लखनऊ : 25 अक्तूबर, 2023. उत्तर प्रदेश में अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के अंतर्गत निरंतर मोटे अनाजों को+ प्रोत्साहित कर इसे जरीया बनाया गया है. महोत्सव में एक और होटल व रेस्तरां उद्योगों के जरीए मिलेट्स की संभावनाओं पर जोर है.
3 श्रेणियों में मिलेट्स उत्पाद की बिखरेगी खुशबू
कृषि विभाग की देखरेख में होने वाले श्री अन्न महोत्सव में होटल व रेस्तरां के प्रतिनिधि इस उद्योग में मिलेट्स के उत्पादों की संभावनाओं पर विचार रखेंगे. श्री अन्न पकवान प्रतियोगिता में आमजन के लिए बाजरा, कुट्टू, रामदाना, ज्वार, कोदो, सावां आदि मिलेट्स व्यंजन भी रहेंगे.
कार्यक्रम को 3 श्रेणियों में बांटा गया है. मिलेट्स के रेडी टू ईट उत्पाद, लाइव काउंटर्स और बेकरी 3 श्रेणियों में प्रदर्शन होगा. फिलहाल इस में 25 स्टाल प्रतिभागियों का पंजीकरण किया गया है.
Shree Anna
मिलेट्स के प्रोत्साहन के लिए अनूठी पहल
मिलेट्स के प्रोत्साहन के लिए योगी सरकार की तरफ से इस तरह की अनूठी पहल की गई है. कृषि कुंभ 2.0 के पहले चटोरी गली में न सिर्फ यह आयोजन किया जाएगा, बल्कि श्री अन्न पकवान प्रतियोगिता में सर्वेश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले होटल व रेस्तरां को पुरस्कृत भी किया जाएगा. इस का उद्देश्य श्री अन्न रेसिपी विकास व उपभोक्ता जागरूकता से जुड़ा है. कृषि विभाग के साथ लखनऊ विकास प्राधिकरण की भी इस में सहभागिता रहेगी.
देश के कम पढ़ेलिखे किसानों ने अकसर खेती की जरूरतों के चलते कई नवाचारों व आविष्कारों को जन्म दिया है. ये आविष्कार इन किसानों ने न भारीभरकम संस्थानों में डिगरी हासिल कर प्राप्त की है और न ही किसी विशेषज्ञ की देखरेख व सलाह से, बल्कि खेती के दौरान उपजी समस्याओं से निबटने के लिए कम संसाधनों से ही कई बडे आविष्कार कर डाले हैं. जो एयरकंडीशन कमरों में बैठे हुए बड़े बड़ेबडे कृषि विज्ञानी व तकनीकी विषेषज्ञ नहीं कर पाते हैं.
जिन किसानों के नवाचार आविष्कार को पहचान मिल गई, वे आज मजे की जिंदगी जी रहे हैं और जिन किसानों के आविष्कारों को पहचान नहीं मिल पाती है, वे आविष्कार सिर्फ उन्हीं तक सीमित रह जाते हैं.
ऐसे में गुजरात के अहमदाबाद में स्थित राष्ट्रीय नवप्रर्वतन संस्थान न केवल किसानों के परंपरागत ज्ञान, नवाचार व आविष्कारों से पहचान दिलाता है, बल्कि किसानों के आविष्कारों को पेटेंट कराने से ले कर उस को व्यायवसायिक स्तर पर शुरू करने के लिए माली मदद भी करता है.
इस संस्थान ने खेती के क्षेत्र में न केवल कई लाभदायक आविष्कारों को पहचान दिलाने मे मदद की है, बल्कि किसानों के इन आविष्कारों को बढावा देने में मदद की है.
अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान की स्थापना वर्ष 2000 में इस उद्देश्य से ही की गई कि जिस में बिना किसी बाहरी मदद के जमीनी स्तर कृषि, ग्रामीण विकास, महिला बाल अधिकार, वानिकी, हर्बल आदि के क्षेत्र में कम पढ़ाई व बिना कौशल जानकारी लिए ही ऐसे आविष्कार किए हों, जो किसी भले के लिए काम मे लाई जा सके.
अभी तक इस संस्थान के डेटाबेस में देश के 608 से अधिक जिलों से 3,22,000 से अधिक विचार (आइडिया), नवप्रवर्तन एवं पारंपरिक ज्ञान व्यवहार शामिल किए गए हैं.
शोध एवं विकास संस्थानों के साथ सहयोग द्वारा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान कोशिश करता है कि इन नवप्रवर्तनों का प्रमाणीकरण हो एवं इन्हें मूल्यवर्धित प्रौद्योगिकियों/उत्पादों में तबदील किया जाए.
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान ने नवप्रवर्तकों एवं विशिष्ट पारंपरिक ज्ञानधारकों की ओर से 1191 से अधिक पेटेंट फाइल किए हैं, जिन में से भारत में 72 एवं अमेरिका में 5 स्वीकृत भी हो चुके हैं.
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान ने सूक्ष्म उद्यम नवप्रवर्तन निधि (एमवीआईएफ) के माध्यम से 236 परियोजनाओं को जोखिम पूंजी उपलब्ध कराई है, जो उद्भवन के विभिन्न चरणों में हैं. राष्ट्रीय नव प्रवर्तन संस्थान को सभी 6 महाद्वीपों में विभिन्न देशों में उत्पादों के वाणिज्यीकरण में सफलता मिली है. सहयोगी एजेंसियों की मदद से लाइसेंस प्राप्तकर्ताओं के साथ 109 प्रौद्योगिकियों के लाइसेंसीकरण को अंतिम रूप दिया गया है.
