5 राज्यों के चुनावों के केंद्र में “किसान और घोषणापत्र”

नवंबर की सर्दी में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलगाना और मिजोरम सहित पांच राज्यों के चुनाव होने हैं. इधर जैसेजैसे ठंड बढ़ रही है, वैसेवैसे इन राज्यों की हवाओं में राजनीति की गरमी बढ़ते जा रही है.

यों तो लोकतांत्रिक देश भारत में आएदिन सहकारी समितियों से ले कर सिंचाई समितियों तक नाना प्रकार की समितियों के चुनाव, ग्राम पंचायत, जनपद, जिला जनपद, नगरपालिका, निगम  चुनाव, विधानसभा, राज्यसभा, लोकसभा के चुनाव, उपचुनाव होते ही रहते हैं, पर कई मायनों में इस बार हो रहे इन 5 राज्यों के चुनाव कुछ अलग हट कर हैं.

सब से महत्वपूर्ण बात यह कि इन 5 राज्यों के चुनावों में पहली बार “किसान” केंद्रीय भूमिका में है. इन सभी चुनावों में प्रदेश के किसानों के जरूरी मुद्दों के अलावा प्रमुख राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों के घोषणापत्रों का महत्व भी बढ़ा है, जबकि इस से पहले जिस जनता के लिए यह घोषणापत्र तैयार किए जाते थे, वह जनता स्वयं ही इन घोषणापत्रों को गंभीरता से नहीं लेती थी और स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवार की छवि, जाति, धर्म अथवा अन्यान्य मापदंडों के आधार पर वोट देने के लिए अपने प्रत्याशी का चयन करती थी.

चूंकि यदि जनता ही पार्टियों के घोषणापत्रों और जीतने के बाद घोषणापत्र में किए गए वादों के बिंदुवार क्रियान्वयन के आधार पर अगले चुनावों में वोट नहीं डालती, तो फिर भला राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्रों को गंभीरता से ले कर उन पर बिंदुवार अमल क्यों करेंगी. इसीलिए चुनाव जीतने के बाद प्रायः घोषणापत्र को डस्टबिन के हवाले कर देती थीं और उन से कोई सवाल भी नहीं पूछता था.

कुलमिला कर ‘घोषणापत्र’ का मतलब ही हो गया वो थोथी घोषणाएं, जो केवल लोगों की रुचि के लिए घोषित की जाएं, पर जिन का अमल करना जरूरी नहीं है.

जनता में शिक्षा और जागरूकता की कमी, धर्म, जातियोंउपजातियों में सामाजिक बंटवारा और तदनुसार वोटों के ध्रुवीकरण व बंटवारा आदि इस की प्रमुख वजह रही हैं. वजह चाहे जो भी रही हों, पर इस से भारत का लोकतंत्र धीरेधीरे कमजोर ही हुआ है.

किंतु वर्तमान चुनाव में ‘घोषणापत्र’ महत्वपूर्ण व निर्णायक मुद्दा बन कर उभरा है. इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि केंद्र की सत्ता में काबिज और दुनिया की सब से बड़ी पार्टी कहलाने वाली भाजपा ने आज पर्यंत, जबकि चुनाव होने में केवल एक हफ्ता ही शेष है, किंतु अभी तक अपने घोषणापत्र जारी नहीं किए हैं. और यह जानबूझ कर रणनीतिक कारणों से है.

कांग्रेस की ब्रह्मास्त्ररूपी ‘चुनावी-गारंटियों’ को पर्याप्त टक्कर देने के लिए भाजपा में भारी माथापच्ची और विचारविमर्श जारी है. यही वजह है कि इन का घोषणापत्र अथवा संकल्पपत्र अभी तक जारी नहीं हुआ है.

घोषणापत्रों पर अमल करने के मामले में सब से पहले ठोस उदाहरण, 15 सालों के राजनीतिक वनवास के बाद किसानों के वोटों के दम पर सत्ता में दमदार तरीके से वापस लौटी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने प्रस्तुत किया. छत्तीसगढ़ में लगभग 80 फीसदी वोटर किसान परिवारों से हैं और इन में भी ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं.

15 साल तक सत्ता में रही भाजपा ने बढ़ती लागत से परेशान इन धान किसानों को प्रति क्विंटल धान पर 270 रुपए का बोनस देने की घोषणा की, लेकिन सत्ता में आने के बाद एकदम से मुकर गई.

किसानों ने सरकार को उन के वादे की लगातार याद दिलाई और घोषित बोनस देने की मांग की, पर सरकार ने इन बेचारे रिरियाते किसानों की ओर दोबारा मुड़ कर भी नहीं देखा.

इसी क्रम में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने औषधीय पौधों के किसानों को केंद्र के अनुदान के अलावा 25 फीसदी अनुदान की घोषणा की, पर 15 सालों के शासन में एक भी किसान को यह अनुदान नहीं दिया गया.

अलगअलग राजनीतिक तिकड़मों के जरीए भाजपा की सरकार बनती रही, किसान मन मसोस कर बैठे रहे और खून के आंसू रोते रहे. पिछले चुनाव में जब कर्जमाफी और 2500 रुपए पर धान खरीदने के वादे को घोषणापत्र में शामिल कर छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी किसानों के पास गई, तो पहलेपहल किसानों ने इन की घोषणाओं पर भरोसा नहीं किया. आखिरकार कांग्रेस को गांवगांव जा कर कर्जमाफी एवं 2500 रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी करने की गंगाजल ले कर शपथ लेनी पड़ी. अंततः किसानों ने कांग्रेस की शपथ पर भरोसा किया और 90 सीट में 68 सीट दे कर बंपर जीत दिलाई.

अब बारी कांग्रेस की थी. कांग्रेस ने भी सत्ता में वापसी व ताजपोशी के 2 घंटे के भीतर ही किसानों के कर्जमाफी के वादे को पूरा करने का प्रयास किया. घोषणाओं के क्रियान्वयन की छुटपुट खामियों और शराबबंदी को तकनीकी रूप से न कर पाने के अलावा कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र की सभी घोषणाओं को पूरा करने में पूरा जोर लगाया.

कुछ महीने पहले हुए हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भाजपा की नई पेंशन योजना से असंतुष्ट 2 लाख से ज्यादा कर्मचारी परिवारों के लिए ओल्ड पेंशन एक बड़ा व संवेदनशील मुद्दा था. कांग्रेस ने इस मुद्दे के महत्व को समझते हुए इसे अपने घोषणापत्र में शामिल किया और जीतने पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा किया.

चुनाव जीतने के बाद इस पर कांग्रेस ने तत्काल अमल भी किया. इस से सरकारी कर्मचारियों में और जनता में भी कांग्रेस की विश्वसनीय कुछ और बढ़ी.

छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के चुनावी घोषणापत्रों पर अमल के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक चुनावों में अपने घोषणापत्र में जरूरी जमीनी मुद्दों को शामिल कर घोषणापत्र के दम पर न केवल बाजी मारी, बल्कि कर्नाटक की सत्ता पर बैठते ही उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने घोषणापत्र का बिंदुवार क्रियान्वयन करने का प्रयास किया. सोशल मीडिया के बूते इसे पड़ोसी प्रदेशों और देश के वोटरों ने देखा भी और समझा भी.

