नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर–आईएआरआई), नई दिल्ली ने 20 अगस्त, 2025 को पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह मनाया. इस अवसर पर संस्थान ने कृषि, जैव विविधता, मानव एवं पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण को पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस से होने वाले नुकसान से बचाने की अपनी जिम्मेदारी दोहराई.
इस कार्यक्रम में संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी विश्वनाथन और संयुक्त निदेशक (विस्तार) डा. आरएन पडारिया उपस्थित रहे. डा. एसएस राठौर, अध्यक्ष, सस्य विज्ञान संभाग, ने इस अभियान के राष्ट्रीय महत्त्व के बारे में बताया, जो हर साल पूरे देश में पार्थेनियम के खिलाफ जागरूकता और कार्रवाई हेतु मनाया जाता है.
डा. टीके दास, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रख्यात खरपतवार वैज्ञानिक, ने विस्तार से पार्थेनियम से होने वाले नुकसानों के बारे में बताया और इस के व्यावहारिक, एकीकृत नियंत्रण कर ने के उपाय भी बताए. उन्होंने कहा कि पार्थेनियम एक खतरनाक जैवआक्रांता है, जो यदि नियंत्रित न किया जाए तो भारतीय कृषि और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. उन्होंने नारा देते हुए कहा—“एक व्यक्ति, एक दिन, 5 पार्थेनियम पौधे उखाड़ें – मिल कर पार्थेनियम मुक्त भारत बनाएं.”
डा. सी विश्वनाथन ने कहा कि पार्थेनियम जैसे आक्रामक खरपतवार कृषि प्रगति के सालों के प्रयासों को बाधित कर देते हैं, जिस से उत्पादकता और जैव विविधता दोनों पर बेहद खराब प्रभाव पड़ता है. उन्होंने युवा शोधार्थियों और छात्रों से निवेदन किया कि वे इस समस्या से निपटने के लिए नवीन और पर्यावरण अनुकूल तकनीकें विकसित करें. डा. आरएन पडारिया ने किसानों और समुदाय की भागीदारी पर बल दिया. उन्होंने कहा कि पार्थेनियम प्रबंधन केवल जागरूकता से नहीं, बल्कि सामुदायिक स्तर पर उन्मूलन अभियानों के माध्यम से ही सफल होगा.
क्यों महत्वपूर्ण है पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह
आईसीएआर के निर्देशन में हर साल अगस्त माह में मनाया जाने वाला यह अभियान किसानों, छात्रों, पंचायतों और समुदायों को पार्थेनियम के प्रसार के खिलाफ संगठित करता है. इस में पर्यावरण-अनुकूल उपायों पर जोर दिया जाता है, जैसे जाइगोग्राम्मा बिकोलोराटा बीटल द्वारा जैविक नियंत्रण, कंपोस्टिंग, प्रतिस्पर्धी फसलों की बोआई और सुरक्षित खरपतवारनाशी का प्रयोग.
पार्थेनियम के नुकसान
– मानव स्वास्थ्य : पराग और पार्थेनिन नामक जहरीले पदार्थ के कारण एलर्जी, दमा, एक्जिमा, त्वचा पर चकत्ते और सांस संबंधी रोग पैदा होते हैं.
– पशु स्वास्थ्य : चारे को प्रदूषित करता है, दूध की मात्रा घटाता है और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है.
– फसल उत्पादकता : पोषक तत्त्वों और नमी की प्रतिस्पर्धा से फसलों की उपज 40 से 50 फीसदी तक घटा देता है.
– जैव विविधता : देशी वनस्पतियों को प्रतिस्थापित कर देता है, अन्य पौधों की वृद्धि को रोकता है और चरागाह भूमि की गुणवत्ता खराब करता है.
विशेषज्ञों ने पार्थेनियम प्रबंधन के लिए एकीकृत रणनीतियों की सिफारिश की है जैसे फूल आने से पहले यांत्रिक उखाड़ना, कंपोस्टिंग, प्रतिस्पर्धी फसलों की बोआई, जैविक नियंत्रण और जरूरत पड़ने पर खरपतवारनाशी का प्रयोग. उन्होंने जोर दिया कि व्यक्तिगत और सामुदायिक भागीदारी ही इस खरपतवार को स्थायी रूप से नियंत्रित कर सकती है.
आईएआरआई में इस जागरूकता सप्ताह का आयोजन न केवल हितधारकों को संवेदनशील बनाने में सफल रहा, बल्कि देश के हर एक किसानों को भी यह संदेश गया कि वैज्ञानिक, किसान, छात्र और नागरिक मिल कर सामूहिक प्रयासों से पार्थेनियम मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.