कचरे को गोबर खाद में बदलने की एक अनोखी विधि

बटान के लिए सरल और प्रभावकारी प्रौद्योगिकी का समर्थन करते हुए असम में चल रहे स्वच्छता ही सेवा अभियान के दौरान अपने ग्रामीण समुदायों के बीच पाइप कंपोस्टिंग को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है.

असम में बिस्वनाथ जिले की जिला जल और स्वच्छता समिति लंबे समय से स्कूलों में मध्याह्न भोजन से उत्पन्न कचरे के लिए बायोडिग्रेडेबल कचरे के प्रबंधन के एक तरीके के रूप में पाइप कंपोस्टिंग को बढ़ावा दे रही है.

इस जिले के अधिकारियों ने स्वच्छता ही सेवा 2023 कार्यक्रम के तहत चरियाली माजलिया एमई स्कूल में दो पाइप लगाए. पाइप कंपोस्टिंग प्रौद्योगिकी 8-10 इंच व्यास और 1.25 मीटर लंबाई वाले पीवीसी पाइपों का उपयोग कर के जैविक कचरे को वानस्पतिक खाद में परिवर्तित करने की एक विधि है. पाइपों को जमीन से 25-30 सैंटीमीटर अंदर रखते हुए लंबवत रखा जाता है. बचे हुए भोजन, फल और सब्जियों के छिलके, फूल, गोबर, कृषि अपशिष्ट आदि सहित केवल सड़ने योग्य कचरे को पाइपों में डाला जा सकता है. कीड़ों की वृद्धि में तेजी लाने के लिए 2 हफ्ते में एक बार थोड़ा सा गाय का गोबर और सूखी पत्तियां पानी में मिला कर डाली जाती हैं. इस समय दोनों पाइपों को बंद रखा जाना चाहिए, ताकि बारिश का पानी पाइपों में प्रवेश न कर सके. 2 महीने के बाद पाइप उठा कर कंपोस्ट खाद निकाली जा सकती है.

Compost from Wasteपाइप कंपोस्टिंग के कुछ लाभ

यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना थोड़े समय में बायोडिग्रेडेबल कचरे को गोबर खाद में बदल देता है. यह विद्यालय परिसर में स्वच्छ और स्वास्थ्यकर वातावरण बनाए रखने में मदद करता है. यह गंधहीन और मक्खीरोधी है और इस के लिए बहुत जगह की जरूरत भी नहीं होती है.

इस के अलावा यह प्रणाली टिकाऊ भी है, क्योंकि एक ही पाइप का बारबार उपयोग किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त यह विद्यार्थियों को अपघटन के विज्ञान एवं पारिस्थितिकी के बारे में सीखने का अवसर प्रदान करता है, उन को सूक्ष्मजीवों और अकशेरुकी जीवों की भूमिका और साथ ही, उन को अपशिष्ट प्रबंधन और वहनीयता के महत्व के बारे में भी सिखाता है.

5 अक्तूबर से 7 विषयों पर प्रशिक्षणों का आयोजन

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान की ओर से अक्तूबर माह के दौरान विभिन्न विषयों पर कुल 7 व्यावसायिक प्रशिक्षण आयोजित किए जाएंगे, जिन की अवधि 3 दिन से 5 दिन होगी.

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक प्रशिक्षण डा. अशोक गोदारा ने यह जानकारी देते हुए बताया कि 3 दिवसीय प्रशिक्षणों में 5 से 7 अक्तूबर तक मशरूम उत्पादन तकनीक, 11 से 13 अक्तूबर तक मत्स्यपालन, 16 से 18 अक्तूबर तक सब्जियों की संरक्षित खेती, 19 से 21 अक्तूबर तक बेकरी और बाजरा उत्पाद, 25 से 27 अक्तूबर तक केंचुआ खाद उत्पादन व 25 से 27 अक्तूबर तक मधुमक्खीपालन शामिल हैं, जबकि 5 दिवसीय प्रशिक्षण में 16 से 20 अक्तूबर तक डेयर फार्मिंग विषय शामिल है.

डा. अशोक गोदारा के अनुसार, ये सभी प्रशिक्षण निःशुल्क होंगे और प्रशिक्षणों के समापन पर प्रतिभागियों को संस्थान की तरफ से प्रमाणपत्र दिए जाएंगे.

इन सभी प्रशिक्षणों में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिभागियों को उत्पादन तकनीकों व नवाचारों की जानकारी दे कर उन का कौशल विकास किया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि प्रतिभागियों को व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण से संबंधित इकाइयों का भ्रमण करवा कर उन का ज्ञानवर्धन किया जाएगा.