राजनीतिक पार्टियों के ढपोरशंखी घोषणाओं व थोथे घोषणापत्रों के प्रति जनता के बढ़ते अविश्वास, उदासीनता व बेजारी को देखते हुए ही अब इसे घोषणापत्र के बजाय ‘संकल्पपत्र’ और ‘गारंटीपत्र’ आदि ज्यादा विश्वसनीय नाम दिए जा रहे हैं.

कांग्रेस को भी यह सद्बुद्धि रातोंरात नहीं आई. केंद्र व राज्यों में जब कांग्रेस की लुटिया पूरी तरह डूबने लगी, तब उन्हें किसानों के वोटों और घोषणापत्रों का महत्व समझ में आया‌. उन्होंने किसानों की समस्याओं और दूसरे तबकों की जरूरत का ध्यान रखते हुए व्यावहारिक घोषणापत्र बनाए और उस पर ईमानदारी से अमल करने की कवायद शुरू की. फलत: कांग्रेस का बढ़ता हुआ ग्राफ सामने है.

कांग्रेस के कायाकल्प में राहुल गांधी की भूमिका का अगर जिक्र न हो, तो नाइंसाफी होगी. ‘भारत जोड़ो’ की 3500 किलोमीटर की यात्रा में पगपग पर जनता के हर तबके के साथ जुड़ने की प्रक्रिया में उन के व्यक्तित्व के कई सकारात्मक पहलू देश की जनता ने देखे, राहुल गांधी को ले कर गाड़े गए कई नकारात्मक मिथक टूटे और कई नए बने.

राहुल गांधी के लिए यह कायाकल्प की अंतर्यात्रा साबित हुई, वहीं कांग्रेस के लिए भी यह यात्रा एक नई संजीवनी बूटी साबित हुई.

अब अगर भाजपा की बात करें, तो कांग्रेस पर लगातार लग रहे घोटालों, भ्रष्टाचार के आरोपों और बदइंतजामी के चलते जनता ने साल 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा पर यकीन कर उन्हें एक मौका दिया और केंद्र की सत्ता पर बिठाया.

वहीं साल 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी व भाजपा ने किसानों की आय को दोगुना करने, 100 स्मार्ट सिटी बनाने, प्रतिवर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने जैसे बड़ेबड़े वादे किए, बुलेट ट्रेन चलाने, गंगा की समग्र सफाई और उस पर नौपरिवहन स्थापित करने जैसे कितने ही सुनहरे सपने दिखाए. वह वादे और इरादे एवं घनगर्जन के साथ की गई ढपोरशंखी घोषणाएं आज केवल जनता को ही नहीं, बल्कि स्वयं भाजपा को भी मुंह चिढ़ा रही हैं.

वैसे, देश के किसानों द्वारा लंबे समय से मांगी जा रही उन की सभी फसलों के लिए एक सक्षम “न्यूनतम समर्थन मूल्य- गारंटी कानून” ( एमएसपी गारंटी-कानून) जल्द से जल्द ला कर देश के किसानों की नाराजगी कुछ हद तक कम की जा सकती है. देश के किसानों, किसान संगठनों, युवाओं से सीधी जमीनी चर्चा कर के इन की समस्याओं के दीर्घकालिक हल भी ढूंढे जा सकते हैं, किंतु आगामी साल 2024 के चुनाव में कौन सा मुंह ले कर देश के किसानों, बेरोजगारों और आम जनता के पास जाएंगे, मोदी और भाजपा के सामने सीना ताने खड़ा यह वो सवाल है, जिस का कोई संतोषजनक जवाब फिलहाल इन के पास नहीं है.

गेहूं की जमाखोरी पर लगाम – 1627 जांचें की गईं

नई दिल्ली : खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और गेहूं की कीमतों को स्थिर रखने के लिए 1 नवंबर, 2023 से ओपन मार्केट सेल स्कीम (घरेलू) ओएमएसएस (डी) के तहत प्रत्येक बोली लगाने वाले की अधिकतम खरीद मात्रा 100 मीट्रिक टन से बढ़ा कर 200 मीट्रिक टन कर दी गई है और पूरे भारत में प्रति ईनीलामी की कुल मात्रा को 2 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर 3लाख मीट्रिक टन तक कर दिया गया है.

चावल, गेहूं और आटे की खुदरा कीमत को नियंत्रित करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप की भारत सरकार की पहल के तहत गेहूं और चावल दोनों की साप्ताहिक ईनीलामी आयोजित की जाती है.

वर्ष 2023-24 की 18वीं ईनीलामी 26 अक्तूबर, 2023 को आयोजित की गई थी. देशभर के 444 डिपो से 2.01 एलएमटी गेहूं की बिक्री की गई.

ईनीलामी में गेहूं के लिए 2763 सूचीबद्ध खरीदारों ने भाग लिया और 2318 सफल बोली लगाने वालों को 1.92 एलएमटी गेहूं बेचा गया.

एफएक्यू गेहूं के लिए भारित औसत विक्रय मूल्य 2251.57 रुपए प्रति क्विंटल, जबकि आरक्षित मूल्य पूरे भारत में 2150 रुपए प्रति क्विंटल था, वहीं यूआरएस गेहूं का भारित औसत बिक्री मूल्य, आरक्षित मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल के मुकाबले 2317.85 रुपए प्रति क्विंटल था.

स्टाक की जमाखोरी से बचने के लिए व्यापारियों को ओएमएसएस (डी) के तहत गेहूं की बिक्री से बाहर रखा गया है और ओएमएसएस (डी) के तहत गेहूं खरीदने वाले प्रोसैसरों की आटा मिलों पर नियमित जांच/निरीक्षण भी किया जा रहा है. 26 अक्तूबर, 23 तक देशभर में 1627 जांचें की जा चुकी हैं.

सरकार खरीदेगी बफर स्टाक के लिए 2 लाख टन प्याज

नई दिल्ली : सरकार ने 29 अक्तूबर, 2023 से 31 दिसंबर, 2023 तक की अवधि के लिए प्याज निर्यात का एफओबी आधार पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 800 डालर प्रति मीट्रिक टन अधिसूचित किया. घरेलू उपभोक्ताओं के लिए किफायती कीमतों पर प्याज की पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखने के लिए यह उपाय किया गया है, क्योंकि प्याज के निर्यात की मात्रा पर अंकुश लगाने से भंडारित रबी सीजन 2023 में प्याज की मात्रा में कमी आ रही है. 800 अमेरिकी डालर प्रति मीट्रिक टन का एमईपी, लगभग 67 रुपए प्रति किलोग्राम के बराबर होता है.

प्याज निर्यात पर एमईपी लगाने के फैसले के साथ सरकार ने बफर स्टाक के लिए अतिरिक्त 2 लाख टन प्याज की खरीद की भी घोषणा की है, जो पहले से खरीदे गए 5 लाख टन के अलावा होगी. देशभर के प्रमुख खपत केंद्रों में अगस्त के दूसरे सप्ताह से बफर से प्याज का निरंतर निबटान किया गया है और एनसीसीएफ और नेफेड द्वारा संचालित मोबाइल वैन के माध्यम से खुदरा उपभोक्ताओं को 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आपूर्ति भी की गई है. अब तक बफर से लगभग 1.70 लाख मीट्रिक टन प्याज का निबटान किया जा चुका है. उपभोक्ताओं के लिए कीमतों को नियंत्रित करने और प्याज किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए बफर से प्याज की निरंतर खरीदी की जाती है और निबटान किया जाता है.

