कारण अकुंरण ही नहीं हो पाया था. जिस के बारे में मैं ने तुरंत जांच के आदेश दे दिए हैं. अमानक बीज, खाद और उर्वरक बेहद गंभीर विषय है, जिसे ले कर भी सरकार जल्द ही कड़ा कानूनी प्रावधान लाएगी. उर्वरकों के एमआरपी पर भी काम करने की जरूरत है. उर्वरक की सही कीमत तय होनी बहुत जरूरी है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि फसलवार बैठकों का क्रम शुरू किया जा चुका है. सोयाबीन पर मध्य प्रदेश के इंदौर में बड़ी बैठक की गई है. आगे अब कपास, गन्ने व अन्य फसलों को लेकर भी विशेष बैठकें की जाएगी. आने वाली 11 जुलाई को कोयंबटूर में कपास को ले कर सम्मेलन करेंगे. कपास मिशन को उपयोगी बनाने पर विचार करेंगे. एकएक फसल पर राज्य की जरूरतों, जलवायु अनुकूलता और किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार विस्तारपूर्वक चर्चा की जाएगी और उचित समाधान के साथ उत्पादन बढ़ोतरी पर काम होगा.

उन्होंने आगे वैज्ञानिकों से आह्वान करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी के और बेहतर इस्तेमाल के साथ किसानों की मांग के अनुरूप और आधुनिक खेती के उपकरण बनाने की दिशा में प्रयास करें. हाल ही के एक अनुभव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक किसान द्वारा ऐसे उपकरण बनाने की मांग की गई थी, जो उर्वरकता की जांच कर सके. ऐसा उपकरण जो बता सके कि तय मापदंड के अनुसार उर्वरक की गुणवत्ता सही है या नहीं, उर्वरक उपयोगी है या नहीं. ऐसे ही कई विचार किसानों से चर्चा के दौरान सामने आते हैं, जिसे आधार बनाकर शोध की दिशा तय की जा सकती है. उन्होंने कहा कि लैब और संस्थानों का सैद्धांतिक ज्ञान जब व्यावहारिक स्वरूप में किसानों तक पहुंचेगा, तभी सही मायने में शोध की सार्थकता सिद्ध होगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि रबी की फसल से पहले राज्यों के साथ मिल कर फिर से ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के जरीए किसानों तक विज्ञान को ले जाने की कोशिश होगी. रबी सम्मेलन दो दिन का होगा. पहले दिन रूपरेखा तय होगी, दूसरे दिन राज्यों के कृषि मंत्री तय रूपरेखा को अनुमोदित करते हुए अंतिम कार्य योजना को रूप देंगे. भारत की माटी की उर्वरक क्षमता अतुलनीय है. मुझे यकीन है कि भारत देश के लिए भी और दुनिया के लिए भी अन्न की उपज करेगा और दुनिया का फूड बास्केट बनेगा.

उन्होंने आगे कहा कि विकसित भारत के लिए विकसित खेती और समृद्ध किसान जरूरी है. जिस के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी. उन्होंने कहा कि मैं स्वयं खेतों में जा कर किसानों से मिल कर खेती को जमीनी स्तर पर समझने की कोशिश कर रहा हूं. कश्मीर के सेब हो, केसर हो, उत्तर प्रदेश का गन्ना या कर्नाटक की सुपारी हो, मैं सब जगह जा कर खेती को नजदीक से समझने और भावी रणनीतियों को ले कर प्रयासरत हूं.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि खेती मात्र एक व्यवसाय नहीं देश की सेवा है. हमें भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी है. 144 करोड़ आबादी के लिए खाद्यान्न सुरक्षा के साथसाथ पोषणयुक्त आहार उपलब्ध करवाना है, आने वाली पीढ़ी के लिए धरती को सुरक्षित रखना है, हमारा लक्ष्य सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी अन्न की उपलब्धता करवाना है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में भौतिक प्रगति की चाह में दुनिया के कई देश ऐसे कदम उठा रहे है, जिस से प्रकृति को नुकसान हो रहा है. लेकिन हमें ऐसा मार्ग चुनना है जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना, विकास की दिशा तय करे.

