Dragon Fruit : उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का 25 साल का एक लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया क्योंकि उस के कार्यों और सफलता से प्रभावित हो कर सूबे की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने न केवल उस का उत्साह बढाया, बल्कि उसे राजभवन में भोज पर आमंत्रित भी किया.
बस्ती जिले के गौर ब्लौक कोठवा बलुआ के रहने वाले देवांश पांडेय बीते दो सालों से बड़े लेवल पर ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती कर रहें हैं. करीब 5 बीघे यानी लगभग डेढ़ एकड़ खेत में रोपे गए पौधे उन में लगे हुए सफेद मनमोहक फूल और पौधे में लगे सुर्ख लाल फल बेहद मोहक लगते हैं. उन की ड्रैगन फ्रूट की सफल खेती को देख आसपास के जिलों के किसान भी खेती की तकनीकी और व्यवहारिक जानकारियां लेने उन के पास जाते हैं.
देवांश ने ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती की शुरुआत को ले कर बताया कि उन के मम्मी और पापा दोनों लोग गवर्मेंट जौब में थे. इस लिए पिता जी चाहते थे कि मै भी पढ़ लिख गवर्मेंट जौब में आ जाऊं. मैंने पिता जी के इच्छानुसार कौमर्स विषय से ग्रेजुएशन किया. लेकिन कौमर्स की पढ़ाई के दौरान व्यवसाय पर बहुत ही बारीकी से जानकारी दी जाती है. इस लिए मेरे दिमाग में नौकरी की बजाय अपने गांव में पुरखों की जमीन पर ऐसी व्यावसायिक खेती करने का प्लान आया जिस में लागत, जोखिम और श्रम कम लगे और उस से इतना कमाया जा सके की एक अच्छी नौकरी से ज्यादा कमाई भी हो. साथ ही, फसल को एक बार रोपने के बाद सालों तक दुबारा रोपाई की जरूरत न पड़े फसल की केवल देखभाल और सिंचाई ही करना पड़े.
देवांश ने अपने पिता सुनील कुमार पांडेय को अपने मन की बात बताई तो पहले तो उन्होंने कहा कि नौकरी से बढ़ कर सुकून कहीं भी नहीं है. लेकिन देवांश के व्यावसायिक दिमाग के आगे उन्होंने यह सोच कर खेती करने के लिए हामी भर दी कि बिना अनुभव के एक बार खेती शुरू करने के बाद उन्हें घाटा ही होगा. इस के बाद हो सकता कि देवांश के सर से खेती करने का भूत उतर जाए.
पत्रपत्रिकाएं और यूट्यूब बना मददगार*
खेती के लिए पिता की अनुमति के अब देवांश को जरूरत थी तो ऐसे फसल के चुनाव की जो युवाओं में नौकरी के प्रति दीवानगी में कमी लाए. इस के बाद देवांश ने कई पत्रिकाएं पढ़ी और यूट्यूब पर ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती में सफल हुए किसानों की बातचीत सुनी, तो उन्हें जनपद के जलवायु और मार्केट को देखते हुए ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का निर्णय लिया. क्योंकि इस में एक बार लागत लगाने के बाद फिर कई सालों तक मुनाफा ही मुनाफा मिलता है. क्योंकि दूसरी व्यावसयिक फसलों की तुलना में ड्रैगन फ्रूट्स की खेती करना बहुत ही आसान होता है.
इस का पौधा एक बार लगाने के बाद 20 साल तक फल देने का काम करता है. इस में पानी की भी आवश्यकता बहुत कम होती है और इस में कीट का प्रभाव भी नहीं होता. जिस से यह फसल सिर्फ एक बार खर्च कर ने के बाद 20 सालों तक अच्छा मुनाफा देती है और अन्य फसलों के मुकाबले ड्रैगन फ्रूट्स की खेती से 3 गुना मुनाफा होता है.
ऐसे हुई शुरुआत
जब देवांश ने ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती शुरू की उस समय उन की उम्र महज 23 साल ही थी. लेकिन देवांश ने जब अपने पिता सुनील पांडेय को ड्रैगन फ्रूट के खेती के फायदे गिनाए तो वह बेटे के व्यापारिक दिमाग की दाद देने लगे और उन में भी उत्साह जगा की बेटे का खेती की तरफ रुझान बढ़ना वह भी व्यवसायिक फसलों में निश्चित ही फायदेमंद होगा.
उन्होंने देवांश से कहा कि जब ड्रैगन फ्रूट की खेती करना है तो बड़े एरिया में उन्नत किस्मों का चुनाव कर शुरुआता करे. इस के लिए उन्होंने हैदराबाद की चर्चित नर्सरियों का विजिट कर किस्म के चुनाव का निर्णय लिया. हैदराबाद में उन्हें जिस नर्सरी से ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदने थे, वह चालीस एकड़ में फैली हुई थी जिन में विभिन्न किस्मों के लाखों पौधे तैयार थे.
