15अगस्त से 50 रुपये प्रति किलोग्राम टमाटर

नई दिल्ली : उपभोक्ता मामलों के विभाग ने थोक बाजारों में टमाटर की कीमतों में गिरावट को ध्यान में रखते हुए एनसीसीएफ और नेफेड को 15 अगस्त, 2023 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम खुदरा मूल्य पर टमाटर बेचने का निर्देश दिया है.

दिल्ली और एनसीआर में टमाटर की खुदरा बिक्री 14 जुलाई, 2023 से शुरू हुई थी. 13 अगस्त, 2023 तक दोनों एजेंसियों ने कुल 15 लाख किलोग्राम टमाटर की खरीद की है, जिसे देश के प्रमुख खपत केंद्रों में खुदरा उपभोक्ताओं को लगातार बेचा जा रहा है. इन स्थानों में दिल्ली व एनसीआर, राजस्थान (जयपुर, कोटा), उत्तर प्रदेश (लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज) और बिहार (पटना, मुजफ्फरपुर, आरा, बक्सर) शामिल हैं.

एनसीसीएफ और नेफेड द्वारा खरीदे गए टमाटर का खुदरा मूल्य शुरू में 90 रुपए प्रति किलोग्राम निर्धारित किया गया था, जबकि बाद में 16 जुलाई को इसे घटा कर 80 रुपए प्रति किलोग्राम और फिर 20 जुलाई को 70 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया था. अब इसे 50 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा जाएगा, जिस से उपभोक्ताओं को और ज्यादा लाभ प्राप्त होगा.

पिछले कुछ दिनों में एनसीसीएफ ने पूरी दिल्ली में 70 जगहों पर और नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा में 15 जगहों पर अपना मोबाइल वैन तैनात करते हुए खुदरा उपभोक्ताओं को टमाटर की आपूर्ति की मात्रा में वृद्धि दर्ज की है. इस के अलावा एनसीसीएफ द्वारा ओपन नेटवर्क फौर डिजिटल कौमर्स यानी ओएनडीसी प्लेटफार्म के माध्यम से भी टमाटर की लगातार खुदरा बिक्री की जा रही है.

उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता मामलों के विभाग के निर्देश पर एनसीसीएफ और नेफेड ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों से टमाटर की खरीद शुरू की थी, जिस से प्रमुख खपत केंद्रों में एकसाथ बिक्री की जा सके, जहां खुदरा कीमतों में पिछले एक महीने में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई है.

बस्तरिया काली मिर्च ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में मचाई जबरदस्त धूम

11 अगस्त, 2023 को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा औषधीय, सगंध पौधों और मसालों पर शीर्ष विशेषज्ञों की राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई.
सेमिनार की विशेषज्ञ आमंत्रित वक्ता “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एंड रिसर्च सेंटर” चिखलपुटी कोंडागांव की गुणवत्ता और विपणन प्रमुख अपूर्वा त्रिपाठी ने बस्तर की “ब्लैक गोल्ड” कही जाने वाली काली मिर्च की सफल किस्म “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16” पर अपनी प्रस्तुति देते हुए बताया कि कैसे डा. राजाराम त्रिपाठी के मार्गदर्शन में इस संस्थान द्वारा विकसित बस्तरिया काली मिर्च “एमडीबीपी 16” बस्तर के किसानों की जिंदगी को बदल रही है, बेहतर बना रही है.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में काली मिर्च का प्रति पेड़ उत्पादन औसतन डेढ़ से दो किलोग्राम है, जबकि बस्तर में डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा विकसित यह नई किस्म प्रति पेड़ 8 से 10 किलोग्राम काली मिर्च का उत्पादन दे रही है. इतना ही नहीं, इस की गुणवत्ता भी शेष भारत की काली मिर्च से बेहतर है.

उन्होंने सभी आमंत्रित विशेषज्ञों को कोंडागांव चल कर अपनी काली मिर्च की खेती, इस के उत्पादन और गुणवत्ता को देखने पर रखने हेतु आमंत्रित भी किया.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल ने कहा कि “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म” छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि संभवतः पूरे देश में पहला है, जिस ने इस तरह की उच्च स्तरीय मल्टीलेयर फार्मिंग शुरू की है. उन्होंने देश के वैज्ञानिकों को छत्तीसगढ़ बस्तर में हो रही काली मिर्च की सफल खेती की विशिष्ट पद्धति के बारे में बताया.

संगोष्ठी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ ही देश के कुछ अन्य कृषि विश्वविद्याल भी “मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप” के सहयोग से अपने राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में काली मिर्च की खेती के विस्तार किया जाना तय किया गया. इस!का पायलट प्रोजैक्ट बहुत जल्द शुरू किया जाएगा.

मिजोरम विश्वविद्यालय आइजाल भी काली।मिर्च की खेती में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ हाथ मिलाएगा. इस योजना में मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की भी मार्गदर्शक भूमिका व सक्रिय भागीदारी होगी.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी के काली मिर्च के खेतों से सीधा वीडियो प्रसारण संगोष्ठी के वैज्ञानिकों, विभिन्न संकायों के छात्रों, शोधार्थियों और उपस्थित प्रगतिशील किसानों को दिखाया गया, जिसे सभी ने बहुत सराहा. डीबीटी-आईएलएस भारत सरकार, नई दिल्ली के सलाहकार डा. मोहम्मद असलम, जिन्होंने 2 दशक पूर्व भी “मां दंतेश्वरी फार्म का दौरा किया था, अपने, पिछले भ्रमण की यादें ताजा करते हुए वर्तमान में “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म और रिसर्च सेंटर के द्वारा विकसित “उच्च लाभदायक बहुस्तरीय कृषि” के सफल मौडल को देश की खेती और किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए सराहना की, और इस समूह के साथ मिल कर अंचल के अन्य किसानों को जोड़ते हुए संयुक्त रूप से काली मिर्च की खेती परियोजना शुरू करने की पहल का प्रस्ताव भी रखा.