इन प्रशिक्षणों के लिए इच्छुक युवक व युवतियां सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में उपरोक्त प्रशिक्षणों के आरंभ होने की तारीख को सुबह साढ़े 8 बजे पहुंच कर अपना पंजीकरण करवा कर प्रशिक्षण में भाग ले सकेंगे.

यह संस्थान विश्वविद्यालय के गेट नंबर-3, लुदास रोड पर स्थित है. सभी प्रशिक्षणों में प्रवेश ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर दिया जाएगा. पंजीकरण के लिए उम्मीदवारों की एक फोटो व आधारकार्ड की फोटोकौपी साथ ले कर आनी होगी.

श्री अन्न उत्पादन एवं पोषण सुरक्षा पर जागरूकता दिवस

उदयपुर : 29 सितंबर, 2023 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय पर श्री अन्न अनाज उत्पादन एवं पोषण सुरक्षा पर जागरूकता दिवस मनाया गया.

विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिया स्मार्ट गांव मदार एवं ब्राह्मणों की हुंदर से आई हुई किसान महिलाओं को संबोधित करते हुए कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने मुख आतिथ्य में बताया कि गेहूं में ग्लूटिन एवं चावल में फाइबर व शर्करा की मात्रा ज्यादा होने से कई तरह की बीमारियों को आमंत्रित करती है, वहीं दूसरी तरफ मोटे अनाजों में रेशे व शर्करा के उचित अनुपात होने से कई प्रकार की बीमारियों को रोका जा सकता है. साथ ही, उन्होंने बताया कि मोटे अनाज की फसलों को कम पानी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. दुनियाभर में इस की उत्पादकों की मांग है.

इस अवसर पर डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने श्री अन्न की उपयोगिता बताते हुए कहा कि इस से मोटापा, डायबिटीज व एनीमिया आदि गंभीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि पोषण सुरक्षित है तो हर घर एवं खेती सुरक्षित रहेगी.

कार्यक्रम की शुरुआत में डा. पीसी चपलोत ने सभी आने वालों का स्वागत करते हुए बताया कि पहले हम तिलहनी एवं दलहनी फसलों के उत्पादन बढ़ाने में ध्यान दे रहे थे, लेकिन अब हमें मोटे अनाज की फसलों की खेती पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.

डा. आरएस.एल राठौड़, समन्वयक, स्मार्ट विलेज ने बताया कि आज ही के दिन 29 सितंबर को खाद्य की बरबादी को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता दिवस मनाया जाता है. साथ ही, उन्होंने ग्राम मदार एवं ब्राह्मणों की हुंदर में किए जा रही विभिन्न गतिविधियों की जानकारी प्रदान की.

डा. हेमलता शर्मा ने बताया कि मिलेट के तहत बाजरा, ज्वार, रागी, कांगनी, कोदो, चीना, कुरी, कुटकी, सांवा, कुट्टू एवं चोलाई इत्यादि प्रमुख फसलों को उत्पाद तकनीकी के बारे में बताया व परिसर में स्थित मिलेट वाटिका का भ्रमण कराया. साथ ही, डा. रेणु मोगरा ने मोटे अनाज की पोषकता के बारे में बताया.

Shree Annaडा. लतिका व्यास, प्रसार शिक्षा निदेशालय ने इस अवसर पर बाजरा ब्राउनी, टूटी फ्रूटी कोदो कुकीज, सांवा कप केक, रागी क्रीम व केक एवं ज्वार ब्रेड इत्यादि व्यंजन की प्रायोगिक जानकारी दी. उन्होंने इस कार्यक्रम का संचालन किया व सभी संभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया और इस जागरूकता दिवस में 63 किसान महिलाओं ने हिस्सा लिया.

अरहर और उड़द की स्टाक सीमा अवधि बढ़ी

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने अरहर और उड़द का स्टाक रखने वाली संस्थाओं के लिए स्टाक सीमा को संशोधित किया है. जारी की गई अधिसूचना के अनुसार, गोदाम में थोक विक्रेताओं और बड़ी तादाद में खुदरा विक्रेताओं के पास स्टाक सीमा को 200 मीट्रिक टन से घटा कर 50 मीट्रिक टन कर दिया गया है और चक्की के लिए स्टाक सीमा को पिछले 3 महीने के उत्पादन या वार्षिक क्षमता से 25 फीसदी की कटौती की गई है, जो भी पिछले एक महीने का उत्पादन या वार्षिक क्षमता का 10 फीसदी या जो भी अधिक हो.

स्टाक सीमा में संशोधन और समय अवधि का विस्तार जमाखोरी को रोकने और बाजार में पर्याप्त मात्रा में अरहर और उड़द की दालों की लगातार प्राप्ति और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती कीमतों पर अरहर और उड़द दाल उपलब्ध कराने के लिए किया गया है.