प्रति मीट्रिक टन 800 डालर का एमईपी लगाने का निर्णय, घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्याज को किफायती बनाए रखने के दृढ़संकल्प को दर्शाता है.

आयुर्वेद दिवस 10 नवंबर को औषधीय खेती को मिलेगा बढ़ावा

नई दिल्ली : किसान 10 नवंबर, 2023 को ‘आयुर्वेद दिवस’ कार्यक्रम में प्रमुख सहभागी होंगे. इस आयोजन की एक प्रमुख विषयवस्तु ‘किसानों के लिए आयुर्वेद’ है. आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों और पौधों की खेती को अपनी आजीविका का हिस्सा बना कर किसान आत्मनिर्भर और सशक्त बन सकते हैं.

औषधीय पौधों के आर्थिक महत्व के बारे में किसानों को जागरूक करने का विशेष ध्यान रखा जा रहा है. किसानों को एनएमपीबी (राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड) के माध्यम से औषधीय पौधों की खेती में उपयोग की जाने वाली विशेष तकनीकों के बारे में जागरूक किया जा रहा है.

‘आयुर्वेद दिवस’ के ‘आयुर्वेद फौर वन हैल्थ’ अभियान से जुड़ कर भारत के किसान ‘किसानों के लिए आयुर्वेद’ विषय को व्यापक रूप से समझ सकेंगे. ‘आयुर्वेद दिवस’ का मुख्य कार्यक्रम 10 नवंबर, 2023 को हरियाणा के पंचकूला में आयोजित होना निर्धारित है. देशभर के किसान इस आयोजन में हिस्सा ले सकते हैं और औषधीय पौधों की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

‘एक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद’ अभियान के तहत, देशभर के किसानों को बैठकों, परस्पर वार्ताओं, कार्यक्रमों और संचार के विभिन्न साधनों का उपयोग कर के संवेदनशील बनाया जा रहा है. आयुर्वेद दिवस के आयोजन के लिए नोडल एजेंसी सीसीआरएएस (केंद्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) द्वारा एक माइक्रो वैबसाइट www.ayurvedaday.org.in विकसित की गई है. विश्वभर के आगंतुक ‘आयुर्वेद दिवस’ के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए वैबसाइट पर जा सकते हैं और ‘एक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद’ अभियान से संबंधित चल रही विभिन्न गतिविधियों का हिस्सा बन सकते हैं.

Medicinal Farming
Medicinal Farming

आयुष मंत्रालय ‘आयुर्वेद दिवस’ को सफल बनाने में सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है. छात्रों और युवाओं के अतिरिक्त देशभर के किसानों को ‘आयुर्वेद दिवस’ अभियान से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. देशभर से किसानों को समूह बैठकों, व्यक्तिगत परस्पर वार्ताओं, व्याख्यान और कार्यशालाओं के माध्यम से इस अभियान से जोड़ा जा रहा है. देशभर में स्थित 7 आरसीएफसी (क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र) और 37 एसएमपीबी (राज्य औषधीय पादप बोर्ड) किसानों को ‘आयुर्वेद दिवस’ अभियान से जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं. इन केंद्रों से जुड़े सहयोगी घरघर जा कर किसानों को औषधीय पौधे वितरित कर रहे हैं और किसानों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रहे हैं.

आयुष मंत्रालय से जुड़े सभी संस्थान और विभिन्न मंत्रालयों की टीमें ‘आयुर्वेद दिवस’ को वैश्विक आयोजन के रूप में मनाने की निरंतर तैयारी कर रही हैं.

मेवाड़ का बेर पोषक तत्वों के मामले में कश्मीरी सेब पर भारी

उदयपुर : 29 अक्तूबर. राजस्थान कृषि महाविद्यालय एल्यूमनी एसोसिएशन एवं कुसुम राठौड़ स्मृति ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में पिछले दिनों महाविद्यालय के पूर्व छात्रों का 22 वां राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया. इस मौके पर राजस्थान कृषि महाविद्यालय के प्रथम आचार्य रहे डा. ए. राठौड़ (1955) स्मृति व्याख्यान का आयोजन भी किया गया. खचाखच भरे आरसीए औडिटोरियम में 250 से ज्यादा पूर्व एवं वर्तमान छात्रों ने यहां बिताए पलों की याद ताजा की.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक थे, लेकिन किसी कारणवश उपस्थित नहीं हुए. इस पर उन के संदेश का वाचन आरसीए पूर्व अधिष्ठाता एवं एल्यूमनी अध्यक्ष डा. वीएन जोशी ने किया.

उन्होंने संदेश में कहा कि डा. ए. राठौड़ की दूरगामी सोच व योजना से स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय वर्ष 1955 से आज तक देश के अग्रणी महाविद्यालय के रूप में खड़ा है. इस महाविद्यालय ने राष्ट्र को मानव संसाधन के रूप में जो पूंजी सौंपी है, वह विलक्षण एवं असाधारण है. महाविद्यालय की योग्यता के आधार पर ही आईसीएआर ने उदयपुर को अनेक अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजनाएं स्वीकृत की हैं. सच तो यह है कि एमपीयूएटी के कृषि शिक्षा, अनुसंधान व प्रसार तंत्र की बुनियाद भी राजस्थान कृषि महाविद्यालय ही है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने संदेश में पद्म भूषण डा. आरएस परोदा, डा. एसएल मेहता, डा. एलएस राठौड़, डा. एसएस आचार्य, डा. ओपी गिल, डा. यूएस शर्मा व डा. जीएस नैनावटी जैसे दर्जनों नामों का उल्लेख किया, जिन्होंने इस महाविद्यालय मेें अध्ययनोपरांत समाज में अलग मुकाम हासिल किया.

विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरए कौशिक ने कहा कि एमपीयूएटी का अधिकांश कार्य क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान है. ऐसे में विश्वविद्यालय ने ’लोकल’ पर ध्यान केंद्रित किया और इसी को कार्य क्षेत्र बनाया. राज्य के इस दक्षिणी भूभाग पर केर, जामुन, बेर, इमली, करौंदा, सीताफल, महुआ आदि प्राकृतिक रूप से बहुतायत में पाए जाते हैं. जलवायु परिवर्तन का इन वनस्पतियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. साथ ही, पोषक तत्वों से भरपूर इन फलों में औषधीय गुणों की भरमार है. इन फलों के संग्रहण में क्षेत्र के जनजाति बहुल परिवारों को रोजगार भी मिल जाता है.

Plum of Mewar

डा. आरए कौशिक ने कहा कि बेर व सेब में उपलब्ध पोषक तत्वों की तुलना की जाए तो बेर सेब पर भारी है. यही नहीं, कुंभलगढ़, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में सीताफल व जामुन का बहुतायत में उत्पादन होता है. सीताफल गूदा की आइसक्रीम व अन्य खाद्यान्नों में अधिक मांग रहती है, लेकिन प्रसंस्करण के अभाव में फल खराब हो जाता है. एमपीयूएटी ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिस से गूदा (पल्प) का रंग सफेद ही बना रहे. यही नहीं, जामुन व इस के बीजों में मौजूद औषधीय गुणों के कारण भारी मांग रहती है. विश्वविद्यालय ने इस के बीजों का पाउडर तैयार कर कैप्सूल व गोली के रूप में तैयार करने की विधि ईजाद की है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसएस शर्मा ने कहा कि आरसीए कृषि शिक्षा एवं शोध आदि में नित नए आयाम स्थापित कर रहा है और इस में उत्तरोत्तर प्रगति हो रही है.