अंत में शिवराज सिंह ने वैज्ञानिकों से कहा कि आप बेहतर काम कर रहे हैं, जिस के लिए बधाई के पात्र हैं. लेकिन उपलब्धियों के साथसाथ चुनौतियों पर भी काम करना होगा. मेरा आह्वान है कि आगे की शोध की रूपरेखा चुनौतियों और उन के समाधान को ध्यान में रखते हुए तय कर, बढ़ते रहें और कृषि क्षेत्र में नई सफलताएं हासिल करते रहें.

Water Crisis : दिनोंदिन बढ़ रहा पानी का संकट

Water Crisis: भारत में 6.6 लाख से अधिक गांव, 4 हजार छोटेबड़े कस्बे और शहर हैं. राजस्व रिकौर्ड के मुताबिक भारत में 35 लाख से अधिक तालाब, पोखर और छोटेमोटे जलाशय हैं. इन में से लगभग एक तिहाई अपना अस्तित्व खो चुके हैं. बहुत सारे अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं. वर्तमान के कुल जलाशयों में से कुछ हिस्से सूखे हुए हैं और कुछ गंदे और प्रदूषित पानी को इकट्ठा कर रहे हैं. इन परिस्थितियों से उबरने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम जैसे अटल भूजल योजना, नमामि गंगे परियोजना, कैच द रेन अभियान, जलशक्ति अभियान, मिशन अमृत सरोवर आदि स्वच्छ जल संसाधन की उपलब्धता बढ़ाने में बहुत कारगर साबित हो रहे हैं.

विश्व जल विकास रिपोर्ट (यूनेस्को 2021) के अनुसार पिछले 100 सालों में मीठे जल का विश्व स्तर पर उपयोग छह गुना बढ़ा है. पिछली शताब्दी के मध्य में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता जो थी आज उस की एक तिहाई से भी कम रह गई है, क्योंकि उस समय की जनसंख्या 35 करोड़ से बढ़ कर आज 142 करोड़ हो गई है.

इस लेख में भूजल चर्चा केंद्र में है इसलिए आवश्यक होगा केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के आंकड़ों का उल्लेख करना. बोर्ड द्वारा प्रकाशित गतिशील भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट कहती है कि देश में 447 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम) जल का सालाना रिचार्ज होता है. उस में से 408 (बी.सी.एम) भूजल का उपयोग होता है. उस में से 246 (बी.सी.एम) का उपयोग सिंचाई, घरेलू खपत और औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा है. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि भूजल की स्थिति बहुत गंभीर नहीं है. आगे आंकड़ों का विश्लेषण कर के समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर पूरे देश में भूजल दोहन, भूजल संकट आदि की गूंज क्यों सुनाई पड़ती है. बोर्ड ने भूजल आकलन के लिए देश मे कुल 6,746 इकाई निर्धारित किए हैं, जिस में से 4,951 सुरक्षित श्रेणी में, 711 अर्ध गंभीर, 206 गंभीर, 751 अति दोहित और 127 खारे या लवणयुक्त भूजल की श्रेणी में आते हैं.

अत्यधिक भूजल दोहन के दुष्प्रभाव पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ जिलों में देखने को हैं. जिस कारण इन क्षेत्रों में भूजल की उपलब्धता बहुत कम हो गई है, इसलिए इन राज्यों में भूजल रिचार्ज की प्रक्रिया को जल्दी करना होगा.

भूजल की मौजूदा स्थिति को ले कर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, दादरा और नागर हवेली, दमन दीव, चंडीगढ़, पुडुचेरी, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में हालात बहुत चिंताजनक है. अन्य सभी राज्यों की स्थिति बिलकुल गंभीर नहीं है. यह स्पष्ट है कि भूगर्भ का जलाशय सतही जलाशयों से बहुत अधिक है और जल के दोनों प्राकृतिक संसाधन अर्थात सतही जल और भूजल आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इसलिए दोनों ही प्रकार के जल संसाधनों को एक मानकर ही जल संकट का हल भारत सरकार जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना, मिशन अमृत सरोवर और ‘कैच द रेन’ अभियान, आदि के माध्यम से खोज रही है और उस के सकारात्मक परिणाम भारत की भूमि पर मिल रहे हैं.

आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि बारिश के मौसम भूजल स्तर छोटीछोटी नदियों या सहायक नदियों के तल से नीचे चले जाने से बेस फ्लो लगभग शून्य हो जाता है. जिस के बाद सहायक नदियों का योगदान आगे खत्म होने से प्रमुख नदियों में प्रवाह की मात्रा ही नहीं घटी है, बल्कि जल प्रवाह का कालखंड भी सीमित हो गया है. परिणाम स्वरूप उन राज्यों में जहां भूजल का अत्यधिक दोहन कई दशकों से लगातार हो रहा है उन राज्यों की छोटी मोटी नदियां बारिश के मौसम के 2-3 महीने बाद सूख ही जाती है.