नवीनतम आदेश के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 31 दिसंबर, 2023 तक अरहर और उड़द की दालों के लिए स्टाक सीमा निर्धारित की गई है. थोक विक्रेताओं के लिए प्रत्येक दाल पर व्यक्तिगत रूप से लागू स्टाक सीमा 50 मीट्रिक टन है, जबकि खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन. प्रत्येक खुदरा आउटलेट पर 5 मीट्रिक टन और खुदरा विक्रेताओं के लिए डिपो में 50 मीट्रिक टन. चक्की के लिए उत्पादन के अंतिम एक महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 10 फीसदी, जो भी ज्यादा हो. आयातकों के लिए, आयातकों को सीमा शुल्क निकासी के दिन से 30 दिनों से ज्यादा आयातित स्टाक नहीं रखना है.

संबंधित संस्थाओं को उपभोक्ता मामले विभाग के पोर्टल (https://fcainfoweb.nic.in/psp) पर स्टाक की स्थिति घोषित करनी पड़ेगी और अगर उन के पास स्टाक निर्धारित सीमा से अधिक पाया जाता है, तो वे अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के अंदर इसे निर्धारित स्टाक सीमा तक ले कर लाएंगे.

इस से पहले सरकार ने 2 जनवरी, 2023 को तुअर और उड़द की दालों के लिए स्टाक सीमा की अधिसूचना जारी की थी, जिस के माध्यम से जमाखोरी और बेईमान सट्टेबाजी को रोका जा सके और उपभोक्ताओं को इस का लाभ प्राप्त हो सके.

उपभोक्ता मामला विभाग स्टाक डिस्क्लोजर पोर्टल के माध्यम से अरहर और उड़द की दालों के स्टाक की स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहा है, जिस की राज्य सरकार के साथ साप्ताहिक आधार पर समीक्षा की जा रही है.

बायोगैस संयंत्रों के लिए एकीकृत पंजीकरण पोर्टल शुरू

नई दिल्ली : जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने पूरे देश में संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) और बायोगैस संयंत्रों के पंजीकरण को सुव्यवस्थित करने को ले कर गोबरधन (gobardhan.co.in) के लिए एक एकीकृत पंजीकरण पोर्टल जारी किया है.

गोबरधन के लिए नोडल विभाग के रूप में डीडीडब्ल्यूएस ने घोषणा की कि अब तक 1163 से अधिक बायोगैस संयंत्र और 426 सीबीजी संयंत्रों को सफलतापूर्वक पोर्टल पर पंजीकृत किया जा चुका है. ये पंजीकृत सीबीजी/बायोगैस संयंत्र रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग की बाजार विकास सहायता (एमडीए) योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं.

दिशानिर्देशों के अनुसार, गोबरधन पहल के तहत बीजी/सीबीजी संयंत्रों में उत्पादित किण्वित कार्बनिक खाद (एफओएम)/तरल किण्वित कार्बनिक खाद (एलएफओएम)/फास्फेटयुक्त कार्बनिक खाद (पीआरओएम) की बिक्री के लिए 1500 रुपए प्रति मीट्रिक टन की सहायता (एमडीए) दी जाएगी. एमडीए पात्रता के लिए डीडीडब्ल्यूएस के एकीकृत गोबरधन पोर्टल पर विनिर्माण संयंत्रों का पंजीकरण और जैविक उर्वरकों के लिए उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) विनिर्देशों का अनुपालन करना पूर्व शर्तें हैं.

गोबरधन के लिए एकीकृत पंजीकरण पोर्टल के तहत पंजीकृत विनिर्माण इकाइयां उर्वरक विपणन कंपनियों के जरीए पैक्ड फार्म (बंद रूप) में या स्वतंत्र रूप से पैक्ड फार्म, थोक या दोनों में एफओएम/एलएफओएम/पीआरओएम (सीबीजी/बायोगैस संयंत्रों के सहउत्पाद) का विपणन कर सकती हैं. विनिर्माण संयंत्रों को प्रायोगिक तौर पर दो तिमाहियों (अक्तूबर, 2023 से मार्च, 2024) के लिए थोक/खुले रूप में एफओएम/एलएफओएम/पीआरओएम का विपणन करने की अनुमति है. खाद की गुणवत्ता का परीक्षण सरकार की ओर से अधिसूचित प्रयोगशालाओं/एनएबीएल मान्यताप्राप्त निजी प्रयोगशालाओं में किया जाएगा.

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग ने गैल्वनाइजिंग और्गेनिक बायोएग्रो रिसोर्सेज धन (गोबरधन) संयंत्रों से जैविक उर्वरकों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए केंद्रित दिशानिर्देशों के साथ एमडीए योजना शुरू की है.

