स्टार्च की मात्रा से भरपूर

शकरकंद ज्यादातर शरीर में ऊर्जा बढ़ाने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसलिए इसे व्रत व भूख मिटाने के लिए सब से उपयोगी माना जाता है.

शकरकंद की खेती वैसे तो पूरे भारत में की जाती है, लेकिन ओडिसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र में इस की खेती सब से अधिक होती है. शकरकंद की खेती में भारत विश्व में 6वें स्थान पर आता है. इस की खेती के लिए 21 से 26 डिगरी तापमान सब से उपयुक्त माना जाता है.

यह शीतोष्ण व समशीतोष्ण जलवायु में उगाई जाने वाली फसल है. इस की खेती के लिए 75 से 150 सैंटीमीटर वर्षा प्रतिवर्ष की आवश्यकता पड़ती है.

भूमि का चयन : शकरकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सब से उपयुक्त होती है, क्योंकि ऐसी मिट्टी में कंद की बढ़वार अच्छे से हो पाती है. पानी के निकलने का पुख्ता बंदोबस्त होना चाहिए. इस की बोआई के पहले खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले या हैरो से जुताई करनी चाहिए. उस के बाद 2 जुताई कल्टीवेटर से कर के खेत को छोटीछोटी सममतल क्यारियों में बांट लेना चाहिए. मिट्टी को भुरभुरी बना कर उस में प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल गोबर की खाद मिला लेना फसल उत्पादन के लिए अच्छा होता है.

प्रजातियों का चयन : शकरकंद की 2 तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिस में कुछ लाल व कुछ सफेद रंग की होती हैं. लाल प्रजाति की मांग बाजार में ज्यादा है, इसलिए इस का रेट भी किसानों को अच्छा मिलता है.

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