आरंभ में विगत एक वर्ष में विभिन्न विषयों में सर्वश्रेष्ठ अंक, स्वर्ण पदक हासिल करने वाले 31 छात्रछात्राओं, प्रगतिशील किसानों को अंग वस्त्र और प्रमाणपत्र दे कर सम्मानित किया. साथ ही, एल्यूमनी में जुड़े 58 नए सदस्यों को भी सम्मानित किया गया.

आरसीए एल्यूमनी एसोसिएशन के महासचिव डा. एसके भटनागर ने बताया कि एल्यूमनी में 1658 सदस्य है. उन्होंने एसोसिएशन द्वारा की जाने वाली गतिविधियों का ब्योरा दिया. इस से पूर्व अतिथियों ने एल्यूूमनी स्मारिका का विमोचन भी किया. शुरू में डा. वीएन जोशी ने अतिथियों का स्वागत किया व धन्यवाद डा. बीएस रणवा ने किया.

डेरी एवं खाद्य महाविद्यालय में कौशल विकास कार्यक्रम

उदयपुर : भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय ने विश्वस्तरीय अनुभवात्मक प्रशिक्षण इकाइयों से सुसज्जित एवं तकनीकी रूप से पूर्ण सक्षम प्राध्यापकों एवं प्रशिक्षकों द्वारा सुशोभित डेरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय द्वारा कौशल विकास के लिए पांचदिवसीय उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता ने बताया कि महाविद्यालय के द्वारा रोजगारपरक प्रशिक्षण के साथसाथ दुग्ध एवं खाद्य प्रसंस्करण और अभिनव दुग्ध एवं खाद्य उत्पाद के बारे में उद्यमियों को समयसमय पर तकनीकी कौशल प्रदान किया जाता है.

उन्होंने बताया कि वर्तमान में महाविद्यालय में 4 प्रशिक्षण इकाइयां कार्यरत हैं और विद्यार्थियों के साथ उद्यमियों को इन चारों इकाइयों में नियमित प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया जाता है. साथ ही, विशिष्ट मार्गदर्शन के लिए समयसमय पर विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया जाता है. महाविद्यालय के द्वारा कई बार कौशल विकास कार्यक्रम भी आयोजित किए गए, जिस में राज्य के ही नहीं, बल्कि देश के उद्यमियों ने पूरी रुचि एवं उत्साह के साथ भाग ले कर अपना तकनीकी कौशल बढ़ाया है.

उन्होंने यह भी कहा कि महाविद्यालय के तकनीकी रूप से उत्कृष्ट दुग्ध प्रसंस्करण इकाई में दुग्ध के विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे लस्सी, श्रीखंड, पनीर इत्यादि बनाए जाते हैं. इस इकाई में भी कई उद्यमियों को विशिष्ट प्रशिक्षण महाविद्यालय द्वारा प्रदान किया गया है. महाविद्यालय द्वारा प्रशिक्षित उद्यमियों ने उद्योग जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है.

डा. लोकेश गुप्ता ने बताया कि महाविद्यालय द्वारा ‘स्वच्छ दुग्ध उत्पादन एवं उत्पाद प्रसंस्करण’ पर पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों एवं उद्यमियों का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण के द्वारा स्वकौशल विकसित करना है. साथ ही, उद्यमिता विकास के लिए संपूर्ण तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी. विशिष्ट मार्गदर्शन के लिए विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया गया है.

कौशल विकास कार्यक्रम समन्वयक डा. निकिता वधावन ने बताया कि महाविद्यालय को भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय द्वारा पांच उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करने की महती जिम्मेदारी प्रदान की गई थी. उसी क्रम में महाविद्यालय द्वारा उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. महाविद्यालय द्वारा ‘स्वच्छ दुग्ध उत्पादन एवं उत्पाद प्रसंस्करण’ पर आयोजित इस उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम में पूरे उदयपुर संभाग से 20 प्रतिभागी पूर्णतया निःशुल्क भाग ले रहे हैं.

Skill Development Program
Skill Development Program

इस उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम में दूध दुहने की परंपरागत विधि के साथ आधुनिक मशीनीकृत दुहने की विधियों का श्रवण दृश्य संसाधनों के द्वारा प्रायोगिक अध्यापन कराया जा रहा है. साथ ही, सभी विधियों के फायदे एवं नुकसान भी बताए जा रहे हैं. इस उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम में परंपरागत दुग्ध उत्पाद जैसे पनीर, आइसक्रीम, मावा, चीज, घी इत्यादि के साथ अभिनव उत्पादों के प्रसंस्करण पर भी विशेष सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, जिन में प्रयोगात्मक ज्ञानवर्धन के लिए इंडस्ट्री एवं अकादमिक क्षेत्र के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है. इस कार्यक्रम में पशुओं के आहार एवं स्वास्थ्य से जुड़ी शंकाओं और समस्याओं के निराकरण के लिए विशेष सत्र का भी आयोजन किया गया है, ताकि स्वस्थ पशुओं से पौष्टिकता से परिपूर्ण दूध का उत्पादन किया जा सके.

इस तरह से इस उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम में पशुओं की सारसंभाल से शुरुआत कर दूध दुहने की प्रकिया, विभिन्न उत्पादों का प्रसंस्करण, गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के लिए संयंत्र की संस्थापना, विभिन्न सरकारी मानकों का उपयुक्त परिपालन एवं विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है. इस के लिए विषय विशेषज्ञों से शंका, समाधान और वार्तालाप के साथ अन्य संस्थाओं का भ्रमण भी कराया जा रहा है. कार्यक्रम के सभी नियमित प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा.

बीज सहकारी समिति का मुनाफा सीधे किसानों के बैंक खातों में जाएगा

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड यानी बीबीएसएसएल द्वारा “सहकारी क्षेत्र में उन्नत एवं पारंपरिक बीजोत्पादन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी” को संबोधित किया.

अमित शाह ने भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड के लोगो, वैबसाइट और ब्रोशर का अनावरण किया और भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड के सदस्यों को सदस्यता प्रमाणपत्र भी वितरित किए.

इस अवसर पर केंद्रीय सहकारिता मंत्री बीएल वर्मा, सचिव, सहकारिता मंत्रालय और सचिव, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय सहित अनेक व्यक्ति उपस्थित थे.

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि आज का दिन देश के सहकारिता आंदोलन, किसानों और अन्न उत्पादन के क्षेत्र में नई शुरुआत की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में भारत में बीज संरक्षण, संवर्धन और अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड का बहुत बड़ा योगदान होगा. देश के हर किसान को आज वैज्ञानिक रूप से बनाया और तैयार किया गया बीज उपलब्ध नहीं है, इसीलिए ये हमारी जिम्मेदारी है कि इस विशाल देश के हर किसान के पास प्रमाणित और वैज्ञानिक रूप से तैयार किया गया बीज पहुंचे और ये काम भी यही सहकारी समिति करेगी.

अमित शाह ने अपने अंदाज में यह भी कहा कि भारत दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों में से एक है, जहां कृषि की अधिकृत शुरुआत हुई और इसी कारण हमारे परंपरागत बीज गुण और शारीरिक पोषण के लिए सब से अधिक उपयुक्त हैं.