एमडीए योजना को 3 वर्षों (वित्तीय वर्ष 2023-24 से वित्तीय वर्ष 2025-26) के लिए 1451.82 करोड़ रुपए के ठोस बजट के साथ शुरू किया गया, जिस से गोबरधन संयंत्रों से उत्पन्न जैविक उर्वरकों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के साथ पूरे देश में टिकाऊ/जैविक कृषि की पहलों को बढ़ावा दिया जा सके. इस का उद्देश्य जैविक खाद का बड़े पैमाने पर उपयोग करना है, जिस से रासायनिक उर्वरकों/यूरिया पर निर्भरता को कम किया जा सके और ग्रामीण परिवारों के लिए बचत हो सके. जैव घोल में जैविक खेती के तहत रकबा बढ़ाने और इस के परिणामस्वरूप किसानों को मौद्रिक लाभ प्रदान करने की क्षमता है. एमडीए घटक भी बराबरी स्थापित करने वाला एक कारक है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जैविक उर्वरक उत्पादक और किसान के बीच कोई भेदभाव न हो. यह रासायनिक उर्वरक के काफी अधिक उपयोग को नियंत्रित करते हुए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन को बढ़ावा देता है.

सीबीजी/बायोगैस संयंत्र के मोरचे पर एमडीए योजना इस क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा प्रोत्साहक है. जैसा कि भारत आईएनडीसी/जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और नेट जीरो प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए तैयार है, यह योजना सीबीजी संयंत्रों के अच्छी वित्तीय स्थिति की गारंटी देती है, जिस से इस में निजी निवेश को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता उत्पन्न होती है.

सफल एफओएम/एलएफओएम विपणन से बैंकिंग संस्थानों में विश्वास बना रहता है, जिस से ऋण प्रक्रिया सुगम हो जाती है. उद्यमियों व निजी निवेशकों के लिए इस सहउत्पाद का मुद्रीकरण इन संयंत्रों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बढ़ोतरी करता है और वृद्धिशील सीबीजी/बायोगैस क्षेत्र में नए उद्यमियों को आकर्षित करता है.

एक मार्गदर्शक बहुमंत्रालयी पहल के रूप में गोबरधन का मिशन मवेशियों के गोबर, कृषि अवशेषों व बायोमास सहित जैविक रूप से अपघटित होने वाले और जैविक कचरे को बायोगैस, सीबीजी और जैविक खाद जैसे उच्च मूल्य वाले संसाधनों में रूपांतरित करना है.

यह दूरदर्शी “संपूर्ण सरकार” दृष्टिकोण न केवल उच्च मूल्य वाले बायोगैस/सीबीजी उत्पादन के युग की शुरुआत करता है, बल्कि जैव घोल एक एफओएम, जो मिट्टी के स्वास्थ्य, कार्बन सामग्री और जल धारण क्षमता में संवर्द्धन करने वाला है, की शक्ति का भी उपयोग करता है.

जब जैव घोल को रासायनिक उर्वरकों के साथ मिला कर उपयोग किया जाता है, तो यह विवेकपूर्ण उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देता है, यूरिया आयात को कम करता है और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है. आर्थिक दृष्टिकोण से गोबरधन किसानों को जैविक खाद के साथ सशक्त बनाता है, जिस से महंगे रासायनिक उर्वरकों पर उन की निर्भरता कम होती है.

कई प्रमुख सक्षमकर्ताओं ने गोबरधन पहल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इनमें जैव घोल का मानकीकरण, आरबीआई द्वारा कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) के साथसाथ पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) में सीबीजी संयंत्रों को शामिल करना, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सीबीजी संयंत्र श्रेणियों का फिर से अंशांकन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा फीडस्टाक प्रकार व अपशिष्ट जल बहाव के आधार पर सीबीजी संयंत्रों के वर्गीकरण में संशोधन और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की अपशिष्ट से ऊर्जा योजना का पुनरुद्धार आदि शामिल हैं. इन में सबसे हालिया और महत्वपूर्ण सक्षमकर्ता गोबरधन संयंत्रों के तहत उत्पादित जैविक उर्वरकों के लिए एमडीए योजना की शुरुआत है.

सारांश रूप में कहा जाए, तो एमडीए योजना की शुरुआत कुशल जैविक अपशिष्ट प्रबंधन और कृषि मृदा में मिट्टी के कार्बनिक तत्वों को बढ़ावा देने, जैविक खेती के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से मेल खाता है.

बायोगैस/सीबीजी क्षेत्र में मौजूदा और आगामी नीति प्रवर्तकों के संयोजन के जरीए सरकार की सोच बायोगैस/सीबीजी संयंत्रों की पहुंच, जागरूकता और कार्यान्वयन का विस्तार करना है, जिस से इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के निवेश के लिए आकर्षक बनाया जा सके.