अपूर्वा ने अपने समूह के लगभग 7 एकड़ में पिछले 3 दशकों में जंगल उगा कर तैयार किए गए “एथेनो मेडिको गार्डन” के बारे में भी बताया, जहां लगभग 340 प्रकार की औषधीय जड़ीबूटियां संरक्षित हैं और उन में से लगभग 25 तो विलुप्तप्राय व ‘रेड डेटा बुक’ में हैं.

अपूर्वा त्रिपाठी ने सभी को बधाई देते हुए कहा कि यह बस्तर व छत्तीसगढ़ के लिए विशेष गर्व का विषय है कि, अपने विशिष्ट गुणवत्ता के कारण अल्प समय में ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी धाक जमाने वाली बस्तर की ब्लैक गोल्ड कही जाने वाली काली मिर्च की ब्रांडिंग व मार्केटिंग अब “एमडी बोटैनिकल्स” के तहत की जा रही है और जल्द ही यह बस्तर में किसानों द्वारा उगाए गए हर्बल्स, मसाले, मिलेट्स के साथ ही काली मिर्च भी बस्तरिया ब्रांड ‘एमडी बोटैनिकल्स’ के जरीए भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर औनलाइन सहजता से उपलब्ध होगा.

हैलीकौप्टर वाले देश के पहले किसान डा. राजाराम त्रिपाठी

कोंडागांव : औषधीय पौधों की और्गेनिक खेती में अपनी एक विशेष पहचान देशविदेश में बना चुके इलाके के किसान डा. राजाराम त्रिपाठी ने अब खेतीकिसानी में एक और बड़ा नवाचार करने का निर्णय ले लिया है.

उन्होंने हाल ही में मूलतः कैलिफोर्निया की एक कंपनी से हैलीकौप्टर खरीदी का अनुबंध किया है. हैलीकौप्टर की खरीद, आयात अनुमति, लाइसेंस, रखरखाव आदि के लिए उन्होंने दिल्ली की एक विशेषज्ञ कंपनी की सेवाएं ली है. यह हैलीकौप्टर आने वाले तकरीबन 25 माह में उन्हें उपलब्ध हो जाएगा, जिसे वे केवल सैरसपाटा के लिए उपयोग नहीं करेंगे, बल्कि मुख्य रूप से खेतीकिसानी में इस के महत्वपूर्ण उपयोग होने की बात डा. राजाराम त्रिपाठी ने कही है.

उन्होंने बताया कि औषधीय पौधों में काली मिर्च, हलदी, सफेद मूसली, स्टीविया, इंसुलिन पौधा सहित वे अन्य देशीविदेशी विभिन्न प्रजातियों के पौधों की खेती बस्तर इलाके में पिछले ढाई दशक से करते आ रहे हैं. इस में उन्हें कभी फायदा तो कभी नुकसान भी झेलना पड़ा है, लेकिन मिश्रित खेती करने से फायदे व सफलता दोनों हाथ लगी है.

आसमान से करेंगे खाद व दवा का छिड़काव

डा. राजाराम त्रिपाठी अब काली मिर्च, आस्ट्रेलियन टीक जैसे पौधों की खेती की सुरक्षा के लिए अब ड्रोन की जगह हैलीकौप्टर के माध्यम से खाद व दवा का छिड़काव करने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन के व आसपास के मित्रों के साथ ही गांव वालों के मिला कर तकरीबन 1,100 एकड़ खेत हैं. काला धान और अन्य ज्यादा लाभ देने वाली फसलों के साथ ही परंपरागत जैविक धान की खेती भी सैकड़ों किसान उन के साथ मिल कर पिछले कुछ सालों से जैविक पद्धति से करते आ रहे हैं, और धीरेधीरे उन से अब अन्य किसान भी जुड़ते चले जा रहे हैं. उन की काली मिर्च 70-80 फुट की ऊंचाई पर लगी हुई है, इतनी ऊंचाई पर जरूरी जैविक दवा का नीचे जमीन से छिड़काव करना मुश्किल है.

उन्होंने बताया कि वह अपने खेतों में हैलीकौप्टर का उपयोग तो करेंगे ही, साथ ही आसपास के अन्य सागसब्जी की खेती व धान के किसानों में भी जागरूकता फैला कर सहकारिता के आधार पर उन की फसलों में भी हैलीकौप्टर के माध्यम से ही जैविक खाद व दवा का छिड़काव करेंगे. इस से लागत कम होने के साथ ही उत्पादन में भी बहुत अच्छी बढ़ोतरी होगी. इस से निश्चित रूप से किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

यूरोपीय, अमेरिकी देशों में देखी यह तकनीक

डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि वे यूरोपीय देशों, अमेरिका आदि में हैलीकौप्टर से खेतीकिसानी करने का तौरतरीका देखने के साथ ही इसे समझ भी चुके हैं. इसलिए उन्होंने भी अपने खेतों में इस पद्धति को अपनाने की सोच बना ली और उन्होंने कैलिफोर्निया की एक कंपनी रौबिंसन से हैलीकौप्टर बुक करवा लिया है. बुकिंग लाइसेंस और हैलीकौप्टर के रखरखाव के लिए उन्होंने दिल्ली की एक एविएशन कंपनी से अनुबंध भी किया है.