उन्होंने आगे कहा कि भारत के परंपरागत बीजों का संरक्षण कर उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना है, जिस से स्वास्थ्यपूर्ण अन्न, फल और सब्जियों का उत्पादन निरंतर होता रहे और यह काम भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड करेगी.

उन्होंने यह भी कहा कि हमारे यहां उत्पादित होने वाले बीज कमोबेश विदेशी तरीकों से रिसर्च और विकसित कर के बनाए गए हैं, लेकिन हमारे कृषि वैज्ञानिकों को अगर एक अच्छा प्लेटफार्म मिले तो वे विश्व में सब से अधिक उत्पादन करने वाले बीज बना सकते हैं, और इस शोध और विकसित करने का काम भी भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड करेगी.

अमित शाह ने कहा कि विश्व में बीजों के निर्यात का बहुत बड़ा मार्केट है और इस में भारत का हिस्सा एक फीसदी से भी कम है. भारत जैसे विशाल और कृषि प्रधान देश को वैश्विक बीज मार्केट में एक बड़ा हिस्सा हासिल करने का एक समयबद्ध लक्ष्य रखना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि मोदी सरकार ने इन पांचों उद्देश्यों के साथ भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड की स्थापना की है और कुछ ही सालों में यह समिति विश्व में अपना नाम बनाएगी और देश के किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध कराने में बहुत बड़ा योगदान देगी.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि 11 जनवरी, 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड की स्थापना को मंजूरी दी, 25 जनवरी, 2023 को इस का पंजीकरण हुआ, 21 मार्च, 2023 को इस की अधिसूचना जारी हुई और अब प्रशिक्षण का कार्यक्रम भी हम ने बहुत कम समय में कर लिया है.

उन्होंने कहा कि ये समिति कृषि, बागबानी, डेरी, मत्स्यपालन सहित हर प्रकार की समितियों की तरह पीएसीएस को बीज उत्पादन के साथ जोड़ने का काम करेगी. इस के माध्यम से हर किसान अपने खेत में बीज उत्पादन कर सकेगा, इस का सर्टिफिकेशन भी होगा और ब्रांडिंग के बाद न सिर्फ पूरे देश में, बल्कि विश्व में इस बीज को पहुंचाने में ये समिति योगदान देगी.

उन्होंने कहा कि इस बीज सहकारी समिति का पूरा मुनाफा सीधे बीज उत्पादन करने वाले किसानों के बैंक खातों में जाएगा और यही सहकारिता का मूल मंत्र है. इस सहकारी समिति के माध्यम से बीजों की उच्च आनुवांशिक शुद्धता और भौतिक शुद्धता से बिना कोई समझौता किए इन्हें बरकरार रखा जाएगा और उपभोक्ता के स्वास्थ्य की भी चिंता की जाएगी, इन तीनों बातों का संयोजन करते हुए उत्पादन बढ़ाना ही हमारा लक्ष्य है.

उन्होंने आगे कहा कि इस सहकारी समिति का लक्ष्य केवल मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि इस के माध्यम से हम विश्व की औसत पैदावार के साथ भारत की पैदावार को मैच करना चाहते हैं. इस के साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के अकुशल उत्पादन की जगह किसान को प्रशिक्षण दे कर वैज्ञानिक तरीके से बीजों के उत्पादन के साथ हम जोड़ने का काम करेंगे. आज भारत में ही बीजों की आवश्यकता लगभग 465 लाख क्विंटल है, जिस में से 165 लाख क्विंटल सरकारी व्यवस्था से उत्पादित होता है और कोआपरेटिव व्यवस्था से ये उत्पादन 1 फीसदी से भी नीचे है, हमें इस अनुपात को बदलना होगा.

अमित शाह ने कहा कि कोआपरेटिव के माध्यम से बीज उत्पादन के साथ जो किसान जुड़ेंगे, उन्हें बीज का मुनाफा सीधे मिलेगा.

उन्होंने कहा कि भारत के घरेलू बीज बाजार का वैश्विक बाजार में हिस्सा सिर्फ 4.5 फीसदी है, अभी इसे बढ़ाने की जरूरत है और इस के लिए बहुत काम करना होगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमें इस भारतीय बीज सहकारी समिति के अगले 5 सालों के लक्ष्य तय करने होंगे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस बीज सहकारी समिति की स्थापना केवल मुनाफे और उत्पादन के लक्ष्य तय करने के लिए नहीं हुई है, बल्कि ये रिसर्च एंड डेवलपमेंट का काम भी करेगी, जिस से उत्पादन बढ़ेगा.

अमित शाह ने कहा कि बीज नैटवर्क में आईसीएआर, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, 48 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 726 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र और केंद्र व राज्यों की 72 सरकारी एजेंसियां जुड़ी हुई हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि हमारी किसी से कोई स्पर्धा नहीं है, बल्कि हमारा लक्ष्य है कि मुनाफा किसान के पास पहुंचे, प्रमाणित बीजों का उत्पादन बढ़े और इन के निर्यात में भारत का हिस्सा बढ़े.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इन सभी संस्थाओं को साथ ले कर हम इस बीज कोआपरेटिव के काम को आगे बढ़ाएंगे और अपने लक्षित सीड रिप्लेसमेंट रेट के प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस संस्था के मूल में इफको, कृभको, नेफेड, एनडीडीबी और एनसीडीसी को जोड़ा गया है, जो एक प्रकार से किसान के खेत तक पहुंच रखती हैं. इन संस्थाओं के माध्यम से मल्टीफिकेशन बंद हो जाएगा और सभी सहकारी संस्थाएं एक ही दिशा में एक ही लक्ष्य के साथ एक ही रोड मैप पर काम करेंगी.

उन्होंने आगे कहा कि जब सभी संस्थाएं एक रोड मैप पर चलती हैं, तो स्वाभाविक रूप से गति बढ़ती है और इन के साथ मल्टीस्टेट कोआपरेटिव, राज्य स्तरीय सहकारी संस्थाएं, जिला स्तरीय सहकारी संस्थाएं और पीएसीएस भी जुड़ सकेंगे. इस तरह एक ऐसा खाका बनाया गया है, जिस में हर प्रकार की कोआपरेटिव इस का हिस्सा बन सकती है और उन का सहयोग इस बीज कोआपरेटिव को मिल सकेगा.

seed cooperative societyअमित शाह ने कहा कि सहकारी नैटवर्क के माध्यम से प्रोडक्शन, टैस्टिंग, सर्टिफिकेशन, परचेज, प्रोसैसिंग, स्टोरेज, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग और ऐक्सपोर्ट हम कर सकेंगे, क्योंकि अगर बीजों की प्रोडक्शन के बाद टैस्टिंग नहीं होगी, तो गुणवत्ता पर असर पड़ेगा. इसी प्रकार टैस्टिंग के बाद सर्टिफिकेशन नहीं होता है, तो विश्वसनीयता नहीं होगी. सर्टिफिकेशन के बाद प्रोसैसिंग, ब्रांडिंग और लेबलिंग नहीं होगी, तो उस के उचित दाम नहीं मिलेंगे. इस की उचित वैज्ञानिक तरीके से स्टोरेज से ले कर मार्केटिंग और फिर दुनिया के बाजार में भेजने तक की पूरी व्यवस्था कोआपरेटिव सैक्टर के माध्यम से ही की जाएगी. ये पूरी व्यवस्था विश्वस्तरीय और सब से आधुनिक होगी और हमारी कोआपरेटिव ने कर के दिखाया है.