प्रतिष्ठान द्वारा अभी तक कृषि तकनीकी, बीज, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण, उपभोक्ता, हर्बल प्रोडक्ट्स बांस प्रोमेलिंग मशीन, हैंडलूम और टैक्सटाइल कृषि आधारित फूड प्रोसैसिंग मशीन, सामान्य उपयोग की मषीनों, डेरी मशीनों सहित तमाम आविष्कारों को प्रोत्साहित किया गया है.
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान द्वारा सब से ज्यादा खेतीबारी, बागबानी, कृषि यंत्र, बीज, पेड़पौधों से संबंधित नवाचारों, खोजों व आविष्कारों को चिह्नित कर उन्हें सूचीबद्ध किया गया है, जो न केवल कृषिगत कामों में उपयोगी है, बल्कि बाजार मूल्य से बहुत सस्ती दर पर आविष्कार खोजकर्ता द्वारा किसानों को उपलब्ध कराई जाती है. आविष्कारों को उस के खोज को लघु उद्योग के रूप में स्थापित करने में प्रतिष्ठान खोजकर्ता और आविष्कारक को आर्थिक सहयोग भी मुहैया कराता है.
खेतीबारी की खोजों से राह हुई आसान
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने खोजकर्ताओं को न केवल सहायता प्रदान की है, बल्कि उसे सर्वसुलभ बनाने में मदद भी की है. प्रतिष्ठान ने ज्यादातर किसानों की खोजों को प्रमाणित करने में मदद की है, जिस में से कुछ का परिचय स्कूल लेख में दिया जा रहा है.
काली मिर्च तोड़ने का उपकरण
केरल के पलक्कड के रहने वाले प्रतीक सी 10वीं तक पढ़े एक साधारण मैकेनिक हैं. उन्होंने रेत और पत्थर अलग करने की मशीन बनाने पर काम किया था. इसी से एक किसान द्वारा उन से काली मिर्च तोड़ने की मशीन बनाने का आग्रह किया गया.
प्रतीक सी ने काली मिर्च तोड़ने की सस्ती और सुलभ मशीन बनाने का संकल्प ले कर काम शुरू किया, क्योंकि इस से पहले काली मिर्च या तो हाथ से तोड़ी जाती थी या साधारण चिमटे से. इस प्रक्रिया में या तो काली मिर्च गिर जाती थी, उस का फूल क्षतिग्रस्त हो जाता था.
इस नवप्रवर्तक ने इन समस्याओं को ध्यान में रख कर एक ऐसी मशीन बनाई, जिस में काली मिर्च उपकरण के कील या दांतों में जा कर फंस जाती है और कप में जमा होती जाती है. इस मशीन के कप की त्रिकोणीय आकृति बिना अधिक श्रम के मिर्च तोड़ने में मदद करती है. इस मशीन की कीमत प्रतीक सी ने मात्र पैकेजिंग चार्ज सहित 250 रुपए रखी है.
गन्ने की कली से गन्ने अलग करने की मशीन
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के रहने वाले रोशन लाल विश्वकर्मा ने गन्ने में बोआई के दौरान गन्ने की बरबादी से घाटे से उबरने व समय और पैसे की बचत को ले कर गन्ने से उस की कलियों यानी आंख अलग करने की मशीन तैयार की है, जो न केवल कलियों को गन्ने से अलग करती है, बल्कि गन्ने को चीनी मिल पर भेजे जाने लायक सुरक्षित भी रखती है. इस मशीन की कीमत उन्होंने पैकेजिंग सहित मात्र 200 रुपए रखी है.
नारियल के पेड़ पर चढ़ने की मशीन
Innovations
नारियल के किसानों को अकसर नारियल के पेड़ पर चढ़ने में जोखिम का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा नारियल तुड़ाई में समय भी अधिक लगता है. इस समस्या को देखते हुए तमिलनाडु के कोयंबटूर के डीएन वेंकटेस, जो बेहद कम पढ़ेलिखे होने के बावजूद ऐसी मशीन विकसित की, जो नारियल के पेड़ पर चढ़ाई में सुरक्षा की दृष्टि से अच्छी है, बल्कि कम समय में ज्यादा तुड़ाई की जा सकती है.
डीएन वेंकटेस ने इस मशीन को 2 मौडल में बनाया है, जिस मौडल-1 की कीमत 7,700 रुपए और दूसरे मौडल की कीमत 9,300 रुपए रखी है.
बांस की फट्टी बनाने की मशीन
अकसर बांस की कमठी या फट्टी बनाने वाले जो अगरबत्ती में प्रयोग के लिए पट्टियां तैयार करते हैं, उन्हें हाथ से पट्टियां छीलने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. ऐसे में गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले परेश पांचाल ने बांस की फट्टी छीलने की ऐसी मशीन विकसित की है, जो न केवल समय की बचत करती है, बल्कि श्रम और नुकसान से भी बचाती है. इन्होंने इस की कीमत 37,200 रुपए रखी है.