आईसीएआर के क्षेत्रीय बाजरा अनुसंधान केंद्र का शिलान्यास

बाड़मेर : उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ ने बाड़मेर के गुड़ामालानी में आईसीएआर के क्षेत्रीय बाजरा अनुसंधान केंद्र का शिलान्यास किया. इस अवसर पर वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी के प्रयासों से राजस्थान के बाड़मेर में आज इस बाजरा अनुसंधान संस्थान की आधारशिला रखी गई है.

उन्होंने अपने संबोधन में आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया के अंदर मोटे अनाज के बारे में जागरूकता बढ़ा कर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष घोषित कराया, यह देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि एक दशक पहले हम 5 कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाते थे. हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी और साल 2022 में दुनिया की 5वीं सब से शक्तिशाली आर्थिक महाशक्ति बन गए. आज हमारे देश का किसान तकनीकी रूप से इतना सक्षम हो गया है कि पीएम किसान सम्मान निधि के माध्यम से भेजी जाने वाली राशि किसान सीधे अपने बैंक खाते में प्राप्त कर रहा है, इस में कोई बिचौलिया नहीं है और न ही किसी प्रकार का कमीशन देना पड़ता है.

उन्होंने आगे कहा कि आज जो केंद्र यहां खुल रहा है, उस का असर केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विदेश पर भी पड़ेगा.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने संबोधन में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने सभी सांसदों को बाजरे से बने व्यंजन का भोजन कराया.

उन्होंने यह भी कहा कि सभी लोग भोजन कर रहे थे और कैलाश चौधरी स्वयं अपने हाथों से भोजन परोस रहे थे.

Bajraउपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने अंदाज में यह भी कहा कि बाजरे से बना भोजन बहुत ही स्वादिष्ठ भोजन था. शुरू से ले कर आखिरी तक पेय पदार्थ से ले कर मिठाई तक, सूप से ले कर सब्जी तक सबकुछ मोटे अनाज का बना था. मैं ने अपनी जिंदगी में आज तक इतना श्रेष्ठ भोजन नहीं किया.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग इतनी तपती हुई धूप में यहां आए हैं. मैं आप सभी का स्वागत करता हूं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में हमारा परिचय एक किसान पुत्र के रूप में कराया था, यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात है. किसान के बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती. किसान वह इंजन है, जो राजनीति की गाड़ी को भी चलाता है और देश का पेट भी भरता है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आगे कहा कि जब मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बना, तब से मैं बाड़मेर का ही बाजरा खा रहा हूं और अभी जब जहाज में आ रहा था, तो मेरे भोजन में मोटे अनाज के बने हुए व्यंजन और लौकी की सब्जी थी.

हाल ही में संसद में पारित हुए महिला आरक्षण बिल की तारीफ करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि महिलाओं के कल्याण के लिए अभी एक महत्वपूर्ण बिल पास हुआ है. इस बिल का पास होना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक की तारीफ करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि वह दिल और दिमाग से किसानों के हित में काम कर रहे हैं. साथ ही, उन्होंने आईसीएआर के सभी कृषि वैज्ञानिकों व स्टाफ को बधाई देते हुए उन्हें धन्यवाद दिया.

उन्होंने कहा कि किसान पुत्र राष्ट्रवाद को हमेशा सर्वोपरि रखते हैं और देश के विकास में सर्वश्रेष्ठ योगदान करते हैं. मैं आपसे आग्रह करता हूं, हमारा देश एक बदलाव का केंद्र बना है, हमें इस पर गर्व करना चाहिए, यहां से मैं बहुत सी यादें ले कर जा रहा हूं, आप का अन्न मैं ने 4 साल तक खाया है और आजीवन मैं आप का ही अन्न खाता रहूंगा.

इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (वीडियो क्रांफ्रेंसिंग द्वारा), कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, भीमा राम, मंत्री राजस्थान सरकार, कृषि वैज्ञानिक एवं बड़ी संख्या में पधारे सरपंच के साथसाथ कई अन्य गणमान्य लोग और दूरदूर से आए बड़ी संख्या में अन्नदाता किसान भाईबहन और युवा साथी उपस्थित रहे

पशु स्वास्थ्य शिविर में पशुपालक हुए लाभान्वित

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर की फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत गांव अरनिया तहसील- मालपुरा जिला- टोंक में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं जागरूकता के लिए किसानवैज्ञानिक संवाद का आयोजन 23 सितंबर, 2023 की सुबह संस्थान की ओर से आयोजित किया गया.