उन्होंने बताया कि हम हमेशा सोचते हैं कि विदेशों में कम क्षेत्रफल में भी हम से ज्यादा उत्पादन आखिर क्यों होता है? इस के पीछे वहां की उन्नत सस्ती तकनीकें हैं, पर हम यहां पारंपरिक तरीके से खेती करते आ रहे हैं. जिस का हमें लाभ उतना नहीं मिल पाता, जितना मिलना चाहिए, क्योंकि हमारे यहां दवा व खाद सही मात्रा में और सही समय पर पौधों को नहीं मिल पाते. यदि यह समय पर मिल जाए, तो इस का फायदा उत्पादन व गुणवत्ता में देखने को मिलता है. आप को यह जान कर हैरानी होगी कि यदि सारे गांव वाले किसान मिलजुल कर अपने खेतों में हैलीकौप्टर से जैविक दवाई, जैविक खाद, बीज आदि का छिड़काव करवाना चाहते हैं, तो इस का खर्च वर्तमान में लगने वाले खर्च का केवल आधा ही होगा. इस के साथ ही पूरे गांव की फसलों की सारी बीमारियां एकसाथ, एकमुश्त ही नियंत्रित हो जाएंगी और इस से उत्पादन में भी 15 से 20 फीसदी तक वृद्धि होगी. कुलमिला कर अंचल के किसानों के लिए भी यह फायदे का सौदा है.

बस्तर के जंगलों में लगने वाली आग को बुझाना भी होगा आसान

डा. राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि हर साल बस्तर के जंगलों में लगने वाली आग से हजारों एकड़ के बहुमूल्य जंगल जल जाते हैं. साथ ही, कई अनमोल जैव विविधता भी विलुप्त होती जा रही है. घने जंगलों की आग को बुझाने के लिए वहां तत्काल किसी भी साधन का पहुंचना कठिन होता है, इसलिए आग जल्द ही बड़े क्षेत्र में फैल जाती है. जबकि हैलीकौप्टर के द्वारा त्वरित कार्यवाही कर आग फैलने के पहले ही उस पर सफलतापूर्वक नियंत्रण कर जंगलों को बचाया जा सकता है.

हैलीकौप्टर भी होगा मौडिफाई

किसान डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि वे हैलीकौप्टर में कृषि कार्य के उपयोग को ध्यान में रखते हुए अपनी इस सोच के मुताबिक कुछ बदलाव भी करवा रहे हैं, जिस से कि इलाके के किसान भी खेतीकिसानी में इस का भरपूर उपयोग कर सकें.

क्षेत्रीय गन्ना प्रजनन केंद्र में गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा हुए सम्मानित

लखीमपुर खीरी : जिले के प्रगतिशील गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा को भारत में गन्ने की किस्म सीओ 0238 में सर्वाधिक गन्ना उत्पादन 329 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लेने पर आईसीएआर-गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर की निदेशक हेमा प्रभाकरन ने शील्ड दे कर सम्मानित किया.

इस दौरान उन्होंने कहा कि गन्ना किस्म सीओ 0238 ने भारत के किसानों के जीवन में मिठास घोली है. इस के परिणामस्वरूप 27 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ये किस्म की बोआई हुई, जो कि देशभर में अभी तक इतने ज्यादा क्षेत्रफल में किसी भी किस्म की बोआई नहीं हुई है.

इस अवसर पर प्रधान वैज्ञानिक डा. एसके पांडेय, डा. एस. कुमार बगहा चीनी मिल बिहार के मुख्य प्रबंधक गन्ना बीएन त्रिपाठी, एसके राय व गुलरिया चीनी मिल खीरी के मनीष पुरोहित सहित अन्य चीनी मिलों के अधिकारी व किसान मौजूद रहे.

टिशू कल्चर से पुनः वापसी कर रही सीओ 0238 किस्म

स्वस्थ बीज प्रोग्राम के तहत किसानों को बीज प्रबंधन करा कर के सीओ 0238 गन्ने की किस्म टिशू कल्चर के माध्यम से पुनः वापसी कर रही है.

किसान अचल कुमार मिश्रा ने बताया कि एसबीआई, करनाल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. रविंद्र कुमार की देखरेख में सीओ 0238 की टिशू कल्चर पौध रोपित की है. जल्द ही अन्य किसानों के बीच ये उन्नतशील किस्म फिर से धमाल मचाएगी.

गन्ने की बोआई के समय इन बातों का रखें ध्यान

सीओ 0238 के जनक पद्मश्री डा. बक्शी राम ने बताया कि किसानों को गन्ना बोते समय खेत में पाटा नहीं लगाना चाहिए. किसी भी प्रजाति के बीज को बोते समय स्वस्थ बीज का चुनाव कर उस को पहले शोधित अवश्य कर लें. उस के बाद ही बीज की बोआई करें, तो निश्चित तौर पर उत्पादन भी बढ़ेगा.

चने की ‘भारत दाल’ 55 रुपए प्रति किलोग्राम

केंद्र सरकार ने 17 जुलाई, 2023 को चना दाल को ‘भारत दाल’ के ब्रांड नाम के अंतर्गत खुदरा पैक में बिक्री 1 किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दरों पर शुरू की है, जिस से उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर दालें उपलब्ध हो सकें.

यह जानकारी केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी.