हलदी कुटाई मशीन (हलदी हार्वेस्टर)
तमिलनाडु के डरोडे के रहने वाले पी. रामाराजू अपने बचपन से खेतीबारी के पेशे में हैं. उन्हें अकसर हलदी की फसल कटाई में अधिक श्रम करना पड़ता था. साथ ही, खुदाई के दौरान हलदी की गांठों को क्षति भी पहुंचती. इस समस्या से निबटने के लिए उन्होंने साल 2009 में हलदी कटाई की एक मशीन तैयार की, जिस में सुधार करते हुए उसे साल 2011 में अंतिम रूप दिया. यह मशीन इंजन से चलती है, जिस की कीमत उन्होंने 3,500 रुपए रखी है.
इस तरह के तमाम नवाचारों को न केवल राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने पुरस्कृत किया, बल्कि उसे पेंटेट करवाने में मदद करने के साथसाथ लघु उद्योग के रूप में स्थापित करवाने में भी मदद की. अगर आप के आसपास खेतीबारी, बागबानी, नए बीज आदि से संबंधित कोई भी व्यक्ति जो कम पढ़ालिखा हो और उस की खोज मौलिक हो, तो आप भी उसे राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान में आवेदन करने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं और आप उस के आवेदन प्रक्रिया में मदद भी कर सकते हैं.
आवेदन फार्म या तो सादे पेज पर पूर्व आविष्कार/ खोज के पूर्व विवरण सहित या प्रतिष्ठान की वैबसाइट https://nif.org.in/ से फार्म डाउनलोड कर भिजवाने में मदद कर सकते हैं.
आवेदनपत्र भेजने का पता है – सेटेलाइट कौम्प्लेक्स, जोधपुर, रेकरा निकट मानसी क्रासिंग, अहमदाबाद, गुजरात पिन कोड- 380015 है. ईमेल – info@nifindia.org पर भी आवेदन भेज सकते हैं
नई दिल्ली : 18 अक्तूबर 2023. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2022-23 के लिए मुख्य फसलों के उत्पादन के अंतिम अनुमान जारी कर दिए हैं. इस के अनुसार देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकौर्ड 3296.87 लाख टन अनुमानित है, जो 2021-22 के 3156.16 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 140.71 लाख टन अधिक है. इस के अलावा साल 2022-23 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन गत 5 वर्षों (2017-18 से 2021-22) के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 308.69 लाख टन अधिक है.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि हमारे किसान लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं कृषि वैज्ञानिक व संस्थान भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि मंत्रालय द्वारा योजनाओं व कार्यक्रमों का सुचारु रूप से क्रियान्वयन हो रहा है. इस तरह सब के प्रयासों से कृषि क्षेत्र में रिकौर्ड खाद्यान्न उत्पादन सहित बेहतर नतीजे परिलक्षित हो रहे हैं.
अंतिम अनुमान के अनुसार, 2022-23 के दौरान मुख्य फसलों का उत्पादन इस प्रकार है :
खाद्यान्न – 3296.87 लाख टन
चावल – 1357.55 लाख टन
गेहूं – 1105.54 लाख टन
पोषक/मोटे अनाज – 573.19 लाख टन
मक्का – 380.85 लाख टन
दलहन – 260.58 लाख टन
तूर- 33.12 लाख टन
चना – 122.67 लाख टन
तिलहन – 413.55 लाख टन
मूंगफली– 102.97 लाख टन
सोयाबीन– 149.85 लाख टन
रेपसीड एवं सरसों – 126.43 लाख टन
गन्ना – 4905.33 लाख टन
कपास – 336.60 लाख गांठें (प्रति 170 किलोग्राम)
पटसन एवं मेस्टा– 93.92 लाख गांठ (प्रति 180 किलोग्राम)
वर्ष 2022-23 के दौरान चावल का कुल उत्पादन रिकौर्ड 1357.55 लाख टन अनुमानित है. यह पिछले वर्ष के 1294.71 लाख टन चावल उत्पादन से 62.84 लाख टन एवं विगत 5 वर्षों के 1203.90 लाख टन औसत उत्पादन से 153.65 लाख टन अधिक है.
Food Grain
वर्ष 2022-23 के दौरान गेहूं का कुल उत्पादन रिकौर्ड 1105.54 लाख टन अनुमानित है. यह पिछले वर्ष के 1077.42 लाख टन गेहूं उत्पादन से 28.12 लाख टन एवं 1057.31 लाख टन औसत गेहूं उत्पादन की तुलना में 48.23 लाख टन अधिक है.
श्री अन्न (पोषक/मोटे अनाजों) का उत्पादन 573.19 लाख टन अनुमानित है, जो 2021-22 के दौरान प्राप्त 511.01 लाख टन उत्पादन की तुलना में 62.18 लाख टन अधिक है. इस के अलावा यह औसत उत्पादन से भी 92.79 लाख टन अधिक है. श्री अन्न का उत्पादन 173.20 लाख टन अनुमानित है.
साल 2022-23 के दौरान कुल दलहन उत्पादन 260.58 लाख टन अनुमानित है, जो विगत 5 वर्षों के 246.56 लाख टन औसत दलहन उत्पादन की तुलना में 14.02 लाख टन अधिक है.
साल 2022-23 के दौरान देश में तिलहन उत्पादन रिकौर्ड 413.55 लाख टन अनुमानित है, जो साल 2021-22 के दौरान उत्पादन की तुलना में 33.92 लाख टन अधिक है. इस के अलावा साल 2022-23 के दौरान तिलहनों का उत्पादन 340.22 लाख टन औसत तिलहन उत्पादन की तुलना में 73.33 लाख टन अधिक है.
