Cotton : कपास में कीटबीमारी का प्रकोप हमेशा बना रहता है, जिस को ले कर कपास (Cotton ) किसानों को चौकन्ना रहने की जरूरत है. फ्यूजेरियम विल्ट रोग रेस-4 जो देशी कपास (डिप्लौयड) को प्रभावित कर रही थी, उस ने अब अमेरिकन कपास (टेट्राप्लौयड) को भी संक्रमित करना शुरू कर दिया है.

इस वायरस की पहचान करने में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है. पहली बार रेस-4 का प्रकोप टेट्राप्लौयड कपास में दर्ज किया गया है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज के निर्देशानुसार वैज्ञानिकों ने इस रोग के प्रबंधन का कार्य शुरू कर दिया है, वे जल्द ही इस दिशा में कामयाब होंगे.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को उन की इस महत्त्वपूर्ण खोज के लिए अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी है. यह खोज इतनी महत्त्वपूर्ण है कि इसे प्रतिष्ठित ‘प्लांट डिजीज जर्नल’ में प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है.

इस जर्नल को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी द्वारा 10.4 की उच्चतम रेटिंग मिली हुई है. यह उपलब्धि न केवल चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के काम की गुणवत्ता को दर्शाती है, बल्कि उन्हें इस क्षेत्र में भारत के पहले शोधकर्ता होने का गौरव भी प्रदान करती है.

कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज पर उन्हें बधाई दी और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बदलती कृषि की चुनौतियों के बीच फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान करना बेहद जरूरी है. उन्होंने वैज्ञानिकों को इस रोग पर लगातार निगरानी रखने और इस की रोकथाम के उपाय तुरंत खोजने के निर्देश दिए हैं.

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि इस रोग की निरंतर निगरानी, संक्रमण प्रतिरोधी कपास (Cotton) की किस्में विकसित करना और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार की तकनीकों को खोजना बहुत जरूरी है.

कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि शोधकर्ता इस बीमारी के प्रकोप को समझने और इस के प्रभाव को कम करने के लिए लक्षित उपाय विकसित करने में जुटे हुए हैं, जिस से भारतीय कपास (Cotton) उत्पादन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

इस शोध के मुख्य शोधकर्ता डा. अनिल कुमार सैनी व उन के साथ डा. जगदीप सिंह, डा. करमल सिंह, डा. सतीश कुमार सैनी, डा. अनिल जाखड़, डा. शिवानी मंधानिया, डा. शुभम लांबा, डा. दीपक कांबोज, डा. सोमवीर निंबल, डा. मीनाक्षी देवी, डा. संदीप कुमार और पीएचडी छात्र डा. शुभम सैनी का भी योगदान रहा.

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