पशु स्वास्थ्य शिविर में कुल 280 (35 बकरी, 150 भेड़, 55 भैंस, 40 गाय एवं अन्य शिविर में आए पशु) पशुओं का अविकानगर के पशु चिकित्सक डा. दुष्यंत कुमार शर्मा के निर्देशन में उपचार एवं विभिन्न प्रकार की मौसम आधारित निःशुल्क दवाओं, मिनरल्स मिक्सर पाउडर व ईंट आदि का परामर्श दे कर 100 से ज्यादा पशुपालक किसानों को लाभान्वित किया गया.

फार्मर फर्स्ट परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. सत्यवीर सिंह दांगी ने बताया कि परियोजना के द्वारा मालपुरा तहसील के 6 चयनित गांव अरनिया, बस्सी, ढेचवास गरजेड़ा, चोसला व सोडा में खेती, बागबानी एवं पशुपालन में उन्नत तकनीकियों का प्रदर्शन किसानों के द्वार व गांव में किया जा रहा है.
चयनित गांव मे सभी तरह की खेती, पशुपालन आधारित व्यवसाय को बढ़ावा दे कर उन में उधमिता के विकास को बढ़ावा देने का काम परियोजना द्वारा दिया जा रहा है. पशु स्वास्थ्य शिविर एवं किसानवैज्ञानिक संवाद में पधारे मुख्य अतिथि कन्हैया लाल चौधरी मालपुरा- टोडारायसिंह विधानसभा विधायक द्वारा भी भारत सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कृषि एवं पशुपालन आधारित योजनाओं के बारे में विस्तार से किसानों को समझाया और बताया कि वर्तमान में खेती की आधुनिक तकनीकियों को अपना कर ही अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

Animal Healthअविकानगर संस्थान के निदेशक द्वारा मालपुरा तहसील के विभिन्न गांवों में संस्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों के लिए मुख्य अतिथि ने भूरिभूरि प्रशंसा की.

संवाद में पधारे पशुपालक किसानों को संबोधित करते हुए निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने बताया कि खेती एवं पशुपालन को शहरी आबादी की आवश्यकता के हिसाब से उद्यमिता का विकास गांव में कर के सीधे उपभोक्ता तक पहुंचा कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. गांव के जितने भी शिक्षित नौजवान हैं, उन से मेरा निवेदन है कि आने वाला समय शुद्ध और्गेनिक खेती एवं पशुपालन आधारित उत्पाद का होगा. इसलिए आप गांव में सहकारिता का निर्माण कर के अपने उत्पादों को नजदीकी शहरों में पहुंचाएं. जब उत्पाद का मूल्य कम मिले, तो विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पादों का निर्माण कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. शहरों मे ऐसे स्टार्टअप का विकास करें कि अपने उत्पाद का अपने खुद के द्वारा विकसित स्टार्टअप में उपयोग कर बाजार की बदलाव मार्केट प्रणाली से बचाव कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सके.

पशु स्वास्थ्य शिविर में अविकानगर के वैज्ञानिक डा. अमर सिंह मीना, डा. अरविंद सोनी, डा. रंगलाल मीना, डा. अजित सिंह महला, इंद्रभूषण कुमार, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, अरावली वेटरनरी कालेज के इंटर्नशिप स्टूडेंट्स एवं फार्मर फर्स्ट परियोजना के समस्त स्टाफ द्वारा भाग ले कर पशु स्वास्थ्य शिविर में पधारे किसानों को स्वास्थ्य प्रबंधन, पोषण प्रबंधन, पशु प्रजनन एवं चारा आदि पर विस्तार से जानकारी दी गई.

Animal Healthपशु प्रजनन विशेषज्ञ डा. अजीत सिंह महला ने बताया कि अरनिया गांव में सभी तरह के जानवरों में मिनरल मिक्सचर पाउडर एवं ईंट में मिलने वाले विभिन्न माइक्रोन्यूट्रिएंट की बहुत कमी है. इस के कारण जानवर समय पर ताव में नहीं आ कर समय पर प्रग्नेंट नहीं हो कर बच्चे नहीं दे रहे हैं. इसलिए सभी गांव वालों से निवेदन है कि सभी तरह के पशुधन को समयसमय पर मिनरल्स मिक्सचर पाउडर एवं ईंट जरूर खिलाएं, जिस से उन के शरीर में मिनरल्स की कमी न हो.

अरनिया गांव के बाशिंदे एवं चैनपुरा ग्राम पंचायत सरपंच प्रतिनिधि दयाल दास स्वामी ने संस्थान निदेशक को धन्यवाद देते हुए पंचायत के बाकी गांव को भी गोद लेने के निवेदन के साथ इस तरह के प्रोग्राम को गांव में अधिक से अधिक आयोजित करने पर जोर दिया, जिस से कि गांव के लोगों को खेती एवं पशुपालन व्यवसाय के माध्यम से आजीविका बढ़ाई जा सके.