पाठकों की जानकारी के लिए एक लघुकथा का जिक्र करना आवश्यक हो जाता है. भारत में भूजल के उपयोग के लिए 1930 के आसपास पहला ट्यूबवेल लगा. इस का मतलब है कि आज से 100 साल पहले भूजल का उपयोग साधारण कूप, टैंक, तालाब, पोखर और जल प्रपात की आबादी से ही होता था. उस समय धरती के जलाशय भरे रहते थे, भूमि में जल का स्तर सभी स्थानों की नदियों तल से बहुत ऊपर रहता था. कहीं भी कुंआ खोदने पर भूजल सतह के कुछ ही मीटर नीचे मौजूद होता था.

भूमि पर सभी नदी तंत्र सजीव और प्रवाह युक्त रहती थीं. यही कारण रहा कि सभी नगरों की बसावट उन नदियों किनारे या उस के समीप था. यह घटना अतीत की थी. अब वही नगर, शहर अपना मल नदियों के पानी में डाल कर सभी नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं. इस से निजात पाने के लिए नमामि गंगे के माध्यम से प्रयास हो रहा है. हम सभी ने मलजल प्रदूषण की विवादास्पद चर्चा महाकुंभ में सुनी है.

बीते 100 सालों में, वैध और अवैध नलकूपों की संख्या लगातार बढ़ती रही, बेहिसाब मुफ्त बिजली संचालित भूजल दोहन हुआ, रिचार्ज और डिस्चार्ज का असंतुलन स्थापित हुआ. जिस का  परिणाम यह हुआ कि सभी प्रमुख नदियों में बहाव की भारी कमी देखी गई. कई नदियां विलुप्त हुई हैं. प्रधानमंत्री के आह्वान पर जल शक्ति मंत्रालय ने भूजल संवर्धन और नदियों में जल प्रवाह बढ़ने के लिए विभिन्न उत्सवों और कार्यक्रमों के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ने का काम 2019 से शुरू किया.

विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कई प्रक्षेत्रों में ‘तालाब जियाओ अभियान’ से भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. इस का प्रत्यक्ष उदाहरण गुजरात मौडल है. राष्ट्रीय स्तर और विभिन्न राज्य स्तरों पर भूजल संसाधन उपयोग के लिए सरल नियमावली अथवा दिशा निर्देश बने जो किसी कानून के तहत हो. भूजल संवर्धन का क्रियान्वयन अगले 50 सालों तक लगातार जारी रखना होगा तभी भूजल संकट ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से उपजे संभावित बड़े पैमाने पर पानी के चाहत में नागरिकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर भारी संख्या में पलायन को नियंत्रित किया जा सकेगा.

Milk Plant : जम्मू में बना 50 हजार टन क्षमता वाला दूध संयंत्र

Milk Plant : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह ने पिछले दिनों कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शालीमार कन्वेंशन सैंटर में आयोजित एक समारोह में कहा कि नीली क्रांति, मत्स्यपालन व जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना जैसी प्रमुख योजनाओं ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मूकश्मीर में मत्स्यपालन प्रणाली को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो बड़ी उपलब्धि है.

इस अवसर पर जम्मूकश्मीर के कृषि उत्पादन और पंचायती राज मंत्री जाविद अहमद डार, पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय व केंद्र और जम्‍मूकश्‍मीर प्रशासन के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ कश्मीर घाटी के विभिन्न क्षेत्रों से आए किसान भी मौजूद थे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने ग्रामीण आय और पोषण सुरक्षा के इंजन के रूप में जम्मूकश्मीर के पशुधन और मत्स्यपालन क्षेत्रों के विकास के लिए भारत सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि देश भर में 10 करोड़ से अधिक किसान अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं, जिन में से 90 फीसदी से अधिक डेयरी पशु छोटे और सीमांत किसानों के पास है और यह क्षेत्र ग्रामीण घरेलू आय में 12-26 फीसदी का योगदान देता है, जिस में डेयरी क्षेत्र की भागीदारी में 70 फीसदी से अधिक है. उन्‍होंने बताया कि डेयरी सहकारी सदस्यता में 32 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी है, जो समावेशी विकास में डेयरी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि जम्मूकश्मीर में दूध उत्पादन में 47 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जहां 2014-15 में दूध उत्पादन 19.50 लाख टन था वह 2023-24 में बढ़ कर 28.74 लाख टन हो गया है. जबकि केंद्र शासित प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 413 ग्राम प्रतिदिन है.