साल 2022-23 के दौरान गन्ना उत्पादन 4905.33 लाख टन अनुमानित है. साल 2022-23 के दौरान गन्ने का उत्पादन पिछले वर्ष के 4394.25 लाख टन गन्ना उत्पादन से 511.08 लाख टन अधिक है.
कपास का उत्पादन 336.60 लाख गांठ (प्रति 170 किग्रा की गांठ) अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के कपास उत्पादन की तुलना में 25.42 लाख गांठें अधिक है. पटसन एवं मेस्ता का उत्पादन 93.92लाख गांठ (प्रति 180 किग्रा की गांठ) अनुमानित है.
नई दिल्ली :18 अक्तूबर, 2023. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में विपणन सीजन 2024-25 के लिए सभी जरूरी रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में खासी बढ़ोतरी की गई है.
मंजूरी दिए जाने पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार के इस फैसले ने किसान कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को फिर सिद्ध किया है.
मोदी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए गत 9 साल से ज्यादा के समय में एक के बाद एक अनेक कल्याणकारी निर्णय लिए हैं, कई योजनाएं-कार्यक्रम सृजित किए, जिन का बेहतर क्रियान्वयन भी हो रहा है.
केंद्र सरकार ने विपणन सीजन 2024-25 के लिए रबी फसलों की एमएसपी में वृद्धि की है, ताकि उत्पादक किसानों को उन की उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जा सके.
एमएसपी में सब से ज्यादा बढ़ोतरी दाल (मसूर) के लिए 425 रुपए प्रति क्विंटल, रेपसीड-सरसों के लिए 200 रुपए प्रति क्विंटल की मंजूरी दी गई है. गेहूं व कुसुम, हरेक के लिए 150 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को मंजूरी दी गई है. जौ व चने के लिए क्रमश: 115 रुपए प्रति क्विंटल और 105 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को मंजूरी दी गई है.
MSP
विपणन सीजन 2024-25 के लिए अनिवार्य रबी फसलों की एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिस में एमएसपी को अ.भा. भारित औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर निर्धारित करने की बात कही गई थी. अ.भा. भारित औसत उत्पादन लागत पर अपेक्षित लाभ गेहूं के लिए 102 फीसदी, रेपसीड-सरसों के लिए 98 फीसदी, दाल के लिए 89 फीसदी, चने के लिए 60 फीसदी, जौ के लिए 60 फीसदी व कुसुम के लिए 52 फीसदी है.
रबी फसलों की इस बढ़ी हुई एमएसपी से किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित होगा और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन भी मिलेगा.
सरकार खाद्य सुरक्षा बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि करने व आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन, दलहन और श्री अन्न/मोटे अनाजों की उपज बढ़ाने के क्रम में फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है.
MSP
मूल्य नीति के अलावा, सरकार ने वित्तीय सहायता प्रदान करने व तिलहन व दलहन की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) और राष्ट्रीय तिलहन और औयल पाम मिशन (एनएमओओपी) जैसी विभिन्न पहलें की हैं. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि व 10 हजार नए एफपीओ बनाने की महत्वपूर्ण योजनाओं से भी किसानों को सीधा फायदा पहुंच रहा है.
इस के अतिरिक्त देशभर में हरेक किसान तक किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने किसान ऋण पोर्टल (केआरपी), केसीसी घरघर अभियान और मौसम सूचना नेटवर्क डेटा प्रणाली (विंड्स) का शुभारंभ किया है. विंड्स का उद्देश्य किसानों को अपनी फसल के संबंध में निर्णय लेने में सशक्त बनाने के लिए मौसम की समय पर व सटीक जानकारी प्रदान करना है.
इन पहलों का लक्ष्य कृषि में क्रांति लाना, वित्तीय समावेश का विस्तार करना, डेटा उपयोग को अधिकतम करना व किसानों के जीवन को बेहतर बनाना है.
खेत में पराली जलाने से जमीन में मौजूद ऐसे मित्र कीट, जो फसल पैदावार बढ़ाने में मददगार हैं, वे जीवजंतु, जीवाणु आदि भी जल कर मर जाते हैं. जिस से जमीन के जीवांश व पोषक तत्वों के जलने से खेत की उर्वराशक्ति कमजोर हो जाती है और फसल पैदावार कम हो जाती है, इसलिए धान की पराली जलाएं नहीं, बल्कि उस का उपयोग करें.
इस के अलावा आजकल अनेक आधुनिक मशीनें, जैसे हैप्पी सीडर, सुपरसीडर, मल्चर, वेलरचापर आदि का प्रयोग किया जा सकता है. इस तरह के कृषि यंत्र पराली को जमीन की मिट्टी में मिला कर खेत में कार्बन की मात्रा बढ़ाने के साथसाथ जल संरक्षण की क्षमता को भी बढ़ाते हैं.
मशरूम उत्पादन में सहायक पुआल
धान के पुआल का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए काफी लाभदायक है. एक क्विंटल पुआल की कुट्टी से 10 किलोग्राम मशरूम उत्पादन होता है.
चारा व खाद में होता है इस्तेमाल
धान का पुआल पशुओं को चारे के रूप में अन्य चारों के साथ मिला कर खिलाया जाता है. खेत के किनारे एक गड्ढा खोद कर उस में पराली डाल कर खाद बनाई जा सकती है.