भारत दाल का वितरण भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड), राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (एनसीसीएफ), केंद्रीय भंडार और सफल की खुदरा दुकानों के माध्यम से किया जा रहा है. इस व्यवस्था के अंतर्गत चना दाल राज्य सरकारों को उन की कल्याणकारी योजनाओं, पुलिस, कारागारों के अंतर्गत आपूर्ति के लिए और राज्य सरकार नियंत्रित सहकारी समितियों और निगमों के खुदरा दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है. उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर दालें उपलब्ध कराने के लिए सरकार मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के अंतर्गत 5 प्रमुख दालों चना, तुअर, उड़द, मूंग और मसूर का बफर स्टाक रखती है. कीमतों को नियंत्रित करने के लिए बफर से भंडार को कैलिब्रेटेड और लक्षित तरीके से बाजार में जारी किया जाता है.

उपभोक्ताओं के लिए तुअर दाल में मिलिंग के लिए स्टाक की उपलब्धता बढ़ाने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से तुअर का निबटान लक्षित और कैलिब्रेटेड तरीके से चल रहा है. कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग के भंडार लगातार बाजार में जारी किए जाते हैं. बाजार निबटान के अलावा बफर से दालों की आपूर्ति राज्यों को उन की कल्याणकारी योजनाओं और सेना और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को भी की जा रही है.

घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2024 तक ‘मुक्त श्रेणी’ के अंतर्गत रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क 31 मार्च, 2024 तक शून्य कर दिया गया है. सुचारु और निर्बाध आयात की सुविधा के लिए तुअर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क हटा दिया गया है. जमाखोरी को रोकने के लिए 2 जून, 2023 को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत तुअर और उड़द पर 31 अक्तूबर, 2023 तक की अवधि के लिए भंडार की नियंत्रण सीमा लगा दी गई है.

उपभोक्ता कार्य विभाग के औनलाइन भंडार निगरानी पोर्टल के माध्यम से डीलरों, आयातकों, मिल मालिकों और व्यापारियों जैसी संस्थाओं द्वारा रखी गई दालों की लगातार निगरानी की जाती है.

हवाई मार्ग से अमेरिका को ताजा अनार

नई दिल्ली : फलों के निर्यात की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने हवाई मार्ग से अमेरिका को ताजा अनार की पहली खेप का परीक्षण कर निर्यात किया है.

एपीडा ने अनार की जो पहली खेप अमेरिका को निर्यात की है, उस में भारत के राष्ट्रीय पादप संरक्षण संगठन (एनपीपीओ) और अमेरिका की एनिमल एंड प्लांट हैल्थ इंस्‍पेक्‍शन सर्विस (यूएस-एपीएचआईएस), महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड (एमएसएएमबी), आईसीएआर-अनार पर राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र, सोलापुर (एनआरसी-सोलापुर) और अन्य का सहयोग था.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने कहा कि अमेरिका में अनार के निर्यात में वृद्धि से अधिक कीमत प्राप्त होगी और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी. इस से अनार के आयातकों से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है.

अनार का परीक्षण निर्यात एपीडा में पंजीकृत ‘आईएनआई फार्म्स’ द्वारा किया गया था, जो भारत से फलों और सब्जियों के शीर्ष निर्यातकों में से एक है. इस ने किसानों के साथ सीधे काम कर के केले और अनार की मूल्य श्रृंखला बनाई है. एग्रोस्टार समूह के एक अंग के रूप में यह दुनियाभर के 35 से अधिक देशों में निर्यात किए जाने वाले उत्पादों को ध्यान में रखते हुए किसानों को कृषि विज्ञान, कृषि निवेश और औफ टैक की संपूर्ण सेवाएं प्रदान करता है.

चूंकि बाजार के दूरदराज के इलाकों में स्थित होने के कारण लागत ऊंची हो जाती थी. लिहाजा, व्‍या‍पारिक कामकाज शुरू करने में अड़चन होती थी.

अनार के परीक्षण निर्यात से भारतीय निर्यातकों और अमेरिकी आयातकों के बीच क्षमता निर्माण में मदद मिलेगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गुणवत्तापूर्ण फलों का निर्यात किया जाता है.

अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भारतीय अनारों की बनी पहुंच

अमेरिकी बाजारों में भारतीय आमों की स्वीकार्यता से उत्साहित निर्यातकों को उम्मीद है कि अनार भी अमेरिका में एक सफल उत्पाद बन जाएगा. अनार की निर्यात मूल्य श्रृंखला की क्षमता सुनिश्चित करने को मद्देनजर रखते हुए एपीडा राज्य सरकारों के साथ मिल कर ‘अनारनेट’ के तहत खेतों को पंजीकृत करने के लिए नियमित आधार पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है.

एपीडा ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया में उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय अनार की अनुमति देने का मार्ग खोल कर बाजार तक पहुंच हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

Farmingअनार की ‘भगवा’ किस्म की विदेशी बाजारों में भारी मांग

अपनी उच्च एंटीऔक्सीडेंट सामग्री और सुपर फल विशेषताओं के कारण महाराष्ट्र के ‘भगवा’ अनार में पर्याप्त निर्यात क्षमता है. अनार की ‘भगवा’ किस्म की विदेशी बाजारों में काफी मांग है.

महाराष्ट्र का सोलापुर जिला देश से अनार निर्यात में तकरीबन 50 फीसदी योगदान देता है. वर्ष 2022-23 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बंगलादेश, नेपाल, नीदरलैंड, सऊदी अरब, श्रीलंका, थाईलैंड, बहरीन, ओमान सहित विभिन्न देशों में तकरीबन 58.36 मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य के 62,280 मीट्रिक टन अनार का निर्यात किया गया.

