सवाल : मोटे अनाज किसे कहते हैं?

लघु या छोटे धान्य फसलों जैसे - मंडुआ, सांवा, कोदो, चीना, काकुन, ज्वार, बाजरा आदि को मोटा अनाज कहा जाता है. इन सभी फसलों के दानों का आकार बहुत छोटा होता है.

सवाल : मोटे आनाज की उपयोगिता क्या है?

मोटे अनाज पोषक तत्वों और रेशे से परिपूर्ण होने के कारण इस का औषधीय उपयोग भी है और यह आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और फास्फोरस का अच्छा स्रोत है. मधुमेह के मरीजों, ब्लड प्रेशर, हड्डी के रोग और पाचन क्रिया से संबंधित रोगों में काफी लाभकारी होता है. यही वजह है कि मंडुआ से रोटी, ब्रेड, सत्तू, लड्डू, बिसकुट आदि एवं सांवा, कोदो, चीना व काकुन को चावल, खीर, दलिया व मर्रा के रूप में उपयोग करते हैं और पशुओं को चारा भी मिल जाता है.

सवाल : मोटे अनाज की खेती कब की जाती है?

ये खरीफ की फसलें हैं. जूनजुलाई माह तक फसल लगाई जा सकती है. जिन जगहों पर मुख्य अन्य फसलें नहीं उगाई जा सकती हैं, वहां पर ये फसलें सुगमतापूर्वक उगा ली जाती हैं. ये फसलें कम पानी में पैदा होने वाली फसलें हैं. सूखे को आसानी से सहन कर लेती हैं.

सवाल : इस तरह की फसलें कितने दिन में तैयार हो जाती हैं?

मोटे आनाज की फसलें 70-115 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं और फसलों पर कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इन मोटे अनाजों के बारे में अनेक कहावतें प्रचलित हैं जैसे -

*मंडुआ, मीन, चीन संग दही,
कोदो भात दूध संग लही...

मार्रा, माठा, मीठा,

सब अनन्न में मंडुआ राजा,
जबजब सेंको, तबतब ताजा.

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