Parali
पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली ने 20 रुपए की कीमत वाले 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. 4 कैप्सूल से छिड़काव के लिए 25 लिटर पानी का घोल बनाया जा सकता है और एक हेक्टेयर में इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. सब से पहले 5 लिटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालना है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम चने का बेसन मिला कर कैप्सूल घोलना है. इस के बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखना होगा, जिस के बाद पराली पर छिड़काव के लिए पदार्थ तैयार हो जाता है. इस घोल को जब पराली पर छिड़का जाता है, तो 15 से 20 दिन के अंदर पराली गलनी शुरू हो जाती है और किसान अगली फसल की बोआई आसानी से कर सकते हैं, आगे चल कर यह पराली पूरी तरह गल कर खाद में बदल जाती है और खेती में फायदा देती है. एक हेक्टेयर खेत में छिड़काव के लिए 25 लिटर बायोडीकंपोजर के साथ 475 लिटर पानी मिलाया जाता है.
किसी भी फसल की कटाई के बाद ही छिड़काव किया जा सकता है. इस कैप्सूल से हर तरह की फसल की पराली खाद में बदल जाती है और अगली फसल में कोई दिक्कत भी नहीं आती है.
ये कैप्सूल 5 जीवाणुओं से मिला कर बनाया गया है, जो खाद बनाने की रफ्तार को तेज करता है. पराली जलाने पर कानूनी कार्यवाही करने का भी प्रावधान सरकार ने बनाया है, जुर्माने के साथसाथ जेल भी हो सकती है. पराली न जलाएं, पर्यावरण बचाएं. साथ ही, खेती को लाभदायक बनाएं.
नई दिल्ली : राष्ट्रीय हलदी बोर्ड देश में हलदी और हलदी उत्पादों के विकास और वृद्धि पर फोकस करेगा. राष्ट्रीय हलदी बोर्ड हल्दी से संबंधित मामलों में नेतृत्व प्रदान करेगा, प्रयासों को मजबूत बनाएगा और हलदी क्षेत्र के विकास और वृद्धि में मसाला बोर्ड और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ अधिक समन्वय की सुविधा प्रदान करेगा.
हलदी के स्वास्थ्य और कल्याण लाभों पर दुनियाभर में महत्वपूर्ण संभावनाएं और रुचि है, जिस का लाभ बोर्ड जागरूकता और खपत बढ़ाने, निर्यात बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नए बाजार विकसित करने, नए उत्पादों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने व मूल्यवर्धित हलदी उत्पादों के लिए हमारे पारंपरिक ज्ञान के विकास का काम करेगा.
यह विशेष रूप से मूल्य संवर्धन से अधिक लाभ पाने के लिए हलदी उत्पादकों की क्षमता निर्माण और कौशल विकास पर फोकस करेगा. बोर्ड गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा मानकों और ऐसे मानकों के पालन को भी प्रोत्साहित करेगा. बोर्ड मानवता के लिए हलदी की पूरी क्षमता की सुरक्षा और उपयोगी दोहन के लिए भी कदम उठाएगा.
बोर्ड की गतिविधियां हलदी उत्पादकों के क्षेत्र पर केंद्रित और समर्पित फोकस और खेतों के निकट बड़े मूल्यवर्धन के माध्यम से हलदी उत्पादकों की बेहतर भलाई और समृद्धि में योगदान देंगी, जिस से उत्पादकों को उन की उपज के लिए बेहतर कीमत मिलेगी. अनुसंधान, बाजार विकास, बढ़ती खपत और मूल्य संवर्धन में बोर्ड की गतिविधियां यह भी सुनिश्चित करेंगी कि हमारे उत्पादक और प्रोसैसर उच्च गुणवत्ता वाले हलदी और हलदी उत्पादों के निर्यातकों के रूप में वैश्विक बाजारों में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखना जारी रखेंगे.
बोर्ड में शामिल होंगे ये लोग
बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष, आयुष मंत्रालय, केंद्र सरकार के फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और किसान कल्याण, वाणिज्य और उद्योग विभाग, 3 राज्यों के वरिष्ठ राज्य सरकार के प्रतिनिधि (रोटेशन के आधार पर), अनुसंधान में शामिल राष्ट्रीय/राज्य संस्थानों, चुनिंदा हलदी किसानों और निर्यातकों के प्रतिनिधि होंगे, बोर्ड के सचिव की नियुक्ति वाणिज्य विभाग द्वारा की जाएगी.
दुनिया में सब से बड़ा हलदी उत्पादक है भारत
भारत विश्व में हलदी का सब से बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है. साल 2022-23 में 11.61 लाख टन (वैश्विक हलदी उत्पादन का 75 फीसदी से अधिक) के उत्पादन के साथ भारत में 3.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हलदी की खेती की गई थी.
भारत में हलदी की 30 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं और यह देश के 20 से अधिक राज्यों में उगाई जाती हैं. हलदी के सब से बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं.
हलदी के विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 62 फीसदी से अधिक है. साल 2022-23 के दौरान, 380 से अधिक निर्यातकों द्वारा 207.45 मिलियन डालर मूल्य के 1.534 लाख टन हलदी और हलदी उत्पादों का निर्यात किया गया था.