भारत बागबानी फसलों का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक देश है. वर्ष 2021-22 में भारत ने बागबानी फसलों का कुल 333.20 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) उत्पादन दर्ज किया, जिस में से फलों और सब्जियों की हिस्सेदारी 90 फीसदी है. वर्ष 2021-22 के दौरान फलों का कुल उत्पादन 107.10 एमएमटी था और अनार का उत्पादन लगभग 3 एमएमटी था.

अनार उत्पादन में भारत दुनियां में सातवें स्थान पर

भारत दुनिया में अनार के उत्पादन में 7वें स्थान पर है और खेती का कुल रकबा तकरीबन 2,75,500 हेक्टेयर है. भारत में प्रमुख अनार उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और आंध्र प्रदेश हैं.

एपीडा ने अनार के निर्यात को बढ़ावा देने और आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं को दूर करने के लिए अनार के लिए निर्यात संवर्धन मंच (ईपीएफ) का गठन किया है. ईपीएफ में वाणिज्य विभाग, कृषि विभाग, राज्य सरकारों, राष्ट्रीय रेफरल प्रयोगशालाओं और उत्पाद के शीर्ष 10 अग्रणी निर्यातकों के प्रतिनिधि शामिल हैं.

एक सतत प्रक्रिया के तहत एपीडा ने उत्पादन से पहले उत्पादन, कटाई के बाद, लौजिस्टिक्स, ब्रांडिंग से ले कर विपणन की गतिविधियों तक अनार मूल्य श्रृंखला की समस्‍याओं को दूर करने के लिए कई पहल की हैं. निजी क्षेत्र में यूरोपीय संघ को निर्यात करने के लिए 250 से अधिक पैक हाउस स्थापित करने के अलावा निर्यात के लिए सामान्य अवसंरचना विकास संवर्द्धन क्षमता और अवसंरचना के तहत राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई है.

एपीडा ने देशप्रधान निर्यात प्रोत्साहन कार्यक्रमों के लिए रणनीति तैयार की है और नए बाजारों में निर्यात क्षमता का भरपूर इस्‍तेमाल करने के लिए यूरोपीय संघ के देशों, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रेताविक्रेता बैठकें आयोजित की हैं.

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी एपीडा द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए की गई विभिन्न पहलों का परिणाम है, जैसे भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी से विभिन्न देशों में बी2बी प्रदर्शनियों का आयोजन और उत्पाद प्रधान और सामान्य विपणन अभियानों के माध्यम से नए संभावित बाजारों की खोज करना.

Farmingसाथ ही, एपीडा ने असम के गुवाहाटी में उत्तरपूर्वी राज्यों से प्राकृतिक, जैविक और जीआई कृषि उत्पादों की निर्यात क्षमता को बढ़ाने पर एक सम्मेलन भी आयोजित किया. सम्मेलन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार संबंध बना कर असम और पड़ोसी राज्यों में उगाए जाने वाले प्राकृतिक, जैविक और जीआई कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है.

केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के सहयोग से एपीडा ने हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेताविक्रेता बैठक की, जिस का उद्देश्य लद्दाख से खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है. केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख और जम्मूकश्मीर के 18 उद्यमियों ने खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों की एक श्रृंखला प्रदर्शित की. इस कार्यक्रम में भारत, अमेरिका, बंगलादेश, ओमान और यूएई के 20 खरीदारों ने भाग लिया.

वनीकरण पर कोयला मंत्रालय का विशेष फोकस

नई दिल्ली : कोयला मंत्रालय के तहत कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) ने देश की बढ़ती हुई ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए न केवल अपने उत्पादन स्तर को बढ़ाया है, बल्कि कोयला क्षेत्रों और उस के आसपास के क्षेत्रों में व्यापक पौधरोपण सहित विभिन्न राहत उपायों को अपना कर देश के पर्यावरण के प्रति अपनी रुचि भी दर्शाई है.

कोयला मंत्रालय के तत्वावधान में कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने वित्त वर्ष 2023-24 में 2,400 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तकरीबन 50 लाख पौधों की रोपाई करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पौधरोपण के इस परिकल्पित लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने ब्लौक पौधरोपण, पथ पौधरोपण, तीन स्तरीय पौधरोपण, उच्च तकनीक खेती और बांस रोपण के माध्यम से अगस्त, 2023 तक 1,117 हेक्टेयर भूमि पर देशी प्रजातियों के तकरीबन 19.5 लाख पौधे लगाए हैं.

कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने वर्ष 2030 तक कोयला क्षेत्रों और उस के आसपास के क्षेत्रों की लगभग 30,000 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में पौधरोपण करने की परिकल्पना की है, जिस से कार्बन सिंक में काफी वृद्धि होगी.

Farmingइतना ही नहीं, कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा पौधरोपण की मियावाकी पद्धति जैसी नवीन पौधरोपण तकनीकों को अपनाया गया है. महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) ने एक हेक्टेयर भूमि में तेजी से बढ़ने वाले लगभग 8,000 पौधे लगा कर इस तरह की पहल की है.

मियावाकी पौधरोपण की एक जापानी तकनीक है, जो निचली भूमि में शीघ्रता से सघन वन का आवरण बनाने के लिए एक सब से प्रभावी पौधरोपण विधि है.

कोयलारहित क्षेत्रों में पौधरोपण किया गया है, जिस में परिवर्तित वन भूमि के साथसाथ गैरवन भूमि भी शामिल है. गैरवन बैकफील्ड और बाहरी ओवरबर्डन डंप पर किया गया पौधरोपण प्रत्यायित प्रतिपूरक वनीकरण (एसीए) के लिए सब से उपयुक्त है, जो वन भूमि के गैरवानिकी उपयोग के लिए अनुमोदन प्राप्त करने के लिए सक्रिय वनीकरण की एक प्रणाली है.

कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम एसीए को बढ़ावा देने और वन मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एसीए को प्रोत्साहन देने और वन मंजूरी में तेजी के लिए भविष्य में प्रतिपूरक वनीकरण के लिए गैरवन वनीकृत भूमि की पहचान करने के लिए व्यापक प्रयास कर रहे हैं.

कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम ने एसीए दिशानिर्देशों के अनुसार प्रतिपूरक वनरोपण के लिए अब तक लगभग 2,838 हेक्टेयर वनरहित और बिना कोयले वाली भूमि की पहचान की है.
ये प्रयास अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण व भारत की 2070 तक नेट जीरो पर पहुंचने के दीर्घकालिक लक्ष्य के माध्यम से कार्बनडाईऔक्साइड का 2.5 से 3 बिलियन टन के अतिरिक्त कार्बन सिंक का सृजन करने के लिए भारत की एनडीसी प्रतिबद्धता की दिशा में सहायता प्रदान करते हैं.

क्षतिग्रस्त भूमि की बहाली के लिए वनीकरण एक महत्वपूर्ण साधन

इस के अलावा कोयला खनन और अन्य मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित भूमि सहित क्षतिग्रस्त भूमि की बहाली के लिए वनीकरण एक महत्वपूर्ण साधन है. यह मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है, जलवायु को स्थिर करता है, वन्य जीवन का संरक्षण करता है और हवापानी की गुणवत्ता को बढ़ाता है.

वनीकरण का वैश्विक प्रभाव कार्बन पृथक्करण और क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करता है. इस के प्रमाणित लाभ इसे निम्नीकृत परिदृश्यों के स्थायी पुनर्वास को प्राप्त करने और पर्यावरणीय कल्याण को बढ़ावा देने में एक आवश्यक उपाय बनाते हैं.

सहकारी समितियों के डिजिटल पोर्टल की शुरुआत

पुणे : केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र के पुणे में सहकारी समितियों के केंद्रीय पंजीयक (सीआरसीएस) कार्यालय के डिजिटल पोर्टल का शुभारंभ किया.

इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और केंद्रीय सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

सहकारी समितियों के पंजीकरण और संशोधन से जुड़ी सेवाएं हुईं आसान

अपने संबोधन में गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता के संस्कार महाराष्ट्र से ही पूरे देश में फैले और यहीं का कोऔपरेटिव मौडल देशभर में सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि आज अगर सहकारिता आंदोलन के विकास की दिशा देखते हैं, तो गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक यानी पुराने मुंबई राज्य के हिस्सों में ही सहकारिता आंदोलन आगे बढ़ा है और पनपा है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सहकारी समितियों के केंद्रीय पंजीयक कार्यालय को पूरी तरह डिजिटल करने का काम महाराष्ट्र के पुणे में शुरू करना पूरी तरह से प्रासंगिक है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव को संचालित करने वाले सेंट्रल रजिस्ट्रार (सीआरसीएस) कार्यालय का काम पूरी तरह से डिजिटल हो रहा है. सहकारी समितियों के सभी काम जैसे नई ब्रांच खोलना, दूसरे राज्य में विस्तार करना या आडिट करना, ये सभी अब औनलाइन ही हो जाएंगे. केंद्रीय पंजीयक कार्यालय में रजिस्ट्रेशन, बायलौज का रजिस्ट्रेशन, उन में संशोधन, आडिटिंग, केंद्रीय पंजीयक द्वारा आडिटिंग की मौनीटरिंग, चुनाव की पूरी प्रक्रिया, एचआर का विकास, विजिलेंस और प्रशिक्षण आदि सभी गतिविधियों को समाहित कर इस पोर्टल को बनाया गया है और ये एक प्रकार से संपूर्ण पोर्टल है.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकार से समृद्धि का विचार बहुत गहरे मंथन के साथ रखा है. उन्होंनेपिछले 9 सालों में देश के करोड़ों गरीबों को जीवन की आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम किया है.

मंत्री अमित शाह ने यह भी कहा कि गरीबों को घर, बिजली, शुद्ध पीने का पानी, गैस सिलिंडर, शौचालय, 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य का खर्चा और प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम अनाज मुफ्त देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि देश के करोड़ों गरीब व्यक्ति देश के अर्थतंत्र के साथ नहीं जुड़े हुए थे, लेकिन नरेंद्र मोदी ने उन की आधारभूत जरूरतों को पूरा कर उन के बैंक खाते खोल कर उन्हें देश के अर्थतंत्र के साथ जोड़ने का काम किया.

उन्होंने आगे कहा कि देश के गरीब को उद्यम के लिए अगर पूंजी की कमी है, तो उस के लिए सहकारिता आंदोलन एक उत्तम रास्ता है, इस के माध्यम से छोटी पूंजी वाले अनेक लोग इकट्ठा हो कर बड़ा उद्यम स्थापित कर सकते हैं.

सहकारिता के जरीए जीवनस्तर में आएगा बदलाव

मंत्री अमित शाह ने कहा कि सहकार से समृद्धि का मतलब है छोटे से छोटे व्यक्ति को अपने जीवन को उन्नत बनाने, उसे देश की आर्थिक प्रगति में योगदान देने के लिए एक मंच देना और सहकारिता के माध्यम से उस के जीवनस्तर को ऊपर उठाना है.

उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की.