देवांश के पिता सुनील कुमार पांडेय ने उन्हें बस्ती के तापमान और जलवायु की जानकारी दे कर किस्म का चुनाव करने की सलाह मांगी तो उस नर्सरी संचालक ने सब से सफल, बेहतर उत्पादन और लजीज स्वाद के लिए चर्चित किस्म सी-सियाम रेड लगाने की सलाह दी. देवांश के पिता ने डेढ़ एकड़ के लिए 2,440 पौधों का और्डर दिया और खेत की तैयारी और रोपाई के लिए बस्ती वापस आ गए.
ऐसे आई लागत में कमी
चूंकि ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती की शुरुआत में ज्यादा पूंजी की जरुरत होती है और बाद के सालों में केवल फसल की देखभाल और सिंचाई का खर्च ही आता है और पौधों का और्डर दिया जा चुका था, तो रोपाई की तैयारी भी करनी थी. जब दोनों पितापुत्र ने खेती में काम आने वाले पिलर और उस में लगाए जाने वाले रिंग के लागत का आंकलन किया, तो उन्होंने यह फैसला लिया कि वह घर पर ही मजबूत पिलर बनाएंगे. जबकि रिंग की जगह बाइक के खराब टायरों का उपयोग करेंगे, क्योंकि यह टायर्स सालों तक खराब नहीं होते हैं.
आखिरकार खेती की तैयारी हुई और हैदराबाद से आए ड्रैगन फ्रूट के पौधों की रोपाई कर खेत की फैंसिंग भी की गई जिस में करीब कुल लागत 13 लाख रुपए आई. अब देवांश नियमित रूप से अपने ड्रैगन फ्रूट के फसल की निगरानी कर रहे थे. जैसेजैसे उन के पौधे बढ़ रहे थे वैसेवैसे देवांश का हौसला भी बढ़ता जा रहा था.
ऐसे होती है ड्रैगन फ्रूट्स की खेती
देवांश पांडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स का पौधा 4 से 5 फीट की दूरी पर लगाया जाता है. इस पौधे के समीप एक खंबा और सीमेंट या टायर की रिंग लगानी होती है. जिस के सहारे से यह पौधा ऊपर की तरफ बढ़ना शुरू करता है. इस पेड़ में कोई भी बीमारी नहीं आती और लगभग 16 से 18 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है और हर साल इस का फल देने का एवरेज बढ़ता जाता है. उन्होंने बताया कि पौधों की नियमित अंतराल पर काटछांट भी जरूरी है. कटिंग का उपयोग नए पौधों को तैयार करने में किया जा सकता है.
पिता की मौत से नहीं मानी हार
देवांश बताते हैं कि मेरे पिता जी मेरे निर्णय पर बहुत खुश थे और वह यह बात गर्व से कहते थे कि उन का बेटा पढ़ाई के साथसाथ जिले में एकलौते युवा किसान के रूप में बड़े लेवल पर खेती कर रहा है. सब कुछ अच्छा चल रहा था. फसल की रोपाई के लगभग 6 महीने बीते होंगे की अचानक ही देवांश के पिता सुनील कुमार पांडेय की मृत्यु हो गई. अब देवांश के सामने मां और परिवार की देखभाल के साथ उन के सपने को भी सकार करना था, जो 6 महीने की फसल के रूप में उन के खेत में तेजी से बढ़ रहा था.
देवांश पांडेय ने पिता की मौत के बाद आई विपरीत परिस्थितियों से हार नहीं मानी और पिता के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जी जान से लगे रहे. देवांश का अब ज्यादातर समय ड्रैगन फ्रूट के खेतों में फसल की नियमित देखभाल करने में बीत रहा था. उन के ड्रैगन फ्रूट(Dragon Fruit) की जैसेजैसे ग्रोथ हो रही थी उन्हें पिता को किया गया वादा साकार होता नजर आ रहा था.
फसल में रासायनिक की जगह जैविक उत्पादों का प्रयोग
देवांश ने बताया कि उन्होंने शुरू से ही अपने ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की फसल में किसी भी तरह के रासायनिक खाद, उर्वरक या पैस्टीसाइड का उपयोग नहीं किया है क्योंकि, ड्रैगन फ्रूट के गुणों को इसे कई तरह की बीमारियों की रोकथाम में सहायक माना जाता है. वह बताते हैं कि मैं नहीं चाहता था कि ड्रैगन फ्रूट के पोषक तत्वों के साथ लोग रासायनिक खाद और पैस्टीसाइड के नुकसानदायक अंश भी खाएं. इसीलिए वह ड्रैगन फ्रूट की फसल में भरपूर पोषण के लिए कंपोस्ट खाद, गोबर की सड़ी हुई खाद मुरगी खाद का ही उपयोग करते हैं.
उन्होंने बताया कि आमतौर पर फसल में कोई बीमारी नहीं आती है. हां कभीकभी फंगस का प्रभाव दिखाई देता है तो ट्राईकोडर्मा का ही उपयोग करते हैं. जिस से उन के फलों का साईज, वजन और स्वाद बाजार में मिलने वाले फलों से एकदम हट कर होता है.