भारतीय हलदी के लिए प्रमुख निर्यात बाजार बंगलादेश, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और मलयेशिया हैं. बोर्ड की केंद्रित गतिविधियों से यह उम्मीद की जाती है कि साल 2030 तक हलदी निर्यात तकरीबन 1 बिलियन डालर तक पहुंच जाएगा.
उदयपुर : 16 अक्तूबर. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि अधिक उत्पादकता के लिए उन्होंने हमेशा टीम वर्क में विश्वास रख कर काम किया है. आप चाहे कितने ही विद्वान हों, साधनसंपन्न हों, ऊंचे पद पर हों, अकेले कुछ भी हासिल नहीं कर सकते.
कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक पिछले दिनों सीटीएई सभागार में अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर आयोजित अभिनंदन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हम सभी एकदूसरे को सम्मान दे कर ही कार्यस्थल को घर जैसा बना सकते हैं. किसी ने सच ही कहा है, ’’एक मुख्तसर सी वजह है, मेरे झुक कर मिलने की… मिट्टी का बना हूं… गुरूर मुझ पर जंचता नहीं.’’
इस मौके पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय द्वारा अर्जित उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय अधिकारियों और कार्मिकों के समग्र प्रयासों से ही एमपीयूएटी का परचम राष्ट्रीय स्तर पर फहरा रहा है. विश्वविद्यालय के अधीन आज 7 महाविद्यालय, 2 क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, 2 उपकेंद्र, 1 बारानी अनुसंधान केंद्र और 8 कृषि विज्ञान केंद्र दक्षिणी राजस्थान को कृषि क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहे हैं.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि राज्यपाल की ’स्मार्ट विलेज इनीशिएटिव’ योजना के अंतर्गत राजस्थान के सभी राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी प्रथम स्थान पर है, जिस के लिए विगत एक वर्ष में राजभवन से 2 बार प्रशंसापत्र भी प्राप्त हुए. स्मार्ट गांव के रूप में मदार व ब्राह्मणों की हुंदर इस का जीताजागता उदाहरण है. राज्यपाल ने स्वयं अन्य विश्वविद्यालय के कुलपतियों को इन गांवों का अवलोकन करने की सलाह भी दी.
Dr. Ajit Kumar
उन्होंने इस बात की भी खुशी जाहिर की कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की नई किस्म प्रताप संकर- 6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित व अनुमोदित किया गया. यही नहीं, हमें एक वर्ष में 8 पेटेंट हासिल हुए, जो विश्वविद्यालय के मौलिक और नवाचारी शोध क्षमताओं का परिचायक है.
इन में कृषि मशीनरी निर्माण हेतु उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के लिए आरकेवीवाई की 2 करोड़ की इफको परियोजना, भूमि जल प्रबंधन पर भागीदारी कार्य संबंधी 92 लाख की परियोजना, क्लीन ऊर्जा पर विज्ञान व अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड पर 41 लाख की परियोजना प्रमुख हैं.
अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष मनाने मेें भी विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है. मिलेट्स पर सचित्र मार्गदर्शिका, जागरूकता रैलियां, कार्यशालाएं आयोजित की गईं. 4 किसान मेलों का आयोजन किया गया. साथ ही, मिलेट हट की स्थापना के अलावा कृषि महाविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों और केवीके में मिलेट वाटिकाएं विकसित की गईं.
विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध शिक्षाविद एवं संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने डा. अजीत कुमार कर्नाटक की कुशल नेतृत्व क्षमता और दूरदृष्टि की सराहना करते हुए कहा कि मात्र एक वर्ष में एमपीयूएटी ने जो उपलब्धियां अर्जित की हैं, प्रशंसनीय है. धरातल पर रह कर काम करना उन की प्रवृत्ति है. इसी कारण एक बेहतर टीम बन कर उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छे परिणाम सामने रख देती है.
उन्होंने आगे कहा कि आगामी वर्षों में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक के नेतृत्व में और भी अविस्मरणीय उपलब्धियां हासिल होंगी.
नई दिल्ली : कृषि क्षेत्र में नवाचारों का लाभ उठाने के लिए, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया है, जिस में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) आदि जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हैं. इस में डोमेन विशेषज्ञ और उद्योग के विशेषज्ञ भी शामिल हैं.
यह समिति उन नवोन्मेषी समाधानों का मूल्यांकन करेगी, जो किसानों की भलाई पर सीधा प्रभाव डालते हैं. इस के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने समस्या विवरणों का एक सेट तैयार किया है, जिस के समाधान के लिए इच्छुक संस्थाओं से प्रस्ताव आमंत्रित किए जा रहे हैं.
इस ने उन संस्थाओं के लिए एक रास्ता खोल दिया है, जो कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं या काम करने के इच्छुक हैं. इस क्षेत्र की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपने अभिनव समाधान दे सकते हैं.
कृषि तकनीकी क्षेत्र में पिछले दशक में युवा प्रतिभाओं के कारण तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो इस क्षेत्र के लिए ईमानदारी और लगन से काम कर रहे हैं. ऐसी संस्थाओं के सामने विश्वसनीय डेटा और रणनीतिक मार्गदर्शन की कमी जैसी चुनौतियां आती हैं.
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ऐसी सभी संस्थाओं को उन के समाधानों को संचालित करने और चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में आवश्यक सहायता दे कर के अवसर प्रदान करेगा. यदि समाधान नवीन हैं, तो इन्हें राष्ट्रव्यापी स्तर पर लागू किया जा सकता है.
