Water Crisis: भारत में 6.6 लाख से अधिक गांव, 4 हजार छोटेबड़े कस्बे और शहर हैं. राजस्व रिकौर्ड के मुताबिक भारत में 35 लाख से अधिक तालाब, पोखर और छोटेमोटे जलाशय हैं. इन में से लगभग एक तिहाई अपना अस्तित्व खो चुके हैं. बहुत सारे अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं. वर्तमान के कुल जलाशयों में से कुछ हिस्से सूखे हुए हैं और कुछ गंदे और प्रदूषित पानी को इकट्ठा कर रहे हैं. इन परिस्थितियों से उबरने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम जैसे अटल भूजल योजना, नमामि गंगे परियोजना, कैच द रेन अभियान, जलशक्ति अभियान, मिशन अमृत सरोवर आदि स्वच्छ जल संसाधन की उपलब्धता बढ़ाने में बहुत कारगर साबित हो रहे हैं.

विश्व जल विकास रिपोर्ट (यूनेस्को 2021) के अनुसार पिछले 100 सालों में मीठे जल का विश्व स्तर पर उपयोग छह गुना बढ़ा है. पिछली शताब्दी के मध्य में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता जो थी आज उस की एक तिहाई से भी कम रह गई है, क्योंकि उस समय की जनसंख्या 35 करोड़ से बढ़ कर आज 142 करोड़ हो गई है.

इस लेख में भूजल चर्चा केंद्र में है इसलिए आवश्यक होगा केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के आंकड़ों का उल्लेख करना. बोर्ड द्वारा प्रकाशित गतिशील भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट कहती है कि देश में 447 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम) जल का सालाना रिचार्ज होता है. उस में से 408 (बी.सी.एम) भूजल का उपयोग होता है. उस में से 246 (बी.सी.एम) का उपयोग सिंचाई, घरेलू खपत और औद्योगिक क्षेत्र में हो रहा है. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि भूजल की स्थिति बहुत गंभीर नहीं है. आगे आंकड़ों का विश्लेषण कर के समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर पूरे देश में भूजल दोहन, भूजल संकट आदि की गूंज क्यों सुनाई पड़ती है. बोर्ड ने भूजल आकलन के लिए देश मे कुल 6,746 इकाई निर्धारित किए हैं, जिस में से 4,951 सुरक्षित श्रेणी में, 711 अर्ध गंभीर, 206 गंभीर, 751 अति दोहित और 127 खारे या लवणयुक्त भूजल की श्रेणी में आते हैं.

अत्यधिक भूजल दोहन के दुष्प्रभाव पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ जिलों में देखने को हैं. जिस कारण इन क्षेत्रों में भूजल की उपलब्धता बहुत कम हो गई है, इसलिए इन राज्यों में भूजल रिचार्ज की प्रक्रिया को जल्दी करना होगा.

भूजल की मौजूदा स्थिति को ले कर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, दादरा और नागर हवेली, दमन दीव, चंडीगढ़, पुडुचेरी, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में हालात बहुत चिंताजनक है. अन्य सभी राज्यों की स्थिति बिलकुल गंभीर नहीं है. यह स्पष्ट है कि भूगर्भ का जलाशय सतही जलाशयों से बहुत अधिक है और जल के दोनों प्राकृतिक संसाधन अर्थात सतही जल और भूजल आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इसलिए दोनों ही प्रकार के जल संसाधनों को एक मानकर ही जल संकट का हल भारत सरकार जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना, मिशन अमृत सरोवर और ‘कैच द रेन’ अभियान, आदि के माध्यम से खोज रही है और उस के सकारात्मक परिणाम भारत की भूमि पर मिल रहे हैं.

आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि बारिश के मौसम भूजल स्तर छोटीछोटी नदियों या सहायक नदियों के तल से नीचे चले जाने से बेस फ्लो लगभग शून्य हो जाता है. जिस के बाद सहायक नदियों का योगदान आगे खत्म होने से प्रमुख नदियों में प्रवाह की मात्रा ही नहीं घटी है, बल्कि जल प्रवाह का कालखंड भी सीमित हो गया है. परिणाम स्वरूप उन राज्यों में जहां भूजल का अत्यधिक दोहन कई दशकों से लगातार हो रहा है उन राज्यों की छोटी मोटी नदियां बारिश के मौसम के 2-3 महीने बाद सूख ही जाती है.

पाठकों की जानकारी के लिए एक लघुकथा का जिक्र करना आवश्यक हो जाता है. भारत में भूजल के उपयोग के लिए 1930 के आसपास पहला ट्यूबवेल लगा. इस का मतलब है कि आज से 100 साल पहले भूजल का उपयोग साधारण कूप, टैंक, तालाब, पोखर और जल प्रपात की आबादी से ही होता था. उस समय धरती के जलाशय भरे रहते थे, भूमि में जल का स्तर सभी स्थानों की नदियों तल से बहुत ऊपर रहता था. कहीं भी कुंआ खोदने पर भूजल सतह के कुछ ही मीटर नीचे मौजूद होता था.

भूमि पर सभी नदी तंत्र सजीव और प्रवाह युक्त रहती थीं. यही कारण रहा कि सभी नगरों की बसावट उन नदियों किनारे या उस के समीप था. यह घटना अतीत की थी. अब वही नगर, शहर अपना मल नदियों के पानी में डाल कर सभी नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं. इस से निजात पाने के लिए नमामि गंगे के माध्यम से प्रयास हो रहा है. हम सभी ने मलजल प्रदूषण की विवादास्पद चर्चा महाकुंभ में सुनी है.

बीते 100 सालों में, वैध और अवैध नलकूपों की संख्या लगातार बढ़ती रही, बेहिसाब मुफ्त बिजली संचालित भूजल दोहन हुआ, रिचार्ज और डिस्चार्ज का असंतुलन स्थापित हुआ. जिस का  परिणाम यह हुआ कि सभी प्रमुख नदियों में बहाव की भारी कमी देखी गई. कई नदियां विलुप्त हुई हैं. प्रधानमंत्री के आह्वान पर जल शक्ति मंत्रालय ने भूजल संवर्धन और नदियों में जल प्रवाह बढ़ने के लिए विभिन्न उत्सवों और कार्यक्रमों के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ने का काम 2019 से शुरू किया.

विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कई प्रक्षेत्रों में ‘तालाब जियाओ अभियान’ से भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. इस का प्रत्यक्ष उदाहरण गुजरात मौडल है. राष्ट्रीय स्तर और विभिन्न राज्य स्तरों पर भूजल संसाधन उपयोग के लिए सरल नियमावली अथवा दिशा निर्देश बने जो किसी कानून के तहत हो. भूजल संवर्धन का क्रियान्वयन अगले 50 सालों तक लगातार जारी रखना होगा तभी भूजल संकट ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से उपजे संभावित बड़े पैमाने पर पानी के चाहत में नागरिकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर भारी संख्या में पलायन को नियंत्रित किया जा सकेगा.

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