मंत्री अमित शाह यहीं नहीं रुके और उन्होंने कहा कि शुरू हुए पोर्टल का फायदा देश की 1,555 बहुराज्यीय सहकारी समितियों को मिलेगा और इन में से 42 फीसदी समितियां केवल महाराष्ट्र में हैं, ये बताता है कि यहां सहकारिता आंदोलन कितना मजबूत है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इन समितियों के सभी काम अब इस पोर्टल के माध्यम से हो सकेंगे. इस के बाद इसी पैटर्न पर राज्यों की सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के कार्यालयों का भी कंप्यूटरीकरण करने जा रहे हैं, जिस से देशभर की 8 लाख कोऔपरेटिव सोसायटी के साथ संवाद सुगम बन जाएगा.

गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता आंदोलन आधुनिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना आगे नहीं बढ़ सकता.

उन्होंने आगे कहा कि सहकारिता आंदोलन की स्वीकृति बढ़ाने के लिए पारदर्शिता बढ़ानी होगी और जवाबदेही तय करनी होगी. इस प्रकार की पारदर्शी व्यवस्था ही देश के करोड़ों लोगों को जोड़ सकती है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत ने अमूल, इफको व कृभको जैसी सहकारिता की अनेक सफलता की कहानियां दुनिया के सामने रखी हैं, अब हमें इसे संजो कर सहकारिता के आंदोलन को नई गति देनी है.

Farmingसहकारी समितियों की जवाबदेही तय होगी

मंत्री अमित अमित शाह ने कहा कि हाल ही में मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी कानून में भी संशोधन किया गया है. इस कानून के तहत हम ने निर्वाचन सुधार किए हैं, कोऔपरेटिव गवर्नेंस के लिए कई नए आयाम तय किए हैं, फाइनेंशियल डिसिप्लिन और फंड्स की पूर्ति के लिए व्यवस्थाएं, व्यापार की सुगमता के लिए व्यवस्था, निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग जैसी एक स्वतंत्र निकाय की व्यवस्था की है, बोर्ड को चलाने के नियमों में बदलाव और पारदर्शिता लाने के लिए बोर्ड औफ डायरेक्टर्स और कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की हैं. मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसाइटी ऐक्ट, 2022 से सहकारी समितियों की जवाबदेही तय होगी और भाईभतीजावाद समाप्त होगा, जिस से युवा टैलेंट सहकारी आंदोलन से जुड़ पाएंगे.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और सतत मार्गदर्शन में पीएसीएस को पारदर्शी बनाने का निर्णय लिया गया है.

उन्होंने आगे कहा कि मोदी सरकार ने अगले 5 सालों में देशभर में 3 लाख नए पीएसीएस बना कर सहकारिता आंदोलन को हर गांव तक पहुंचाने का निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा कि पिछले 70 सालों में 93,000 पैक्स बने हैं और अगले 5 सालों में देश में 3 लाख नए पैक्स बनाए जाएंगे.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने देश के सभी पैक्स के कंप्यूटराइजेशन का काम समाप्त कर दिया है. पीएसीएस अब कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) हैं, जो कई प्रकार की
गतिविधियां कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विश्व की सब से बड़ी और मल्टीडायमेंशनल भंडारण योजना को स्वीकृति दी है. इस योजना का महाराष्ट्र को सब से अधिक फायदा लेना चाहिए और यहां एक भी तहसील ऐसी नहीं रहनी चाहिए, जहां कोऔपरेटिव की भंडारण व्यवस्था ना हो.

उन्होंने कहा कि अब कोऔपरेटिव्स को जीईएम प्लेटफार्म का भी फायदा मिल रहा है. नरेंद्र मोदी के सहकार से समृद्धि के विजन के तहत इस डिजिटल पोर्टल का शुभारंभ कर सहकारिता मंत्रालय ने एक नई शुरुआत की है.

किसानों के मुनाफे पर सरकार टैक्स नहीं लगा सकती

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बनाने का 95 फीसदी काम पूरा हो चुका है. हम एक नई कोऔपरेटिव पौलिसी भी ले कर आ रहे हैं, हम कोऔपरेटिव यूनिवर्सिटी भी बना रहे हैं, जिस के माध्यम से कोऔपरेटिव और इस के सभी ऐक्सटेंशंस की तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था भी इस के साथ जुड़ जाएगी.

उन्होंने आगे कहा कि पी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 नई मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी बनाने का काम किया है. बहुराज्यीय और्गेनिक प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग के लिए एक सोसायटी बनाई है, जो प्राकृतिक खेती के उत्पादों की मार्केटिंग भारत ब्रांड के साथ कर इस का पूरा मुनाफा किसान के खाते में भेजने का काम सुनिश्चित करेगी. इसी प्रकार, छोटे किसान बीज उत्पादन नहीं कर पाते हैं, लेकिन अब छोटे किसान भी, जिन के पास कम भूमि है, बीज उत्पादन कर सकेंगे और ये सोसायटी उन के बीज ले कर उसे सर्टिफिकेट देगी और अपने ब्रांड के साथ भारत और विश्व के बाजार में बेचेगी.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इन तीनों मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी के माध्यम से देशभर के 10 करोड़ से ज्यादा किसानों के जीवनस्तर में सुधार आएगा और ये सोसायटी आने वाले दिनों में देश के करोड़ों किसानों की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेंगी.

किसानों पर टैक्स नहीं

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि पहले कोऔपरेटिव के साथ सौतेला व्यवहार होता था, लेकिन कोऔपरेटिव के साथ होने वाले सौतेला व्यवहार खत्म हो गया है.