मंत्रालय सरकार के साथ सहयोग करने और अपनी विशेषज्ञता साझा करने के लिए कृषि प्रौद्योगिकी, स्टार्टअप आदि से समस्या निवारण पर रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) और प्रस्ताव आमंत्रित करेगा.
यह समावेशी दृष्टिकोण कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करते हुए विचारों और ज्ञान के गतिशील आदानप्रदान को सुविधाजनक बनाना चाहता है.
समिति, संभावित सहयोगियों से प्रस्तुतीकरण मांगेगी, जिस का लक्ष्य भारतीय कृषि परिदृश्य की मांगों के अनुरूप विशिष्ट प्रौद्योगिकियों और लक्षित हस्तक्षेपों की पहचान करना है.
प्रस्तावित पहलों की व्यवहार्यता और मापनीयता का आंकलन करने के लिए अवधारणा, मूल्य प्रस्ताव और कार्य योजना के व्यापक मूल्यांकन सहित कठोर मूल्यांकन किया जाएगा.
इस मूल्यांकन के आधार पर, समिति मंत्रालय के साथ सहयोग के लिए उपयुक्त संस्थाओं की पहचान करते हुए सिफारिशें करेगी. कुछ मामलों में, प्रोबोनो साझेदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है, विशेष रूप से नवाचारों को संचालित करने और बाद में उन्हें बढ़ाने के लिए.
इन ठोस प्रयासों के माध्यम से समिति का लक्ष्य कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति और नवाचार लाना है, जिस से अंततः देशभर के किसान लाभांवित होंगे.
यहां से डाउनलोड करें फार्म
इच्छुक संस्थाएं कृषि क्षेत्र में नवाचारों का लाभ उठाने के लिए समस्या विवरण और रूपरेखा के साथ फार्म डाउनलोड कर सकती हैं, जिसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की वैबसाइट (www.agricoop.gov.in) पर अपलोड किया गया है.
प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए 12 अक्तूबर से 31 अक्तूबर तक दस्तावेज डाउनलोड किया जा सकता है, जबकि 18 अक्तूबर से 7 नवंबर 2023 तक प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा सकेंगे.
नेल्लोर (आंध्र प्रदेश): सागर परिक्रमा का 10वां चरण आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के वीआरसी ग्राउंड में फिश फूड फेस्टिवल में 2000 से अधिक मछुआरों और महिलाओं, एफएफपीओ, उद्यमियों और अन्य हितधारकों की प्रत्यक्ष रूप में भागीदारी के साथ संपन्न हुआ.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने कृष्णापट्टनम में मछली पकड़ने वाले गांव रामनगर का दौरा किया और उन्होंने मछुआरे प्रसाद से बातचीत की. मछुआरे प्रसाद ने मछली पकड़ने को ले कर अपना अनुभव साझा किया.
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्तम रूपाला के नेतृत्व में सागर परिक्रमा चरण 10 की शुरुआत 13 अक्तूबर, 2023 को तमिलनाडु के चेन्नई बंदरगाह से हुई.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने वीआरसी मैदान नेल्लोर में फिश फूड फेस्टिवल का उद्घाटन किया और विभिन्न स्टालों का दौरा किया. अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने उद्यमियों, एफएफपीओ, मछुआरों और मछुआरा महिलाओं से भी बातचीत की. केंद्रीय मंत्री ने महोत्सव में प्रदर्शित किए जा रहे प्राकृतिक मछली उत्पादों की सराहना की.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने अपने संबोधन में मत्स्यपालन क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला, क्योंकि यह लगभग 8000 किलोमीटर के तटीय क्षेत्र को कवर करने वाले लगभग 3 करोड़ मछुआरों और परिवारों से जुड़ा है.
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मत्स्यपालन क्षेत्र में आंध्र प्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका है और मछली उत्पादन में यह राज्य तकरीबन 30 फीसदी योगदान करता है.
मंत्री परशोत्तम रूपाला ने पीएमएमएसवाई जैसी विभिन्न योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, जहां सरकारी सहायता से 100 से अधिक गतिविधियां/परियोजनाएं उपलब्ध हैं. 20,050 करोड़ के बजटीय परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में पहली बार निवेश शुरू किया गया है और एक अलग विभाग भी बनाया गया है.
Fishermen
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सागर परिक्रमा एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम है, जो मछुआरों को उन की समस्याओं को घर पर ही हल करने के लिए मंत्रियों, अधिकारियों और अन्य हितधारकों से मिलने व बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने यह भी कहा कि मछुआरों को तकरीबन 1.58 लाख किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) दिए गए हैं और उन का लक्ष्य देश के सभी मछुआरों को केसीसी प्रदान करना है.
उन्होंने प्रदर्शनी में प्राकृतिक मत्स्य उत्पाद प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न उद्यमियों, एफएफपीओ, मछली किसानों के प्रयासों की भी सराहना की.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने लाभार्थियों अर्थात टी. रेणुका रेड्डी और वी. जयलक्ष्मी को डेली फिश कियोस्क और ए. चंदना, वाई. बलराम कृष्ण, एस. पद्मजा और ई. रामनैय्या को लाइव फिश वेंडिंग केंद्र भी सौंपे. इस के अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के लाभार्थियों अर्थात बी. चेन्नारायडू, के. वासु, एम. लक्ष्मी प्रसन्ना और बी. अंकैया को लाइव फिश ट्रांसपोर्ट व्हीकल/इंसुलेटेड व्हीकल भी सौंपे.