धान में रोग, कैसे करें बचाव

बस्ती : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर द्वारा 23 सितंबर, 2023 को किसान के प्रक्षेत्र का भ्रमण एवं निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान धान में आभासी कंड यानी फाल्स स्मट या हल्दिया या फिर अंगिया रोग लगा पाया गया.

जनपद के किसान भाइयों को सलाह दी जा रही है कि जिन किसान भाइयों के धान फूटने या फटने की स्थिति में हैं, उन किसान भाइयों को इस रोग से बचने के लिए विभिन्न उपाय अपनाने की सलाह जा रही है. सर्वप्रथम अपने खेत की निगरानी करते रहना चाहिए. इस रोग को पहचानने के विभिन्न लक्षण दिखाई पड़ते हैं. धान का दाने पीले फलदार पिंडों के समूह में परिवर्तित हो जाते हैं. फूलों के हिस्सों को घेरने वाले मखमली बीजाणुओं में वृद्धि होती है.

स्मट बाल पहले छोटी दिखाई देती है और फिर धीरेधीरे एक सैंटीमीटर के आकार तक बढ़ती है. जैसेजैसे कटक की वृद्धि होती है, स्मट बाल फट जाती है और नारंगी, फिर बाद में पीलेहरे या हरेकाले रंग में बदल जाती है.

संक्रमण आमतौर पर प्रजनन और पकने के चरण के दौरान होता है, जिस से पुष्प गुच्छ में कुछ दाने संक्रमित हो जाते हैं, बाकी स्वस्थ रहते हैं.

ऐसी स्थिति में कुछ वजह ऐसी हैं, जो रोग के विकास को बढ़ावा देती है, जैसे अचानक बदली होना या वर्षा का होना.

– उच्च आर्द्रता एवं तापमान का उतारचढ़ाव की उपस्थिति.

– अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग पौधों से पौधों तक बीजाणु के प्रसार के लिए हवा की उपस्थिति.

Dhanऐसे में किसान को अपनी धान की फसल को रोग से बचाने के लिए विभिन्न उपाय अपनाना चाहिए :

– स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का प्रयोग करें.

– बीजोपचार के लिए थीरम 37.5 फीसदी डब्ल्यूपी + कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी डब्ल्यूपी मिश्रण बीटावैक्स पावर की 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करें.

– संक्रमित पौधों को फौरन ही निकाल देना चाहिए.

– खड़ी फसल में संक्रमण को रोकने के लिए पहला छिड़काव बूट लीफ या दूधिया अवस्था में प्रोपीनोजोल 25 फीसदी ईसी टिल्ट/जेरौक्स की 200 मिलीलिटर मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से 100 से 120 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर प्रोपीनोजोल 13.9 फीसदी +डीफैनकोनोजोल 13.9 फीसदी ईसी मिश्रण की 200 मिलीग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 100 से 120 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती पर कार्यरत पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर, जिन का मोबाइल नंबर 9616 297380 पर संपर्क करें.

मोटे अनाज (श्री अन्न) का प्रयोग करें किसान

बस्ती : अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023-24 के तहत उत्तर प्रदेश मिलेट्स पुनरुद्धार कार्यक्रम के अंतर्गत स्कूल कैरिकुलम के माध्यम से अध्यापकों का एकदिवसीय प्रशिक्षण का जिलाधिकारी अंद्रा वामसी एवं मुख्य विकास अधिकारी जयदेव सीएस ने नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती पर स्थित नानाजी देशमुख सभागार में कार्यक्रम का आयोजन हुआ.

जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने केंद्र के वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि केंद्र पर सालभर विभिन्न प्रजाति के मोटे अनाजों जैसे सांवा, कोदो, मडुवा, ज्वार आदि का उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षण व प्रदर्शन कराए, जिस से बेरोजगार स्वरोजगार के रूप में इसे अपना कर स्वास्थ्य वृद्धि व आय अर्जित कर सकें.

जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने बताया कि परंपरागत फसलों की अपेक्षा मोटे अनाजों में पोषक तत्व ज्यादा होते हैं. उन्होंने इंडोइजराइल फल उत्कृष्टता केंद्र का भ्रमण किया और इस केंद्र द्वारा किसानों के हित में किए जा रहे कामों की सराहना की.