अमित शाह ने कहा कि उत्पादन, गुणवत्ता, ब्रांडिंग, और मार्केटिंग के क्षेत्र में इन संस्थाओं के सफल अनुभव के माध्यम से बीज उत्पादन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और निर्यात के क्षेत्र में हम आगे बढ़ेंगे.

भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने के साथसाथ देश को बीजोत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने और बीजों के वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद करेगी और इस का सब से बड़ा फायदा छोटे किसानों, महिलाओं और युवाओं को होगा.

उन्होंने कहा कि देश में क्राप पैटर्न चेंज करने के लिए भी अच्छे बीजों का उत्पादन बहुत जरूरी है और जब हम देश के लाखों किसानों को बीज उत्पादन के साथ जोड़ेंगे, तो वह गांव में आटोमेटेकली मार्केटिंग मैनेजर का काम करेगा.

अमित शाह ने कहा कि यह बीज सहकारी समिति लिमिटेड बहुत सारे उद्देश्यों को सिद्ध करेगी. हमारा एक बहुत बड़ा उद्देश्य यह भी है कि पारंपरिक बीजों का संरक्षण किया जाए, क्योंकि हमारे पास बीज की लाखों नस्लें हैं, लेकिन इन के बारे में पूरी जानकारी सरकारी विभागों को भी नहीं है.

उन्होंने यह भी कहा कि लाखों गांव में हर किसान के पास परंपरागत बीज उपलब्ध हैं, इस का डेटा बनाना, संवर्धन करना, संवर्धित करना और इस का वैज्ञानिक एनालिसिस कर के इस के सकारात्मक पहलुओं का एक डेटा बैंक तैयार करना बहुत बड़ा काम है, जिसे भारत सरकार करेगी.

उन्होंने कहा कि हम ने इस में क्लाइमेट चेंज की चिंता को भी सामने रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इनीशिएटिव से श्रीअन्‍न (मिलेट्स) का जो बड़ा मार्केट आज विश्व में खड़ा हुआ है, इस के बीज भारत के अलावा बहुत कम देशों के पास हैं. रागी, बाजरा, ज्वार और कई अन्य मिलेट्स पर हमारी मोनोपली हो सकती है, अगर हमारी यह बीज कोआपरेटिव इस पर ध्यान दे.

देश की तीन प्रमुख सहकारी समितियों- इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड यानी इफको, कृषक भारती सहकारी लिमिटेड यानी कृभको और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) और भारत सरकार के 2 प्रमुख वैधानिक निकाय- राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड यानी एनडीडीबी और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम यानी एनसीडीसी ने संयुक्त रूप से भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड को प्रमोट किया है.

खाद्य सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण कर किसानों की आजीविका में होगा सुधार

हिसार : देश गांवों में बसता है और इस समाज का एक बड़ा हिस्सा कृषि व संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर है. किसानों की स्थिति में सुधार के लिए उन की आजीविका में सुधार, गरीबी कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने व्यक्त किए. वे विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाज शास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी)-आईडीपी प्रोजैक्ट के तहत कृषक समाज के सतत विकास एवं सामाजिकआर्थिक उत्थान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे.

इस दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में एनएएचईपी-आईडीपी प्रोजैक्ट के राष्ट्रीय समन्वयक डा. नवीन कुमार जैन और उत्तरपश्चिमी भारतीय समाजशास्त्रीय संघ (एनडब्लयूआईएसए) के अध्यक्ष डा. सुखदेव सिंह मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित रहे.

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नहीं रहा, इस के मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधीतूफान, सूखा, बाढ़ इत्यादि शामिल हैं. असमय तापमान का बढ़ना कृषि उत्पादन पर प्रभाव डालता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखे के अनुकूल फसल की किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोगरहित फसल को किस्में, फसल विविधीकरण, मौसम का पूर्वानुमान, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.

Food Securityउन्होंने यह भी कहा कि हम एक ऐसा भविष्य बनाएं, जहां हम प्रकृति के साथ सहअस्तित्व रखें, जहां कोई भी पीछे न छूटे और जहां समृद्धि की कोई सीमा न हो. हमें अपने पर्यावरण के प्रति चेतना और करुणा पैदा करनी चाहिए. लोगों को प्रेरित करना चाहिए और स्थायी विकास के लिए नवाचारों का निर्माण करना चाहिए.

मुख्य अतिथि डा. बीआर कंबोज ने उपस्थित समाजशास्त्र व कृषि क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों से आह्वान किया कि कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल किया जाए, ताकि जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों व उन से पैदा हो रही चुनौतियों से निबटा जा सके. इस में समाजशास्त्र क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक व कृषि वैज्ञानिक अहम भूमिका अदा कर न केवल पोलिसी प्लानर, बल्कि किसानों व आम जनता को कृषि क्षेत्र से जुड़े नवाचारों, प्रौद्योगिकियों से अवगत करा सकते हैं.

मुख्य वक्ता उत्तरपश्चिमी भारतीय समाजशास्त्रीय संघ (एनडब्लयूआईएसए) के अध्यक्ष डा. सुखदेव सिंह ने कहा कि वर्तमान में भारत में खाद्यान्नों से जुड़ी हुई योजनाओं के सामने दो मुख्य चुनौतियां हैं. पहली कम लागत में कृषि का उत्पादन बढ़ाना व दूसरा युवाओं को कृषि व्यवसाय की तरफ आकर्षित करना है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. इस के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े शोध संस्थानों को एक मंच पर आ कर नवाचारों व प्रौद्योगिकियों की मदद से किसानों के हित के लिए कदम उठाने होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अगर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ छोड़ना चाहते हैं, तो हमें पर्यावरण संरक्षण जैसी मुहिम को अपनाना होगा.

विशिष्ट अतिथि एनएएचईपी-आईडीपी के राष्ट्रीय समन्वयक डा. नवीन कुमार जैन ने राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी)-आईडीपी प्रोजैक्ट के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि यह प्रोजैक्ट उच्च स्तरीय शिक्षा को मजबूत बनाने, बढ़ावा देने और बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. युवाओं को खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए उन्होंने इस योजना को अहम बताया.

उन्होंने यह भी बताया कि इस योजना के तहत शिक्षक और विद्यार्थी लघु कोर्स और प्रशिक्षण लेने के लिए विदेशों के उच्च स्तर के शिक्षण संस्थानों में जाने का अवसर प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि आज के सम्मेलन का विषय बहुत महत्वपूर्ण है, जिस में समाज से जुड़े ज्वलंत विषयों पर चर्चा कर हल निकाला जाएगा. सामाजिक समस्याएं जैसे पर्यावरण परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, खाद्य भंडारण, सामाजिक जागरूकता जैसे विषयों का निवारण करने के लिए बाहर के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के साथ हमें एकजुट हो कर काम करना होगा.

Food Securityउन्होंने कहा कि इस 2 दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान जो सिफारिशें व कुछ स्वीकृतियां निकल कर आएंगी, वह कृषक समाज के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम करेंगे.

समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डा. विनोद कुमारी ने 2 दिवसीय कार्यशाला की रूपरेखा से अवगत कराया. इस दौरान मुख्य अतिथि द्वारा सम्मेलन से संबंधित पुस्तक का विमोचन किया गया.