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने कहा कि सागर परिक्रमा की इस यात्रा के दौरान मिले सभी अभ्यावेदनों पर सावधानीपूर्वक विचारविमर्श किया जाएगा और केंद्र सरकार मत्स्यपालन क्षेत्र के समग्र विकास व मछुआरों, तटीय समुदायों और मत्स्यपालन क्षेत्र के हितधारकों के कल्याण के लिए राज्यों को अपना पूरा सहयोग देना जारी रखेगी.
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार और मछुआरों के परामर्श से आंध्र प्रदेश में सागर परिक्रमा यात्रा की योजना जल्द ही बनाई जाएगी.
एस. अप्पलाराजू ने अपने संबोधन के दौरान मछुआरों और उन के परिवारों की बेहतरी के लिए मत्स्यपालन क्षेत्र और सरकार की विभिन्न योजनाओं के महत्व पर प्रकाश डाला.
उन्होंने आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के बीच अंतर्राज्य मछली पकड़ने के संघर्ष का मुद्दा भी उठाया और केंद्र सरकार से दोनों राज्यों से परामर्श कर इस मुद्दे का हल तलाश करने का अनुरोध किया.
इस अवसर पर आंध्र प्रदेश के मत्स्यपालन मंत्री एस. अप्पलाराजू, सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव, सांसद बीड़ा मस्तान राव, आंध्र प्रदेश के मत्स्यपालन आयुक्त के. कन्ना बाबू उपस्थित रहे.
इस अवसर पर मछुआरों, एफएफपीओ एवं मत्स्यपालन उद्यमियों के साथ भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग और एनएफडीबी के अधिकारी भी उपस्थित रहे.
“सागर परिक्रमा” मछुआरों, मत्स्यपालन में लगे किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए तटीय क्षेत्र में योजनाबद्ध परिवर्तनकारी यात्रा है.
उदयपुर : 14 अक्तूबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के तत्वावधान में अखिल भारतीय समन्वित कृषि प्रणाली परियोजना के अंतर्गत लघु एवं सीमांत किसानों की आजीविका में सुधार के लिए फसल विविधीकरण एवं मूल्य संवर्धन पर कृषि विभाग, राजस्थान सरकार के सहायक कृषि अधिकारियों व कृषि पर्यवेक्षकों के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने कहा कि फसल विविधीकरण और मूल्य संवर्धन दोनों ही कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इन का देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है. इन दोनों कार्यक्रमों के माध्यम से कृषि सैक्टर में फसल विविधता को बढ़ावा दिया जाता है और उन का मूल्य संवर्धन किया जाता है.
कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अधिकारियों से कहा कि फसल विविधीकरण का मतलब है, एक क्षेत्र में एक ही प्रकार की नहीं, बल्कि विभिन्न प्रकार की फसलों की उत्पत्ति करना. यह विविधिता कृषि उत्पादन में सार्थक वृद्धि और जैव विविधता को बढ़ावा देता है.
उन्होंने फसल विविधीकरण के फायदे जैसे कि जल संचयन और पर्यावरण का संरक्षण, विविध फसलें, कीटों और रोगों के प्रबंधन में मदद करना, आय संवर्धन इत्यादि के बारे में प्रकाश डाला.
डा. एसके शर्मा, सहायक निदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि फसल विविधीकरण पर पायलट प्रोजैक्ट भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा देश के 50 जिलों में चलाया जा रहा है. इस परियोजना के तहत इसे पूरे भारत में किसानों के उत्थान के लिए पहुंचाया जा रहा है. विश्वविद्यालय ने अपनी अग्रिणी भूमिका निभाते हुए इसे शुरू किया गया है.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि फसल विविधीकरण एवं मूल्य संवर्धन के संयुक्त उपयोग कृषि सैक्टर को मजबूती और सशक्ति देता है, जिस से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और विभिन्न आर्थिक सैक्टरों को सामग्री उपलब्ध करता है. इस के परिणामस्वरूप यह देश के विकास को बढ़ावा देता है, क्योंकि कृषि सैक्टर आपदा की स्थितियों में भी स्थिर रहता है.
डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रशिक्षण की रूपरेखा सदन के समक्ष प्रस्तुत की. उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण में कृषि विभाग, राजस्थान सरकार के 25 अधिकारियों ने भाग लिया.
उन्होंने दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य कृषि अधिकारियों और पर्यवेक्षकों को प्रभावी फसल विविधीकरण के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल के साथ सशक्त बनाने जोर दिया.
उन्होंने आगे कहा कि नई फसलों के लिए पैकेज औफ प्रैक्टिस एक महत्वपूर्ण गतिविधि है खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र में यह एक विशेष फसल की सफल उपज और उचित उपायों के लिए विवेकपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है. यह विभिन्न कृषि प्रदर्शन तकनीकियों, खरपतवार नियंत्रण, उपायकरण तकनीकियों, जल संचयन, खाद्यान्न प्रबंधन और संसाधन उपयोग के साथ संभावित समस्याओं के समाधान की राह में मदद करता है. कार्यक्रम में प्रशिक्षण से संबंधित 2 प्रपत्रों का विमोचन किया गया.