Shri Annउन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सहयोग से संचालित काला नमक धान की विभिन्न प्रजातियों के ट्रायल, पौलीहाउस, नेटहाउस, मातृवृक्ष फल पौधशाला, जगरी यूनिट, बकरीपालन, मुरगीपालन एवं जैविक उत्पादन इकाई (वर्मी कंपोस्ट एवं अजोला यूनिट) का अवलोकन किया. साथ ही, उन्होंने नेटहाउस व फलवृक्ष मातृ पौधशाला में लगी हुई आम, चीकू, शरीफा, सेब, अंजीर, नीबू, आंवला, कटहल, लीची, पपीता आदि की विभिन्न किस्मों को देख कर प्रसन्नता व्यक्त की और निर्देशित किया कि इन की अधिक से अधिक पौध तैयार कर अध्यापकों के माध्यम से किसानों में पहुंचाएं.

मुख्य विकास अधिकारी जयदेव सीएस ने मोटे अनाज की खेती को जनपद में बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि कार्य योजना बना कर किसानों को मिलेट क्राप की तकनीक पर प्रशिक्षण व प्रदर्शन आयोजित करें.

केंद्र के अध्यक्ष डा. एसएन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि पौलीहाउस में बेमौसमी सब्जियों की पौध उपलब्ध हैं. वहीं उपनिदेशक, कृषि, अनिल कुमार ने मोटे अनाजो की महत्ता पर बल दिया.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. डीके श्रीवास्तव ने जिलाधिकारी अंद्रा वामसी को अवगत कराया कि केंद्र द्वारा जिले की गौशालाओं को निःशुल्क नैपियर घास वितरित की जा रही है. किसानों तक कृषि तकनीकों को पहुंचाने हेतु प्रगतिशील किसानों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है, जिस पर आवश्यक सलाहकारी सेवाएं समयसमय पर दी जाती हैं.

कार्यक्रम का संचालन डा. बीबी सिंह ने किया. इस अवसर पर जिला कृषि अधिकारी मनीष कुमार सिंह, केंद्र के वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर, हरिओम मिश्र और संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे.

किसान के घर पर किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी

अविकानगर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर (मालपुरा जिला – टोंक) निदेशक एवं भ्रमण कार्यक्रम समन्वयक डा. अरुण कुमार तोमर ने गांव देशांतरी नाड़ी (नयानगर) गुड़ामालानी के प्रगतिशील किसान छगन लाल गोयल के घर पर किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिस में गांव के लोगों ने निदेशक का बाड़मेर परंपरा से स्वागत करते हुए बताया कि आप का किसान के द्वार आने पर हम को अत्यंत ख़ुशी हो रही है.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने छगन लाल के समकलित खेती, बागबानी, देशी मुरगीपालन, खरगोशपालन, भेड़बकरी एवं अन्य पशुओं के पालन से अपने परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का उदाहरण देते हुए बाड़मेर की पारिस्थितिकी में छोटे पशु भेड़बकरी एवं खरगोश को आसानी से पाला जा सकता है की उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की गई.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रगतिशील किसान छगन लाल के फार्म पर आंवला व सहजन के पौधे का पौधरोपण करते हुए उन के फायदे मानव और पशुधन में विस्तार से संगोष्ठी मे पधारे किसानों को विस्तार से अवगत कराया.

Farmerनिदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने संगोष्ठी में मौजूद सभी किसानों के सभी तरह के सवालों का जवाब दिया. साथ ही, उन्होंने संगोष्ठी में उपस्थित किसानों को अधिक से अधिक संख्या में कृषि विज्ञान केंद्र के पास नए क्षेत्रीय बाजरा अनुसंधान संस्थान केंद्र, गुड़ामालानी के फाउंडेशन स्टोन (स्थापना दिवस) में पधार कर आईसीआर, नई दिल्ली के राजस्थान में स्थित संस्थान की प्रदर्शनी अवलोकन करने एवं साथ में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा दिया गया संबोधन के बारे में बताया.

उन्होंने यह भी बताया कि एक ही जगह आप को देश के प्रसिद्ध कृषि व पशुपालन की उन्नत तकनीकियों की जानकारी मिलेगी, उस से सभी लाभान्वित हो कर अपनी खेती व पशुपालन व्यवसाय को आजीविका में सफल बनाए.

Farmerनिदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने इस संगोष्ठी के माध्यम से सभी किसानों को अधिक से अधिक संख्या में अपनी जानकारी को अन्य किसान भाइयों को प्रसारित करने का निवेदन किया, जिस से उपराष्ट्रपति के साथ देश के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राज्यमंत्री कैलाश चौधरी और परिषद के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक के विचारों से गुड़ामालानी के सभी किसान लाभान्वित हों.
निदेशक के साथ डा. रणधीर सिंह भट्ट, विभागाध्यक्ष पशु पोषण विभाग, इंद्रभूषण कुमार, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, राजकुमार, मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी, डा. अमर सिंह मीना, डा. सत्यवीर सिंह दांगी व अन्य अविकानगर संस्थान का स्टाफ मौजूद रहा.