मछलियों के गुणवत्तापूर्ण बीज सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने जम्मूकश्मीर सरकार के लिए डेनमार्क से रेनबो और ब्राउन ट्राउट म‍छलियों के 13.40 लाख आनुवंशिक रूप से उन्नत अंडे (ओवा) के आयात की सुविधा प्रदान की है. इस से ट्राउट मछलीपालकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले मछली बीज की उपलब्धता में काफी सुधार हुआ है. इस का उत्पादन 2020-21 में 650 मीट्रिक टन से बढ़ कर 2023-24 में 2,380 मीट्रिक टन हो गया है, जो की 266 फीसदी की बढ़ोतरी को दर्शाता है.

Milk Plant

इस से पहले श्रीनगर में सिविल सचिवालय में एक बैठक में केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह और जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संयुक्त रूप से जम्मूकश्मीर के पशुपालन और मत्स्यपालन क्षेत्रों की एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की. उन्‍होंने सतवारी जम्मू में 50 हजार टन प्रतिदिन क्षमता वाले अल्ट्रा हाई टैंमपरेचर (यूएचटी) दूध प्रसंस्करण संयंत्र का उद्घाटन किया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि हम आज यहां आप की चुनौतियों को सुनने, समझने और साथ मिल कर काम करने के लिए आए हैं. जहां गुंजाइश है, वहां काम होना चाहिए. उन्होंने केंद्र और जम्मूकश्मीर सरकार के बीच संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया, ताकि संभावनाओं को परिणामों में बदला जा सके. उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास तभी हासिल किया जा सकता है जब आर्थिक विकास टिकाऊ आजीविका के माध्यम से जमीनी स्तर तक पहुंचे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंग ने आगे कहा कि आज युवाओं को सूक्ष्म और लघु स्तर के पशुधन व मत्स्यपालन उद्यम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने से रोजगार निर्माण व समावेशी विकास किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण और किसानों को बाजारों से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों को शामिल करते हुए एक विस्तृत योजना तैयार की जा रही है.

उन्होंने लोगों को यह भी बताया कि भारत सरकार ने हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए पीएमएमएसवाई के अंतर्गत 852 करोड़ रुपए देने की प्रतिबद्धता जताई है, जिस में विशेष रूप से जम्मूकश्मीर के लिए 300 करोड़ रुपए शामिल हैं. इस से उत्पादन, उत्पादकता, बुनियादी ढांचे और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया जा सकेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जम्मूकश्मीर का सालाना मछली उत्पादन 2013-14 में 20,000 मीट्रिक टन से बढ़ कर 2024-25 में 29,000 मीट्रिक टन हो गया है, जबकि ट्राउट मछली उत्पादन 262 मीट्रिक टन से बढ़ कर 2,380 मीट्रिक टन हो गया है, जो 800 फीसदी से भी अधिक की बढ़ोतरी है. उन्होंने कहा कि ट्राउट मछली बीज का उत्पादन 9 मिलियन से बढ़ कर 15.2 मिलियन हो गया है, जबकि कार्प मछली बीज उत्पादन 40 मिलियन से बढ़ कर 63.5 मिलियन हो गया है.

केन्‍द्रीय मंत्री ने बताया कि मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि के माध्यम से शीत जल मत्स्यपालन में 120 करोड़ रुपए से अधिक के निजी निवेश का समर्थन किया गया है. साथ ही, जम्मूकश्मीर की शीत जल मत्स्यपालन की अपार संभावनाओं को देखते हुए मंत्रालय ने अनंतनाग को शीत जल मत्स्यपालन क्लस्टर के रूप में औपचारिक रूप से नामित किया है, जिस में कुलगाम और शोपियां साझेदार जिले हैं, जो स्थायी आजीविका उत्पन्न करने के लिए एकीकृत मूल्यश्रृंखला विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना चरण-II के तहत जम्मूकश्मीर में एक एकीकृत एक्वा पार्क के लिए 100 करोड़ रुपए के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो समग्र शीत जलीय कृषि विकास के लिए एक मौडल के रूप में काम करेगा.