राष्ट्रीय सहकारी निर्यात से मिलेगा किसानों को मुनाफा

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड यानी एनसीईएल द्वारा आयोजित ‘सहकारी निर्यात पर राष्ट्रीय संगोष्ठी’ को संबोधित किया. उन्होंने एनसीईएल के लोगो, वैबसाइट और ब्रोशर का लोकार्पण किया और एनसीईएल के सदस्यों को सदस्यता प्रमाणपत्र भी वितरित किए.

इस अवसर पर केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि आज राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड का एक प्रकार से औपचारिक उद्घाटन हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आजादी के बाद पहली बार सहकारिता मंत्रालय की स्थापना और उन की सहकार से समृद्धि की कल्पना को साकार करने की दिशा में आज हम एक बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड की स्थापना कई उद्देश्यों के साथ बहुत विचारविमर्श के बाद की गई.

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं. एनसीईएल की स्थापना के पीछे हमारे लक्ष्यों में निर्यात, विशेषकर कृषि निर्यात को बढ़ाना, किसानों को समृद्ध बनाना, क्राप पैटर्न चेंज करना और साल 2027 तक देश के 2 करोड़ किसानों को उन की भूमि को प्राकृतिक घोषित करने में सक्षम बनाना शामिल है.

उन्होंने कहा कि मोदी ने एक मल्टीस्टेट कोआपरेटिव सोसायटी बनाई है, जो भारत के प्राकृतिक खेती करने वाले इन 2 करोड़ से अधिक किसानों के और्गेनिक उत्पादों को एक अच्छी पैकेजिंग, विश्वसनीय ब्रांडिंग और उच्च गुणवत्ता के सर्टिफिकेट के साथ वैश्विक बाजार में बेचेगी. इस से किसानों को उन के और्गेनिक उत्पादों के अभी मिल रहे मूल्य से लगभग डेढ़ या दोगुना मूल्य सीधे प्राप्त होगा और इस से किसानों के लिए समृद्धि का रास्ता खुलेगा.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बायोफ्यूल अलायंस की घोषणा की गई है.

उन्होंने आगे कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां एकसाथ 4 फसलें हो सकती हैं और अगर इन में से एक फसल भी बायोफ्यूल के लिए उपयोग हो सके, तो हम भारत की बायोफ्यूल की जरूरतों को पूरा करने के बाद इसे निर्यात भी कर सकते हैं.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि एनसीईएल की स्थापना का एक और उद्देश्य है, देश में सहकारिता को मजबूत करना, जिस में कृषि पर निर्भर आबादी और ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के उत्पादों का देश की जीडीपी में 15 फीसदी योगदान है और इस क्षेत्र से जुड़ी आबादी कुल आबादी की लगभग 60 फीसदी है. कोई भी देश अपनी 60 फीसदी आबादी को नकार कर अर्थतंत्र को मजबूत नहीं कर सकता. जिस अर्थतंत्र में देश की 60 फीसदी आबादी की जगह ना हो, वो अर्थतंत्र कभी सफल नहीं हो सकता.

अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार का लक्ष्य है कि जीडीपी बढ़ाने के साथसाथ इन 60 फीसदी लोगों को रोजगार दे कर उन्हें समृद्ध भी बनाना है और इस का एकमात्र रास्ता है सहकारिता को मजबूत करना.

उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड, देश में सहकारिता के पूरे ढांचे को नई मजबूती देने का भी काम करेगा.

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अमित शाह ने कहा कि निर्यात, किसान की समृद्धि, क्राप पैटर्न बदलने, और्गेनिक उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार, बायोफ्यूल के लिए वैश्विक बाजार में भारत का प्रवेश और सहकारिता को मजबूत करने जैसे 6 उद्देश्यों के साथ सहकारिता क्षेत्र में राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड की शुरुआत हुई है. इस नई शुरुआत से किसानों और दूध उत्पादों, इसबगोल, जीरा, इथेनाल और कई प्रकार के और्गेनिक और अन्य मांग वाले उत्पादों की वैश्विक मांग के बीच एक कड़ी का काम सहकारिता करेगी.

उन्होंने कहा कि अब तक तकरीबन 1500 को आपरेटिव्स एनसीईएल के सदस्य बन चुके हैं और ये उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हर तहसील इस के साथ जुड़ कर किसानों की आवाज बने. अब तक एनसीईएल के पास 7,000 करोड़ रुपए के और्डर आ चुके हैं और 15,000 करोड़ रुपए के और्डर्स पर विचारविमर्श चल रहा है.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने विश्वास व्यक्त किया कि आने वाले दिनों में इफको, कृभको और अमूल की तरह राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड भी एक बहुत बड़ा और सफल कोआपरेटिव वेंचर साबित होगा.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारे देश के कुल खाद्य उत्पादन का 30 फीसदी, चीनी उत्पादन का 30 फीसदी, दूध उत्पादन का लगभग 17 फीसदी हिस्सा कोआपरेटिव्स का है.

उन्होंने कहा कि देश के किसानों को होने वाले कुल फाइनेंस का तकरीबन 42 फीसदी कोआपरेटिव द्वारा किया जाता है.

उन्होंने कहा कि चीनी उत्पादन में सहकारिता का योगदान 30 फीसदी है, लेकिन चीनी के निर्यात में एक फीसदी है, वहीं दूध उत्पादन में सहकारिता का योगदान 17 फीसदी है, लेकिन दुग्ध उत्पादों के निर्यात में 2 फीसदी से भी कम है. इस का मतलब यह है कि सहकारिता क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं और उन का दोहन करने के लिए एक जरीया चाहिए था, जो किसान, सहकारी समिति और वैश्विक बाजार के बीच कड़ी बने और राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड उस कड़ी के रूप में काम करेगी.

अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड, छोटी समितियों को भी आवश्यक फाइनेंस और उस की जानकारी उपलब्धता कराएगा, निर्यात की मेंटेलिटी और इस के लिए जरूरी सावधानियों के बारे में जानकारी देगा, निर्यात अनुकूल मैटीरियल के उत्पादन के लिए भी काम करेगा. इस के अलावा एनसीईएल ब्रांड के बारे में सजगता, गुणवत्ता के प्रति जागरूकता, जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और उत्पाद के स्टैंडर्डाइजेशन के लिए पैरामीटर तय करने जैसे काम भी नाममात्र शुल्क पर छोटे किसानों के लिए करेगा.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज किसान के हाथ निर्यात से हुआ मुनाफा नहीं आता है, लेकिन राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड के माध्यम से निर्यात का कम से कम 50 फीसदी मुनाफा किसानों के पास सीधे जाएगा.