उन्होंने आगे कहा कि आज कारपोरेट के लिए जो व्यवस्था है, वो सभी कोऔपरेटिव्स के लिए भी हैं.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनकम टैक्स के दोहरे मापदंड को भी समाप्त कर दिया गया है. कई सालों से चली आ रही चीनी मिलों की समस्या का भी समाधान सरकार ने त्वरित रूप से कर दिया है.

उन्होंने कहा कि कोऔपरेटिव का कंसेप्ट है कि जो मुनाफा किसान का है, उस पर सरकार टैक्स नहीं लगा सकती. इस सिद्धांत को भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने स्वीकार किया, जो पूरे सहकारिता आंदोलन के लिए बहुत बड़ी बात है, जिस का बहुत बड़ा फायदा आने वाले दिनों में इस क्षेत्र को मिलेगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि अर्बन कोऔपरेटिव के लिए हाउसिंग फाइनेंस की एक सीमा थी, इसे दोगुना कर दिया गया है. ग्रामीण सहकारी बैंकों को रियल ऐस्टेट के लिए लोन देने की भी परमिशन दे दी गई है. डोरस्टेप बैंकिंग के लिए अर्बन कोऔपरेटिव बैंक के पास परमिशन नहीं थी, वह भी दे दी गई है. अर्बन कोऔपरेटिव बैंक अब नई शाखाएं भी खोल सकते हैं, वन टाइम सेटलमेंट अर्बन कोऔपरेटिव बैंकों के लिए प्रतिबंधित था, इस के लिए भी हम ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के बराबर ला कर अर्बन कोऔपरेटिव बैंकों को अधिकार दे दिए हैं.

अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 ट्रिलियन डालर इकोनौमी बनाने और भारत की इकोनौमी को विश्व की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है, हमें इस में कोऔपरेटिव सैक्टर का योगदान क्या हो, इस का एक लक्ष्य तय करना चाहिए.

चीनी की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में रिकौर्ड बढ़ोतरी

नई दिल्ली : चीनी की घरेलू कीमतों में तकरीबन 3 फीसदी की मामूली मुद्रास्फीति है, जो गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी में वृद्धि के अनुरूप है.

वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमतें भारत की तुलना में तकरीबन 50 फीसदी अधिक हैं. देश में चीनी की औसत खुदरा कीमत तकरीबन 43 रुपए प्रति किलोग्राम है और इस के सीमित दायरे में ही बने रहने की संभावना है.

पिछले 10 वर्षों में चीनी की कीमतों में देश में 2 फीसदी से भी कम की वार्षिक मुद्रास्फीति रही है. व्यावहारिक सरकारी नीतिगत हस्‍तक्षेपों के परिणामस्वरूप चीनी की घरेलू कीमतों को थोड़ी वृद्धि के साथ स्थिर रखा गया है.

ठीक समय पर सरकार द्वारा कदम उठाए जाने से चीनी सैक्टर खतरे के बाहर आ गया है. चीनी सैक्टर के मजबूत बुनियादी वजहों और देश में गन्ने व चीनी के पर्याप्त से अधिक उत्पादन ने यह सुनिश्चित किया है कि चीनी तक प्रत्येक भारतीय उपभोक्ता की पहुंच सरल बनी रहे.

चालू चीनी सीजन (अक्तूबरसितंबर) 2022-23 के दौरान भारत में इथेनाल उत्पादन के लिए तकरीबन 43 एलएमटी के डायवर्जन के बाद 330 एलएमटी चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है. इस प्रकार देश में सुक्रोज का कुल उत्पादन तकरीबन 373 एलएमटी होगा, जो कि पिछले 5 वर्षों में दूसरा सब से अधिक है. इस के अतिरिक्त पिछले 10 वर्षों में चीनी के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

बहरहाल, उपभोग उसी अनुपात में नहीं बढ़ा है, जिस के कारण किसी भी अप्रत्याशित स्थिति के लिए पर्याप्त स्टाक की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है.

जुलाई के अंत में भारत के पास तकरीबन 108 एलएमटी का चीनी का स्टाक है, जो वर्ष 2022-23 के चालू चीनी सीजन के बचे हुए महीनों के लिए और सीजन के अंत में लगभग 62 एलएमटी के इष्टतम स्टाक के लिए भी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. इस प्रकार घरेलू उपभोक्ताओं के लिए पूरे वर्ष उचित मूल्य पर पर्याप्त चीनी उपलब्ध है.

इस के अतिरिक्त उचित और लाभकारी मूल्य के साथसाथ चीनी मिलों द्वारा समय पर भुगतान सुनिश्चित करने और चीनी मिलों द्वारा समय पर उन के भुगतान के जरीए गन्ना किसानों के हितों पर भी ध्‍यान दिया जा रहा है. वर्ष 2021-22 तक के चीनी सीजन के लिए गन्ना किसानों का 99.9 फीसदी गन्ना बकाया चीनी मिलों द्वारा पहले ही चुकाया जा चुका है. यहां तक कि वर्ष 2022-23 के चालू चीनी सीजन के लिए भी, 1.05 लाख करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान के साथ, अब तक लगभग 93 फीसदी गन्‍ने का बकाया भुगतान पहले ही चुकाया जा चुका है.

इस प्रकार भारत सरकार द्वारा अपनी उचित नीतियों, स्थिर कीमतों और किसानों को गन्ना बकाया का समय पर भुगतान के साथ चीनी सैक्टर में सुधार क रके सभी 3 प्रमुख हितधारकों- उपभोक्ताओं, किसानों एवं चीनी मिलों के हितों की रक्षा की गई है.