Zinc : जिंक है जरूरी 

Zinc :  4 जुलाई, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक अनुसंधान निदेशालय में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. यह कार्यशाला एमपीयूएटी, उदयपुर व अंतर्राष्ट्रीय जिंक संस्था एवं हिंदुस्तान जिंक के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की गई. डा. अरविंद वर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि जिंक फसलों और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है. पौधों में, जिंक एंजाइमों और हार्मोन के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विकास के लिए आवश्यक है.

मानव स्वास्थ्य में, जिंक प्रतिरक्षा प्रणाली, घाव भरने, डीएनए संश्लेषण और कोशिका विभाजन जैसे कई कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है. डा. सौमित्रा दास, निदेशक, एशिया पैसेफिक, अंतर्राष्ट्रीय जिंक संस्था, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जिंक का फसलों पर उपयोग कर खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में अहम योगदान दिया है.

अंतर्राष्ट्रीय जिंक संस्था विश्व के अनेक देशों में जहां पर कुपोषण की समस्या है, वहां पर कार्य कर रही है. जिंक एवं आयरन कुपोषण की समस्या को समाप्त करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं और शरीर को स्वस्थ्य बनाते हैं. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड से सृष्टि अरोड़ा, अंशुल नेगी, प्रोद्युत गोराई, इंद्रा दास भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे.

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, एमपीयूएटी, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिंक का फसलों में उपयोग और उस पर किए गए अनुसंधान आने वाले समय में फसलों में जिंक के महत्व और उपयोग के लिए काफी मदद करेगा और  यह कुपोषण की समस्या को कम करने में अपना अहम योगदान देगा.

उन्होंने आगे बताया कि जिंक न केवल फसलों की लिए ही उपयोगी है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत उपयोगी है. इस का सब से अधिक प्रभाव उन बच्चों पर पड़ता है, जो कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं. डा. अजित कुमार कर्नाटक ने बताया कि देश की लगभग 48 फीसदी भूमि में जिंक की कमी है. विश्व के लगभग 30 फीसदी बच्चें जिंक की कमी से पीड़ित हैं, इसलिए हमें बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए जिंक का उपयोग करना बहुत जरूरी है. जिंक का उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होता है.

इस कार्यशाला में उन्होंने जिंक के फसलों पर उपयोग के फायदों पर अपने अनुभव साझा किए. डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने जिंक के फसलों के उपयोग पर अपने अनुभवों को औनलाईन साझा किया. डा. देवेंद्र जैन, सहायक आचार्य, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने परियोजना के 3 सालों  के अनुसंधान कार्य को पावर पौइंट प्रैजेंटेशन के माध्यम से बताया. साथ ही, डबोक एवं मदार के किसानों को जैव उर्वरक भी वितरित किया गया.

इस कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका शर्मा और धन्यवाद डा. सुभाष मीणा, परियोजना प्रभारी जिंक प्रोजेक्ट ने अदा किया. इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के लगभग 100 अधिकारीगण, वैज्ञानिक, छात्रछात्राओं एवं किसानों ने भाग लिया.

Sugarcane Planter : शुगरकेन प्लांटर से करें गन्ना बीज की बोआई

Sugarcane Planter : आज अगर आप को खेती में सफलता लेनी है तो कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करना जरूरी है. कृषि यंत्र न केवल खेती की लागत कम करते हैं, बल्कि समय की भी बचत करते हैं और उपज में भी बढ़त मिलती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में अनेक कृषि यंत्र निर्माता हैं जो खेती में काम आने वाले अनेक तरह के कृषि यंत्र बनाते हैं. हाल ही में फार्म एन फूड के प्रतिनिधि ने अनेक कृषि यंत्र निर्माताओं से मुलाकात की और उनके बात कर जाना कि खेती में कृषि यंत्रों का कितना योगदान है. इसी संदर्भ में गन्ना बोआई यंत्र के बारे में मोगा इंजीनियरिंग वर्क्स की फैक्टरी में अमनदीप सिंह से बात हुई. उन्होंने अनेक जानकारी अपने कृषि यंत्रों के बारे में दी जो निश्चित ही किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी.