उन्होंने कहा कि किसान से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाएगी और फिर 6 माह की बैलेंसशीट बनने के बाद एमएसपी के अनुसार किए गए भुगतान के अतिरिक्त आने वाले मुनाफे का 50 फीसदी सीधा किसान के बैंक अकाउंट में जाएगा. इस से निर्यात योग्य उत्पादन बढ़ाने के प्रति किसानों का उत्साह भी बढ़ेगा.

national-cooperative-exportउन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड सिर्फ मुनाफे की तरफ ध्यान नहीं देगा, बल्कि किसान पर ध्यान देना इस का मुख्य लक्ष्य होगा. निर्यात बढ़ाने के लिए खेत और किसान के स्तर से इस का स्वभाव बनाना होगा, क्राप पैटर्न चेंज करना होगा, ब्रांड और पैकेजिंग मार्केटिंग की पूरी व्यवस्था किसान के मन में जागरूकता पैदा कर खड़ी करनी होगी. यह व्यवस्था राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड को खड़ी करनी होगी, तभी हम इन 6 उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकेंगे.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि एनसीईएल पूरे सहकारिता क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बनेगी और आने वाले दिनों में इस में खरीद, भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग, सर्टिफिकेशन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट जैसे सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक संपूर्ण निर्यात इकोसिस्टम बनाने का काम किया जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि बाजार संपर्क के लिए होल औफ गवर्नमेंट अप्रोच के साथ उद्योग मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और हमारे दूतावासों को जोड़ने का काम भी यह करेगा. इस के अलावा बाजार की मांग के अनुरूप उत्पादन हो, इस के लिए एफपीओ और पीएसीएस को साथ रख कर इस का एक डिजाइन तैयार किया जाएगा.

अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार निर्यात बढ़ाने के साथसाथ इस का फायदा किसानों तक पहुंचाने की सुचारु व्यवस्था खड़ी करने की दिशा में काम कर रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 3 बहुराज्यीय सहकारी समितियां बनाई हैं- राष्ट्रीय स्तर पर बीज उत्पादन के लिए, और्गेनिक उत्पादों के सर्टिफिकेशन और ब्रांडिंग के लिए और तीसरी कोआपरेटिव निर्यात के लिए बनाई गई है

इफको के नैनो डीएपी संयंत्र का लोकार्पण

गांधीनगर : मुख्य अतिथि के तौर पर लोकार्पण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि गुजरात सहित पूरे पश्चिम भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है कि आज गांधीनगर जिले के कलोल में इफको के नैनो डीएपी (तरल) संयंत्र का लोकार्पण हुआ है.

इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और रसायन एवं उवर्रक मंत्री मनसुख मांडविया भी उपस्थित थे.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नैनो यूरिया और नैनो डीएपी में भारत को विश्व में सर्वप्रथम ले जाने के लिए इफको की टीम को बधाई देते हुए कहा कि भारत जैसी उपजाऊ भूमि, सुजलामसुफलाम धरती, कृषि प्रधान देश, इतनी बड़ी खेती लायक भूमि, 3 से 4 फसलों के लिए उपयुक्त आबोहवा दुनिया में कहीं और नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां 75 साल में हम ने ऐसी व्यवस्था बनाई है कि किसान हर महीने खेती कर सके.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने यह भी कहा कि देश में अनाज की जरूरत और उत्पादन के अंतर को पूरा करने की जिम्मेदारी भारत की सहकारी संस्थाओं की है. 10 साल बाद जब कृषि क्षेत्र में हुए सब से बड़े प्रयोगों की लिस्ट बनेगी, तब इफको के नैनो यूरिया और नैनो डीएपी उस में शामिल होंगे.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि समय की जरूरत है कि यूरिया का उपयोग घटा कर प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ा जाए, लेकिन साथ ही उत्पादन बढ़ाने की भी आवश्यकता है.

उन्होंने आगे कहा कि नैनो यूरिया का छिड़काव जमीन पर नहीं, बल्कि पौधे पर किया जाता है और इस से धरती में मौजूद केंचुओं के मरने और प्राकृतिक तत्वों के नष्ट होने की संभावना शून्य होती है. अगर सभी प्राथमिक कृषि ऋण समितियां यानी पीएसीएस इफको के साथ मिल कर नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का उपयोग करें, तो बहुत जल्द ही हमारी धरती प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ेगी.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इफको ने बहुत आधुनिक तरीके से संपूर्ण भारतीय प्लांट लगाने का काम किया है. ‘मेक इन इंडिया’ का इस से बड़ा कोई उदाहरण ही नहीं हो सकता. इफको की कलोल इकाई ग्रीन टैक्नोलौजी आधारित नैनो डीएपी की लगभग 42 लाख बोतल का उत्पादन करेगी, जिस से निश्चित रूप से किसानों को बहुत फायदा होगा.

उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश में 60 फीसदी लोग कृषि आधारित जीवन जी रहे हैं और देश की तकरीबन 60 फीसदी जमीन भी कृषि लायक है, लेकिन वर्षों से किसान और कृषि दोनों की अनदेखी की जा रही थी.

DAP plant
DAP plant

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से पहले किसानों के लिए भारत सरकार का बजट 22 हजार करोड़ रुपए था, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस बजट को 1 लाख, 22 हजार करोड़ रुपए कर दिया है.

उन्होंने कहा कि पहले उत्पादन 323 मिलियन टन था और अब उत्पादन बढ़ कर 665 मिलियन टन हो गया है. वर्ष 2013-14 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 1,310 रुपए प्रति क्विंटल थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ा कर इस बार 2,203 रुपए प्रति क्विंटल कर दी, जो तकरीबन 68 फीसदी की बढ़ोतरी है.

उन्होंने यह भी कहा कि गेहूं की एमएसपी 1,400 रुपए प्रति क्विंटल थी, जो बढ़ा कर 2,275 रुपए प्रति क्विंटल कर दी गई है. वहीं बाजरे की एमएसपी 1,250 प्रति क्विंटल थी और आज यह 2,500 रुपया प्रति क्विंटल है, जो कि सौ फीसदी की बढ़ोतरी है. वर्ष 2013-14 में फर्टिलाइजर की कुल सब्सिडी 73 हजार करोड़ रुपए थी और वर्ष 2023-24 में यह सबसिडी बढ़ कर 2 लाख, 55 हजार करोड रुपए हो गई है और इस का बोझ सरकार उठा रही है.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इफको के शीर्ष अधिकारियों से नैनो यूरिया और डीएपी की अब तक की यात्रा को एक पुस्तक का रूप देने का आग्रह किया.

उन्होंने यह भी कहा कि कलोल, फूलपुर और आंबला में 3 फैक्टरी चालू हो चुकी हैं और अब तक 8 करोड़ बोतल बाजार में आ गई हैं और आने वाले दिनों में 18 करोड़ बोतल तक विस्तार होने वाला है.

उन्होंने आगे कहा कि नैनो टैक्नोलौजी से पौधे के पोषण के अंदर बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है और यह किफायती एवं पोषक तत्वों से युक्त है. इस से खर्च में भी तकरीबन 8 से 20 फीसदी की बचत होती है.

DAP plant
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सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता मंत्रालय ने बीज संरक्षण और एग्रीकल्चर प्रोड्यूस के ऐक्सपोर्ट के लिए 2 कोओपरेटीव संस्थाएं बनाई हैं. उन्होंने इफको प्रबंधन से आग्रह किया कि इन दोनों संस्थाओं को इफको की तरह ही विश्व की प्रथम संस्था बनाने के लिए इफको अपने अनुभव साझा करे.

उन्होंने कहा कि इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से देश में क्राप पैटर्न में बदलाव ला कर क्रांति लानी है और इस के लिए इफको को आगे आना चाहिए.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता मंत्रालय ने अलगअलग 57 पहल कर किसानों के लिए सहकारिता जगत को फिर से एक बार जीवंत बनाने की कोशिश की है, उस में इफको का बहुत बड़ा योगदान है.