पानी के प्रबंधन के लिए ड्रिप विधि का उपयोग
देवांश का कहना है कि हमारी फसल को जितने पानी की जरूरत हो उतना ही देना चाहिए. ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है. फिर भी पानी के उचित प्रबंधन के लिए बूंदबूंद सिंचाई यानी ड्रिप इरिगेशन का उपयोग करते हैं.
ड्रैगन फूड की दो फलत में ही निकली पूरी लागत
देवांश बताते हैं कि एक बार पौधे लगाने के बाद करीब 20 साल तक इन्हीं पौधों से उपज ली जा सकती है. फल जून माह में आते हैं जो लगभग 6 माह तक लगातार आते रहते हैं. यानी जिस पौधे में पका हुआ फल लगा होगा उस में आप को कच्चे फल, फूल और कलियां भी देखने को मिलेंगी. यह प्रक्रिया लगातार 6 महीने तक चलती है. इसलिए फसल से लगातार आय होती रहती है. उन्होंने बताया कि पहली बार उन के फसल में फल पौध रोपने के 18 माह बाद आया था. फिर दूसरी फसल इस बार ले रहे हैं जिस से उन की शुरूआती लागत लगभग 13 लाख रुपया निकल चुकी है. इस के बाद अब उन्हें करीब 18 सालों तक केवल मुनाफा ही मिलेगा.
मार्केटिंग की समस्या नहीं
देवांश बताते हैं कि वह जिले के पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जो ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. इस लिए करीब 30 लाख की जनसंख्या वाले बस्ती जिले के मांग की अपेक्षा आपूर्ति कर पाना ही मुश्किल है. उन्होंने बताया कि लोग उन के खेतों में ही आ कर ताजे फल 250 से 300 रुपए प्रति किलोग्राम के दाम पर खरीद कर ले जाते हैं.
सफलता ने कराया राजभवन का सफर
देवांश ने जब ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की थी तो उन की उम्र महज 23 साल थी और फसल रोपने के करीब 6 महीने के भीतर उन के पिता की मौत हो गई. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. और आज एक सफल युवा किसान के तौर पर प्रदेश भर में उन की पहचान है.
उन्होंने बताया कि हाल ही में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती का दौरा था. उन्होंने मुझ से मिलने की इच्छा जाहिर की. जब इस बात की जानकारी मुझे मिली तो मुझे लगा की मेरे पिता जी का सपना आज साकार हो गया. देवांश ने न केवल राज्यपाल से मुलाकात की बल्कि उन्हें ड्रैगन फ्रूट भी गिफ्ट किया. इस मौके पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उन्हें सम्मानित भी किया और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्हें राजभवन लखनऊ में भोज पर आमंत्रित भी किया.
देवांश ने बताया कि खेती की बदौलत मुझे वह अवसर मिल गया जो शायद नौकरी में रहते हुए नहीं मिलता. क्योंकि अभी मैंने शुरुआत ही की थी. उम्र भी बेहद कम है. उन्होंने बताया कि वह राजभवन के भोज में शामिल भी हुए और उन्होंने अतिथियों के सामने खेती में मिल रहे अपने सफलता के अनुभवों को भी साझा किया और बताया की कैसे ड्रैगन फ्रूट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है, जिस कारण इस की मांग लगातार बढ़ती जा रही है.
युवाओं के खेती से पलायन को ले कर चिंतित
देवांश पांडेय का कहना है कि किसानों के पास अब जमीन कम होती जा रही है. ऐसे में उन्हें ऐसे उपाय अपनाने होंगे जिस से वे कम जमीन में खेती कर लाखों रुपए की आमदनी कर सकते हैं. लेकिन अफसोस इस बात का है कि कोई भी किसान अपनी वर्तमान पीढ़ी को खेती किसानी से जोड़ना ही नहीं चाहता है. ऐसे में गांवो से ज्यादातर युवाओं का पलायन शहरो में रोजगार के लिए हो रहा है और खेती की जिम्मेदारी केवल बड़े बुजुर्गों के कंधे पर ही रह गई है.
उनका कहना है की आने वाले दिनों में हमारे अपने ही खेत पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां खेती कराएंगी और हम अपने खेत में मजदूर के रूप में काम कर खरीद कर आनाज खायेंगे. उनका कहना है की खेती से अगर अधिक मुनाफा लेना है परंपरागत खेती में संभव नहीं है. इस लिए आज के युवाओं को व्यावसयिक और उन्नत फसलों का चुनाव करना होगा जो न केवल शहरो की तरफ युवाओं के पलायन को रोकने में मददगार होगा बल्कि शहरो से ज्यादा कमाई उन्हें गावों में हो जाया करेगी,
देवांश पांडेय ने बताया कि वह ड्रैगन फ्रूट की खेती में लाभ और मांग को देखते हुए आने वाले दिनों में और रकबा बढ़ाने वाले है. जिस से उन के खेतों में स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा और मैं घर पर रहते हुए किसी नौकरीपेशा से ज्यादा कमाई कर पाऊंगा. अगर आप अधिक जानकारी चाहते हैं, तो देवांश के मोबाईल नंबर- 9506019394 पर संपर्क किया जा सकता है.