मोगा शुगरकेन प्लांटर

इस कंपनी से अमनदीप सिंह ने बताया कि वह खेती में काम आने वाले अनेक प्रकार के यंत्र बनाते हैं. जिन में गन्ना बोआई के लिए शुगरकेन प्लांटर, आलू बोआई के लिए पोटेटो प्लांटर. गेहूं, धान, मक्का जैसी फसल गहाई के लिए थ्रैशर और खेत जुताई के लिए रोटावेटर खास हैं. उन्होंने आगे बताया कि हमारी मशीनों की पहुंच देश के अनेक किसानों व राज्यों तक है.

मोगा इंजीनियरिंग वर्क्स मेरठ उत्तर प्रदेश में है और मेरठ और उस के आसपास गन्ना अधिक मात्रा में उगाया जाता है, जिस के कारण भी उन के शुगरकेन प्लांटर की अच्छी डिमांड है.

मोगा शुगरकेन प्लांटर

गन्ना बोआई करने वाले यंत्र के बारे में अमनदीप सिंह ने बताया कि गन्ना बोआई के शुगरकेन प्लांटर के 2 मौडल बनाते हैं. एक मौडल ट्रैंच तकनीक से गन्ना बोआई करता है तो दूसरा मौडल लाइन में गन्ने की बोआई करने वाला रो वाला मौडल है.

मोगा सुगरकेन सिंगल ट्रैंच मौडल:

इस मौडल में एक लाइन में 2 गन्ने एक साथ बोए जाते हैं, जिन्हें लाइनों के बीच 12 इंच, 15 इंच और 18 इंच की दूरी पर लगा सकते हैं. बीच की दूरी को किसान अपनी जरूरत के अनुसार बढ़ाघटा सकते हैं और इस यंत्र को कम से कम 42 हौर्स पावर के ट्रैक्टर के साथ चलाया जाता है. इस यंत्र की कीमत 1 लाख, 75 हजार रुपए है. इस यंत्र से एक दिन (10 घंटे) में 15 बीघा गन्ना बोआई कर सकते हैं.

डबल ट्रैंच मौडल :

इन का दूसरा मौडल डबल ट्रैंच मौडल है जो सिंगल ट्रैंच मौडल से दोगुना काम करता है. गन्ने की दोगुनी बोआई करता है, इस मशीन को 60 हौर्स पावर के ट्रैक्टर के साथ चलाया जाता है और इस यंत्र की कीमत लगभग 2 लाख, 40 हजार रुपए है.

डबल ट्रैंच मौडल से एक दिन में 25 से 30 बीघा बोआई (10 घंटे में) कर सकते हैं.

एक साथ 6 काम

दोनों ही मौडल एक साथ 6 काम करते हैं.

# खेत में गन्ना डालने के लिए जगह बनाने का काम.

# बोआई के लिए गन्ने की कटिंग करने का काम.

# गन्ना बीज लगाने का काम.

# खाद साथ में ही डालने का काम.

# बोआई के दौरान ही गन्ने पर स्प्रे (बीज उपचार) करने का काम.

# गन्ना बोआई के बाद उसे मिट्टी से ढकने का काम.

इन कृषि यंत्रों में टायर भी लगे हैं, इसलिए इसे एक जगह से दूसरी जगह लाना ले जाना आसान है.

Sugarcane Planter

लाइन में बोआई करने वाला शुगरकेन प्लांटर

उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर ज्यादातर लाइन में ही गन्ने की बोआई की जाती है. उन के लिए यह उम्दा शुगरकेन प्लांटर है. यह प्लांटर 27 से 30 इंच की दूरी पर लाइन में गन्ना बीज की बोआई करता है. 2 लाइन में बोआई करने वाले शुगरकेन प्लांटर को 45 हौर्स पावर के ट्रैक्टर के साथ और 3 लाइन में बोआई करने वाले प्लांटर के लिए 50 हॉर्स पावर का ट्रैक्टर उपयुक्त है.

2 लाइन वाले प्लांटर की कीमत लगभग 1 लाख, 82 हजार रुपए है वहीं 3 लाइन में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत 1 लाख, 98 हजार रुपए है.

अमनदीप सिंह ने यह भी बताया कि हमारी मशीन में वैसे तो कोई समस्या आती नहीं है, अगर कभी कोई समस्या आती भी है तो हम 500 किलोमीटर तक के दायरे फ्री सर्विस देते हैं.

इन यंत्रों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो आप कृषि यंत्र निर्माता अमनदीप सिंह के मोबाइल नंबर 8285325047 पर बात कर सकते हैं.