Organic Farming : सतत कृषि और पर्यावरण अनुकूल नवाचारों को बढ़ावा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने सस्यानी सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, पटना, बिहार के साथ एक सहमतिपत्र (MoU) पर हस्ताक्षर किए. इस साझेदारी के तहत ट्राइकोडर्मा, लिक्विड बायोफर्टिलाइजर और अन्य जैविक उत्पादों के व्यावसायिक उत्पादन पर काम किया जाएगा, जिस से बिहार सहित पूरे देश के कृषि परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव आने की उम्मीद है.
किसानों और कृषि के लिए क्यों अहम है यह समझौता
भारतीय कृषि लंबे समय से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रही है, जिस से मिट्टी की सेहत और पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़ा है. इस पृष्ठभूमि में ट्राइकोडर्मा जैसे जैव नियंत्रण एजेंट और लिक्विड बायोफर्टिलाइजर जिन में लाभकारी सूक्ष्मजीव होते हैं, जो किसानों के लिए नई उम्मीद ले कर आते हैं. ये मिट्टी में रोग नियंत्रण, पोषक तत्त्व उपलब्ध कराने, कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने और कम लागत पर पैदावार बढ़ाने में मददगार हैं.
 यह समझौता बिहार कृषि विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला से विकसित तकनीकों को खेतों तक पहुंचाने का मार्ग आसान करेगा, वहीं सस्यानी सौल्यूशन्स अपनी औद्योगिक विशेषज्ञता और विपणन नैटवर्क के माध्यम से इन्हें बड़े पैमाने पर किसानों तक पहुंचाएगा.
बीएयू नेतृत्व की प्रतिक्रियाएं
बीएयू, सबौर के कुलपति प्रोफैसर डा. डीआर सिंह ने कहा कि यह साझेदारी कृषि क्षेत्र में गेम चेंजर साबित होगी.
बीएयू के वैज्ञानिक अनुसंधान और उद्योग की ताकत को मिला कर हम बिहार को बायोफर्टिलाइजर नवाचार का केंद्र बना रहे हैं. किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले जैव उर्वरक सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगे, जिस से उन की पैदावार बढ़ेगी, रसायनों पर निर्भरता घटेगी और जैविक खेती (Organic Farming) को नई दिशा मिलेगी. यह बीएयू की राष्ट्रीय और वैश्विक ब्रांडिंग में भी एक मजबूत कदम है.
अनुसंधान निदेशक डा. एके सिंह ने कहा कि यह एमओयू प्रयोगशाला अनुसंधान और खेतों में उस के उपयोग के बीच की खाई को पाटेगा. बीएयू द्वारा विकसित जैव उर्वरक और ट्राइकोडर्मा आधारित तकनीकों का व्यावसायीकरण किसानों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाएगा और कृषि उत्पादन को नई ऊंचाई पर ले जाएगा. इस से बीएयू की पहचान एक हरित तकनीक और किसान हितैषी संस्थान के रूप में और मजबूत होगी.
बायोफर्टिलाइजर उद्योग का विस्तार : भारत का बायोफर्टिलाइजर क्षेत्र 12 फीसदी से अधिक की वार्षिक दर से बढ़ रहा है और इस पहल से बिहार राष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी बन सकता है.
किसानों को लाभ : उत्पादन लागत में कमी, मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि और पैदावार में सुधार.
ब्रांड बिहार : बीएयू की छवि एक नवाचार और किसान प्रथम विश्वविद्यालय के रूप में और सुदृढ़ होगी.
सतत कृषि : पर्यावरण संरक्षण और जलवायु लचीली खेती को बढ़ावा मिलेगा.
बैठक की अध्यक्षता डा. एके सिंह ने की जिस में बीएयू के वरिष्ठ वैज्ञानिकों व अधिकारियों के साथसाथ सस्यानी सौल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, पटना के निदेशक बिक्रम सिंह और सदस्य विजयकांत देव उपस्थित रहे.
अंत में डा. सैलाबाला देई, उपनिदेशक अनुसंधान, बीएयू, सबौर ने धन्यवाद दिया और कहा कि अकादमिक औद्योगिक सहयोग ही भारतीय कृषि का भविष्य है.
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